बेहतर है
शायरी | ग़ज़ल देवमणि पांडेय3 May 2012
दिल तो दिल है दिल की बातें समझ सको तो बेहतर है
दुनिया की इस भीड़ में ख़ुद को अलग रखो तो बेहतर है
मोड़ हज़ारों मिलेगें तुमको, कई मिलेगें चौराहे
मंज़िल तक पहुँचाने वाली राह चुनो तो बेहतर है
क़दम क़दम पर यहाँ सभी को बस ठोकर ही मिलती है
थाम के मेरा हाथ अगर तुम संभल सको तो बेहतर है
ख़ामोशी भी एक सदा है अकसर बातें करती है
तुम भी इसको तनहाई में कभी सुनो तो बेहतर है
जाने कैसा ज़हर घुला है इन रंगीन फ़िज़ाओं में
प्यार की ख़ुशबू से ये मंज़र बदल सको तो बेहतर है
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