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बेबस या बहादुर

"नमिता सो रही हो क्या," प्रिया की आवाज़ नमिता को लगी जैसे दूर कहीं सन्नाटे से आई हो।

सुबह जिसकी आँख कारों के होर्न, ट्रकों की गूँजती आवाज़, मोटर सायकिल की तेज़ फट-फट आवाज़ से खुलती है, आज वहाँ सन्नाटा छाया है चिड़िया की चहचहाट, कौवे की काव काव की प्राकृतिक आवाज़ें लेकिन उसको तो आदत हो गई थी शोर के माहौल में रहने की।

नमिता सोचने लगी चार दिन पहले माँ का फोन आया था। बोली थी, "नमिता बोरी-बिस्तर बाँध कर जल्दी से जल्दी हर हालत में पहुँच जाओ घर, आने वाली स्थिति बहुत विकट होगी मुश्किल हो जाएगा।"

"नहीं माँ वर्क फ़्रॉम होम ज़रूर है पर रहना यहीं पड़ेगा," टाल दिया था माँ को।

लेकिन अब क्या करे? वह तो एक तरह से फँस गई बेबस हो गई।

बार-बार टीवी में संदेश आ रहे हैं घर में रहो... घर में रहो, कॉरोना का डर सब जगह फैला है, पर यह घर है? दो कमरे हैं एक में नमिता, एक में प्रिया। जहाँ केवल रात को सोने के लिए आती थी नमिता।

सारा दिन उसका कंपनी में बीतता, सुबह का खाना भी वहीं लेती रही है। अब क्या होगा? कल्पना से ही नमिता की रूह काँप गई ।

"क्यों नहीं मानी माँ की बात चली जाती तो आज घर में तो रहती, आराम से, मुझे तो अपने सिवा किसी के सुननी ही नहीं है ना," नमिता अपने आप को कोसने लगी ।

तभी प्रिया हाथ में चाय का प्याला लेकर अंदर आई, "क्या हुआ?... परेशान हो, जाओ पहले अच्छी तरह 20 सेकेंड तक अपने हाथ साफ़ करो फिर आकर चाय पियो; मैंने बहुत अच्छी चाय बनाई है तुम्हारे लिए। अब तो 21 दिन तक हम दोनों को एक दूसरे का सहारा बन के रहना है– दूर-दूर से," कहती हुई प्रिया खिलखिला पड़ी।

नमिता अपने बेमन से उठी 20 सेकंड की जगह वह 1 मिनट तक हाथ धोती रही और ख़्यालों में खोई रही, "क्या करूँगी कैसे करूँगी क्यों नहीं चली गई मैं, क्यों... क्यों... क्यों…?"

"अरे क्या हुआ अभी तक आई नहीं बाहर; नहाने लगी क्या, चाय तो पिलो आकर," प्रिया ने आवाज़ दी।

"पता नहीं प्रिया तुम कैसे ख़ुश हो और क्यों हो, देख नहीं रही हाल देश का। देश का क्या पूरे संसार का, हे भगवान क्या होने वाला है!"

प्रिया मस्त मौला इंसान थी... है विपरीत परिस्थिति में ख़ुशी ढूँढ़ लेने वाली।

"अरे तो परेशान क्यूँ हो? जैसे निर्देश दिए जा रहे हैं सरकार से, डॉक्टरों से, बस उसका पालन करते रहो सब ठीक हो जाएगा।"

"मैंने ग़लती कर दी प्रिया, माँ कितना बोली थी आ जाओ, आ जाओ पर में नहीं गई, काश चली जाती।"

"नहीं तूने कोई गलती नहीं की, ये देखो आज की न्यूज़," प्रिया मोबाइल टटोलने लगी।

"कौन सी न्यूज़?"नमिता ने पूछा।

"महाराष्ट्र से एक लड़की को उसकी माँ ने ज़िद करके राजस्थान बुलाया। ट्रेन में यात्रा करते समय उस लड़की ने अपना पूरा ध्यान रखा। सैनिटाइजज़र से हाथ साफ़ करती रही, मास्क लगाए रखा। सब कुछ किया लेकिन उसको क्या पता था कि नीचे की बर्थ में एक दंपत्ति ऐसे हैं जो कोरोना पॉज़िटिव हैं और जब सरकार को पता चला दंपत्ति का तो उनके साथ यात्रा करने वाली उस लड़की का पता लगाया। पता चला उस लड़की ने ना तो दंपति से बात की थी, ना पास ही गई; कोई संपर्क नहीं किया, फिर भी कोरोनावायरस पॉज़िटिव हो गई। सोचो अगर वह यात्रा नहीं करती तो कितना अच्छा था।"

"अच्छा," आश्चर्यचकित नमिता का मुँह खुला का खुला रह गया।

तभी फोन की घंटी बज उठी। नमिता की माँ का फोन था। नमिता अपने माँ को ना आने का फ़ायदा बताने लगी।

"फोन रखकर प्रिया से बोली माँ को तो समझा दिया मैंने और माँ को समझ में भी आ गया उन्होंने भी शायद यह न्यूज़ सुनी थी वह भी इस बात से डर गई थी लेकिन प्रिया सोचो हम करेंगे क्या हम कब तक इस बेबसी में रहेंगे"

"बेबसी??? इसे बेबसी ना कहो बहादुरी कहो ।"प्रिया ने जोश में कहाँ फिर बोली

"अच्छा सुनो तुम कह रही थी ना बहुत दिनों से हमने अपने आप के लिए नहीं जिया चलो अपने लिए जीते है।"

"पर कैसे? इस घर की जेल में?"नमिता निराश थी।

"ओ हो, तुम तो हर बात पर दुखी रहती हो
मेरी माँ कहती है "जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए"।

"लेकिन प्रिया ऐसी विधि से कौन रहना चाहता है कम से कम मैं तो नहीं,"नमिता उखड़ सी गई।

"अच्छा चलो मैं तुम्हें अपनी दिनचर्या बताती हूँ कैसे निकालेंगे यह 21 दिन,"प्रिया का उत्साह कम न था।

"बताओ मैं काग़ज़ पेन लेकर बैठी हूँ,"नमिता ने शांत भाव से कहा।

"सुनो सुबह 6:00 बजे उठकर हमें 1 घंटे योगा करना है।

"अरे नहीं जिम चले जाएँगे ना अपार्टमेंट में ही तो है,"नमिता ने कहा।

"नहीं, घर से बाहर निकलना मना है लक्ष्मणरेखा लगी है, ना जिम, ना मॉर्निंग वॉक, घर की बालकनी में ही हमें योगा करना होगा दूर-दूर रह कर करना है।"

"चलो आगे बोलो,"नमिता फिर दुखी सी हो गई।

"घर की साफ़ सफ़ाई, एक दिन झाड़ू तुम पोचा मैं, एक दिन पोचा तुम झाड़ू मैं।"

"पर वो काम वाली बाई हम उसको महीने की पेमेंट करते हैं,"नमिता ने आश्चर्य से कहा।

"नहीं कोई नहीं आएगा इन दिनों और पेमेंट हम पूरा देंगे उसको बिना काम करवाए, सोच लो। फिर नहा धो कर अच्छी तरह हम मिलकर नाश्ता बनाएँगे। मुझे पता है तुम्हें कुछ बनाना नहीं आता इसलिए इन 21दिनों में तुझे मैं सब कुछ सिखा दूँगी; अपना घर बसाएगी तब आराम पाएगी," हँसी ठिठोली करती हुई प्रिया बोली।

नमिता कुछ बोलने लगी तो प्रिया ने इशारे से चुप करवा दिया बोली, "पहले मेरी सुनो।"

सोफ़े का कुशन उठा कर नमिता चुपचाप बैठ गई।

"दोपहर को तुम और मैं वर्क फ़्रॉम होम जो टास्क हमको दिया गया है वह करेंगे। उसके बाद 2 घंटे तुम अपनी पसंद की बुक पढ़ लेना या मूवी देख लेना," प्रिया ने अपनी बात ख़त्म की।

"यह सब तो ठीक है प्रिया यह सब कर भी लेंगे और करना भी पड़ेगा, पर इसमें कोई जोश, उत्साह नयापन कुछ भी नहीं लग रहा, बेबसी ही लग रही है। घर से बाहर नहीं निकलना पिंजरे के पक्षी की तरह क़ैदी सा महसूस होगा," नमिता का मन किसी प्रकार से ख़ुश नहीं हो पा रहा था।

"नमिता यह लड़ाई घर में रहकर लड़नी है; सारा देश लड़ रहा है और जो तुम कह रही हो ना जोश, ना उत्साह, ना नयापन उसका आइडिया भी है मेरे पास।"

"बताओ... बताओ!"

"देख सरकार कह रही है कि आप अपने साथ उन लोगों का भी ध्यान रखो जो मजबूर हैं यानी जो भूखे हैं जो समर्थ नहीं हैं," प्रिया ने समझाने के अंदाज़ में कहा।

"लेकिन प्रिया ध्यान कैसे रख सकते हैं? हम घर से बाहर नहीं निकल सकते; घर में रहकर हम उनके लिए क्या कर पाएँगे?"

"हम रोज़ जब हम दोनों का खाना बनाएँगे तब 2 लोगों का खाना और बना कर उन तक पहुँचाएँगे।"

"कैसी अजीब सी बातें करती हो तुम, कैसे? हमारा तो घर से निकलना ही मना है,"नमिता बोली।

"मैंने नीचे गार्ड से बात की है वह रोज़ हम से खाना ले जाएगा और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पहुँचा देगा जो भूखे लोगों तक पहुँचा सके," प्रिया जैसे पहले से ही तैयार थी।

"सच संभव है ऐसा? मुझे याद आ रहा है प्रिया एक बार हमारे शहर के आसपास बाढ़ आ गई थी। सारे गाँव जलमग्न हो गए थे तो सामाजिक कार्यकर्ता हमारे सभी मोहल्ले वाले लोगों से दो-दो आदमियों का खाना बनवा कर ले जाते थे और हेलीकॉप्टर से उन लोगों तक पहुँचाते थे। सच उस समय दो जनों का खाना बनाना माँ को कितना आत्म संतुष्टि देता था। लगता था हम भी किसी के काम आ रहे हैं." नमिता जैसे पुरानी यादों में खो गई। 

फिर बड़े उत्साह भरी वाणी से बोली, "मेरे मन में अच्छा आईडिया है सुनोगी?”

"हाँ... हाँ... बोलो-बोलो!"

"प्रिया, तुम फ़ैशन डिज़ाइनर हो तुम्हारे पास सिलाई मशीन भी है, तो क्यों ना हम दोनों मिलकर मास्क बनाते हैं। जिन लोगों के पास मास्क नहीं है हम पहुँचा सकते हैं इसी तरह जैसे खाना पहुँचाएँगे।"

"क्या दिमाग़ पाया है यार तूने, मेरे पास है इन सब का समान, मैं ले आई थी किसी काम के लिए, बस अब हम यही करते हैं। मेरी प्यारी निम्मी।" प्रिया नमिता को गले लगाना चाह रही थी लेकिन अचानक पीछे हट गई बोली, “नहीं नहीं नहीं नहीं।”

नमिता और प्रिया नए जोश, नए उत्साह और एक कुछ करने की चाह को लेकर उठ खड़ी हुईं।

प्रिया ने कहा, "जब जंग शुरू होती है ना, सैनिक सीमाओं पर लड़ते हैं हमारे लिए, आज हम सभी अपने और पूरे देश के सैनिक हैं जो घर बैठ कर इस जंग को लड़ेंगें।"

"हम बेबस नहीं, बहादुर हैं। कोरोना की इस जंग में जीत हमारी होगी," नमिता का विश्वास आसमान छू रहा था।

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