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बेन-हर (BEN-HUR) - रोम का साम्राज्यवाद और सूली पर ईसा मसीह का करुण अंत

भारतीय सिनेमा का प्रारम्भिक दौर धार्मिक और ऐतिहासिक सिनेमा का रहा है। इसके विपरीत पश्चिमी सभ्यता में इस तरह के धार्मिक सिनेमा का प्रचलन नगण्य है। अपवाद स्वरूप ईसा मसीह और उससे पूर्व ईश्वर-दूत कहलाने वाले "अब्राहम और मोजेज़" जैसे संतों के जीवन पर आधारित कुछ फिल्में हॉलीवुड में निर्मित हुईं। ईसायित के उदय से पूर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ (ओल्ड टेस्टमेंट) के कतिपय प्रसंगों पर आधारित "मोजेज़" की कथा हॉलीवुड सिनेमा में प्रचलित है। यहूदी समुदाय को मिश्र के अंधविश्वासी क्रूर राजतंत्र की गुलामी से मुक्त करने के लिए यहूदी नायक "मोजेज़’ के मुक्ति संग्राम की कथा को हॉलीवुड ने 1956 में "द टेन कमांडमेंट्स" नामक फिल्म में बहुत बड़े पैमाने पर किया था। इस फिल्म की भव्यता और ऐतिहासिकता को आज भी याद किया जाता है। इसी तरह ‘बाइबिल" में वर्णित अनेक प्रसंगों पर हॉलीवुड ने बड़ी फिल्में बनाईं जो चर्चित हुईं। इस दृष्टि से "बाइबिल", "नोआ’ज़ आर्क", "जीसस ऑफ़ नाजरथ, "पेशन्स ऑफ द क्राइस्ट" आदि "बाइबिल" पर आधारित फिल्में हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। 

इसी क्रम में ईसा मसीह के जन्म और ‘रोम’ साम्राज्य द्वारा ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाए जाने की पृष्ठभूमि में तत्कालीन यहूदी इतिहास को प्रस्तुत करने के लिए 1959 में "बेन-हर" फिल्म बनी। इस फिल्म के निर्माण का अपना एक रोचक इतिहास है। ‘बेन-हर’ हॉलीवुड की अतिविशिष्ट फिल्म है जो सिनेमा कला की संपूर्ण बारीकियों के साथ भव्यता, नव्यता और महानता के शिखर पर आज भी सुस्थिर है। 

यह फिल्म अमेरिका के "लू वालस" द्वारा सन् 1880 में आठ खंडों (550 पृष्ठों) में रचित "बेन-हर : ए टेल ऑफ द क्राइस्ट" नामक एक ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित है। "लू वालस" (1827 – 1905) अमेरिका की सेना का एक सैनिक अफसर था। वह एक राजनयिक, वकील और लेखक भी था। उसे न्यू मेक्सिको के गवर्नर पद पर नियुक्त किया गया था। "लू वालस" को बाइबिल की कथाओं में विशेष रुचि थी। उसने ईसा मसीह के जीवन का गहन अध्ययन किया था, परिणाम स्वरूप उसने ईसा मसीह के बाल्यकाल पर एक उपन्यास लिख दिया। रोम की साम्राज्यवादी लिप्सा और यहूदी विरोधी नस्लवादी शासन को उसने ईसा मसीह के जीवन काल के परिदृश्य में "ए टेल ऑफ द क्राइस्ट" में एक सशक्त कथानक के माध्यम से प्रस्तुत किया। यह उपन्यास जेरूसलम में स्थित ज्यूडिया नामक छोटे से यहूदी राज्य एक यहूदी प्रिंस और रोम शासन के बीच उत्पन्न मैत्री और शत्रुता की कथा को रोचक शैली में प्रस्तुत करता है। ‘लू वालस" ने लगभग ग्यारह साहित्य ग्रन्थों की रचना की, जिनमें उनकी आत्मकथा भी शामिल है। इनमे सर्वाधिक ख्याति उसे "द टेल ऑफ क्राईस्ट" उपन्यास से ही प्राप्त हुई। यह उपन्यास मूलत: ईसा मसीह के जन्म और सलीब पर लटकाए जाने तक के काल के दौरान, रोमन शासकों की निरंकुशता और अत्याचारों से युक्त घटनाओं का चित्रण प्रस्तुत करता है।

इस उपन्यास का कथा नायक "ज्यूडा – बेन हर" है जो अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध रोम की अपार शक्तिशाली सत्ता से मुठभेड़ करता है। यह यहूदी प्रिंस ज्यूडा और उसके रोमन बाल सखा "मेस्सेला" की मैत्री और फिर युवावस्था में सैद्धान्तिक मतभेद से उत्पन्न भयानक घृणा और शत्रुता की कहानी है। "ज्यूडा बेन-हर और मेस्सेला" बचपन में बिछुड़कर कई बरसों बाद ज्यूडिया नगर में युवावस्था में मिलते हैं। "मेस्सेला" रोमन साम्राज्य के प्रतिनिधि के रूप में "ट्रिब्यून" (रोम की सेना के एक बड़े हिस्से का सेनापति) के पद पर ज्यूडिया मगर में प्रवेश करता है। वह अपने बाल सखा "ज्यूडा" से मिलने के लिए आतुर रहता है। "मेस्सेला" रोम साम्राज्य के अधीनस्थ यहूदी राज्य ज्यूडिया में सुशासन के लिए रोम के हित में अपने मित्र ज्यूडा का समर्थन माँगता है। ज्यूडा बेन-हर इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। मेस्सेला एक रोमन योद्धा था इसलिए उसमें एक घमंडी और दमनकारी रोमन योद्धा की क्रूरता और निर्ममता कूटकूटकर भरी हुई थी। वह रोम की विश्वव्यापी महानता और उसके ऐश्वर्य तथा वैभवपूर्ण विलासिता का प्रतिनिधि था। मेस्सेला और ज्यूडा दोनों पराक्रमी और साहसी योद्धा थे किन्तु ज्यूडा अपने देशवासियों की स्वतन्त्रता को रोम की साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा के लिए समर्पित नहीं करना चाहता। वह हर स्थिति में रोम से अपने राज्य को सुरक्षित रखना चाहता था। किन्तु मेस्सेला, रोम के सम्राट को प्रसन्न करने के लिए रोम विरोधी शक्तियों को अपनी सीमाओं में नहीं सह सकता था। वह ऐसे विद्रोह का अंत करना ही जीवन का लक्ष्य मानता था। मेस्सेला की वफ़ादारी रोम के प्रति थी तो ज्यूडा की अपने राज्य ज्यूडिया के प्रति। इस तनावग्रस्त स्थिति में ‘वेलेरियस ग्रेटस" नामक रोम का एक उच्च सैन्याधिकारी "ज्यूडिया" में गवर्नर का पदभार ग्रहण करने के लिए आता है। जब उसका सैन्य काफिला नगर के मुख्य मार्ग से गुज़रता रहता है तभी "ज्यूडा बेन-हर" के भवन के मुंडेर से छत का एक टुकड़ा टूटकर घोड़े पर सवार गवर्नर पर गिर पड़ता है और वह घायल हो जाता है। रोमन सेना ज्यूडा के घर में घुसकर ज्यूडा को गिरफ्तार कर लेती है।

"मेस्सेला" को अपने लक्ष्य को साधने का सुअवसर मिल जाता है। वह घटना की सच्चाई को जानकार भी मित्र ज्यूडा पर देश द्रोह और गवर्नर की हत्या का आरोप लगाकर उसे प्राणदंड के लिए राज्य से निष्कासित कर देता है। मृत्यु दंड के लिए ज्यूडा को बेड़ियों में जकड़कर तपते रेगिस्तान के रास्ते रोम के जहाज़ी बेड़े में डाल दिया जाता है। ज्यूडिया में ‘बेन-हर’ की माँ और बहन को भी कारागार में डाल दिया जाता है। उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। 

मेस्सेला, अपने मित्र ज्यूडा बेन हर को पूरी तरह नष्ट कर देता है। ज्यूडा इस अन्याय का बदला लेने की प्रतिज्ञा कर रोम के समुद्री जहाज़ में मृत्यु दंड के कैदी के रूप में सज़ा काटता है। बेन-हर स्वयं को प्रतिहिंसा की आग के सहारे जीवित रखता है। तीन वर्षों तक बेन-हर यूँ ही घोर यातनाएँ सहता है जब जहाज़ पर एक नया रोमन सेनाध्यक्ष "क्विंटस एरियस" जहाज़ की कमान संभालता है। उसकी निगाह बेन-हर पर पड़ती है। उसे ज्यूडा एक असाधारण कैदी लगता है। भाग्य ‘बेन-हर’ का साथ देता है। समुद्री लुटेरों के आक्रमण में डूबते जहाज़ से बेन-हर सेनाध्यक्ष "क्विंटस एरियस" की जान बचाता है। बदले में "क्विंटस एरियस" उसे अपने साथ रोम ले जाकर उसे विधिवत अपना पुत्र घोषित करता है। उसे रोम के सम्राट के सम्मुख पेश किया जाता है और रोम का सम्राट अपने सेनाध्यक्ष के प्राणों के रखवाले को रोम की नागरिकता प्रदान कर उसे रोम निवासी बना देता है। वह क्विंटस एरियस का वारिस बन जाता है। इन सबके बावजूद उसके मन में मेस्सेला के प्रति बदले की आग प्रज्वलित होती ही रहती है। वह रोम से समुद्री मार्ग द्वारा ज्यूडिया के लिए निकल पड़ता है। जेरूसलम के आसपास के इलाके में पहाड़ियों पर उसे एक साधारण सा व्यक्ति लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर प्रवचन देता हुआ दिखाई देता है। लोगों की भीड़ उस दिशा की ओर उमड़ी जा रही थी। किन्तु ज्यूडा बेन-हर अपने गंतव्य की ओर बढ़ता जाता है। वहाँ एक अरब शेख से उसकी मित्रता हो जाती है। उस शेख के पास वह खूबसूरत और हृष्ट-पुष्ट घोड़ों के जोड़ों को देखकर उन पर वह मोहित जो जाता है। ज्यूडिया पहुँचकर उसे अपनी माँ और बहन की मृत्यु का समाचार मिलता है। उसके उजड़ी और जीर्ण हवेली में उसका एक वफ़ादार सेवक और उसकी बेटी "एस्तर" उसे मिलते हैं। वे उसे पहचानकर उसे मेस्सेला के अत्याचार से अवगत कराते हैं। क्योंकि ज्यूडा रोम का नागरिक बन चुका था इसलिए वह मेस्सेला के सम्मुख क्विंटस एरियस के रोमन पुत्र ‘सेक्सेटेरियस’ बनकर प्रकट होता है। मेस्सेला उसे जीवित देखकर स्तब्ध रह जाता है। उसके मन में "ज्यूडा बेन-हर" को समाप्त कर देने की दावाग्नि भड़क उठती है। इधर ‘बेन-हर’ की प्रतिहिंसा ज्वालामुखी बनकर फूटने को व्याकुल होती है। वह समय ज्यूडिया में "रथों की दौड़" (चेरिएट रेस) का हिंसात्मक मनोरंजन का था। मेस्सेला और बेन-हर दोनों इस रथ-दौड़ (चेरियेट रेस) में एक दूसरे से अपना बदला लेने के लिए तत्पर हो जाते हैं। रोम के क्रीड़ा प्रांगण (एरीना) में कोई नियम नहीं होते थे। रथों की दौड़ में हर तरह की हिंसा जायज़ थी और किसी भी तरह से प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर, वध कर या अन्य किसी भी तरीके से वह दौड़ जीती जा सकती थी। कई बरसों से चेरियेट रेस में रोम के अधिपतियों का ही दबदबा हुआ करता था और हर बार मेस्सेला ही अपनी कुटिल चालों से विजेता बनता था। इस मुक़ाबले के लिए "बेन-हर’ अरब शेख के चार श्वेत अश्वों से जुते रथ को लेकर मेस्सेला के विरुद्ध चेरियेट रेस में उतरता है। अरब शेख और समस्त ज्यूडिया के लोग बेन-हर का समर्थन करते हैं। रोम की सेना और उसके शासकों के प्रति वहाँ के लोगों में गहरी घृणा और भय समाया हुआ था। सर्कस मेक्सिमस नामक उस विशाल, सुविस्तृत क्रीड़ा प्रांगण (एरीना) में कई राज्यों के रथारोही योद्धा अपने सजे हुए अश्व-रथों के साथ हज़ारों दर्शकों के बीच अपने जीवन को दाँव पर लगाकर वह चेरियेट रेस (रथ दौड़) जीतकर इतिहास रचना चाहते हैं। किन्तु वह दौड़ मूलत: मेस्सेला और बेन-हर के बीच प्रतिहिंसा और प्रतिकार की दौड़ थी। रथों के लिए सर्कस मेक्सिमस के नौ चक्कर पूरा करने का लक्ष्य रखा जाता है। वायु वेग से दौड़ते हुए रथों और रथारोहियों के आपसी टकराहट से रथों से गिरते हुए रथारोही और उलटते हुए रथों के ऊपर से छलाँग लगाते हुए रथों और गिरकर घोड़ों के पैरों तले कुचले जाते हुए रक्त से सने रथारोहियों के शरीर के चिथड़े इस दौड़ को रोमांच के शिखर पर ले जाते हैं। ऐसी स्पर्धा में मेस्सेला, बेन-हर को उसके रथ से मार-मार कर गिराने के प्रयास में खुद ही अपने दौड़ते हुए रथ से गिरकर अन्य रथों के नीचे कुचला जाकर भयानक दुर्घटना का शिकार हो जाता है। वह मरणासन्न अवस्था में एरीना से बाहर लाया जाता है। ‘बेन- हर’ रेस जीत जाता है लेकिन उसकी आत्मा ग्लानि से भर उठती है। मृत्यु शैया पर पड़े हुए मेस्सेला से मिलने जाता है। मेस्सेला अंतिम साँसे लेता हुआ भी अपना पराजय स्वीकार नहीं करता। वह बेन-हर की ओर देखकर कहता है कि अभी रेस ख़त्म नहीं हुई, ज़ारी है, यह स्पर्धा कभी ख़त्म नहीं होगी। बेन-हर को पता चलता है की उसकी माँ और बहन जीवित हैं किन्तु वे कोढ़ग्रस्त हो गए हैं और आबादी से दूर कोढ़ियों के लिए बनी हुई अँधेरी गुफाओं में कहीं पड़े हैं। वह उन गुफाओं में जाकर उन्हें ढूँढ लाता है। उसे कोढ़ियों के साथ नगर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। ठीक उसी समय ईसा मसीह को सूली पर लटकाने के लिए, उसके कंधे पर सलीब लादकर, निर्ममता से घसीटकर, कोड़े बरसाते हुए, रोम सैनिक ले जाते हुए दिखाई देते हैं। उस व्यक्ति के के पीछे चलते हुए जन समूह को बेन-हर देखता है। वह सलीब के नीचे दबे ईसा-मसीह की मदद करता है। उसे ईसा मसीह की आँखों में एक चमत्कारी सम्मोहन दिखाई देता है। उसी क्षण उसके हृदय में एक ज्योति जल उठती है। ईसा मसीह को सूली पर लटका दिया जाता है। उपन्यास में ईसा मसीह के सलीब पर चढ़ाने की घटना को महत्त्व दिया गया है। वह एक भयानक त्रासदी थी। करुणा और प्रेम का मसीहा जब सूली पर लटकाया गया तो दिशाएँ रो पड़ीं, आकाश से आँसुओं की अविरल धारा फूट पड़ी। घनघोर वर्षा हुई। वर्षा के उस जल ने दुखियों के सारे दुःख हर लिए। रोगी, रोग मुक्त हो गए। बेन-हर की माता और बहन भी कोढ़ से मुक्त हो गए। यह उपन्यास लेखक के ईसा मसीह के प्रति प्रेम और श्रद्धा के भाव को प्रदर्शित करता है। यह उपन्यास रोम की अपार शक्ति और उसकी सांस्कृतिक भव्यता का प्रचार करता है साथ ही रोम से टकराने वाली हर ताकत को जिस तरह रोम नेस्तनाबूत कर देती है, उसका चित्रण लेखक ने अपने लेखकीय कौशल से किया है। इस उपन्यास की पठनीयता रोचकता से भरपूर है। कथानक की प्रबलता और पात्रों का चरित्र युगीन परिवेश को उद्घाटित करता है। यहूदी और रोमन संस्कृतियों की टकराहट के बीच ईसा मसीह का अलौकिक अवतरण, परोक्ष रूप से आतताइयों के कहर से मुक्ति के लिए ईसा मसीह के शरण में जाने को उत्प्रेरित करता है। यह उपन्यास प्रकारांतर से मनुष्यों में मौजूद परस्पर घृणा और प्रतिहिंसा से निजाद पाने के लिए ईसा मसीह की करुणा और क्षमा भाव का प्रचार करता है। ईसा मसीह की करुणा और दया के भाव से प्रभावित होकर "ज्यूडा बेन हर’ अंत में जिस तरह ईसा मसीह के प्रति समर्पित हो जाता है वह मानवता के लिए एक संदेश है। उपन्यास की कथा, मैत्री और शत्रुता की पराकाष्ठा को दर्शाती है। यह प्रतिद्वंद्विता फिल्म के रूप में बहुत ही सशक्त ढंग से उभर कर आती है। 

"लू वालस" ईसायित के लेखक के रूप में महत्त्व पाते हैं। उनके साहित्य का अधिकांश हिस्सा ईसा मसीह के जीवन पर केन्द्रित रहा, किन्तु उन्हें नहीं मालूम था कि यह उपन्यास एक विश्व प्रसिद्ध सिनेमा का रूप धारण करेगा। उपन्यास की लोकप्रियता ने "‘लू वालस" को अपार ख्याति दिलाई। इस उपन्यास को रोम के तत्कालीन पोप "लियो तेरह" (Pope Leo XIII) ने अपने आशीर्वचनों से सम्मानित किया। इस तरह का सम्मान पाने वाली यह एक मात्र साहित्यिक कृति है। इस उपन्यास की रचना के लिए "‘लू वालस" ने रोम और मध्य पूर्व के देशों के इतिहास का गंभीर अध्ययन किया। प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए ईसाई मतावलम्बियों से दीर्घ चर्चाएँ कीं। यह उपन्यास हीब्रू भाषा में बहुत ही लोकप्रिय हुआ। मूलत: अंग्रेज़ी में रचित इस उपन्यास के हीब्रू भाषा में आठ अनुवाद उपलब्ध हैं। 

इस उपन्यास पर अमेरिका में टी.वी. धारावाहिक के साथ-साथ 1907 से इस उपन्यास को सिनेमा के पर्दे पर 1907, 1925, 1959, 2010 और 2014 में लाया गया। सन् 1925 में यह मूक फिल्म के रूप में सिनेमा के रुपहले पर्दे पर आई थी जिसे काफी सराहा गया। इसके अलावा इस उपन्यास का नाट्य रूपान्तरण भी किया गया जो कि ब्राडवे थियेटर में मंचित हुआ। इस पर कई एनीमेशन फिल्में भी बनीं। 

सन् 1959 में निर्मित ‘बेन-हर’ "‘लू वालस" के उपन्यास "द टेल ऑफ क्राइस्ट" का ऐतिहासिक फिल्मी रूपान्तरण है। "बेन-हर" फिल्म का निर्देशन विलियम वाइलर नामक एक महान युगांतरकारी निर्देशक ने किया था, जिनके पास ऐसी भव्य कलात्मक फिल्में बनाने का अपार अनुभव और दूरदर्शिता मौजूद थी। इसके निर्माता भी ऐसे ही अद्भुत व्यक्तित्व वाले "सैम ज़िम्बलिस्ट" थे। इस फिल्म के लिए अभिनेताओं का चयन गहन शोध के बाद ही संभव हो सका। कथा नायक प्रिंस "ज्यूडा बेन हर’ की भूमिका हॉलीवुड के इतिहास के महानायक "चार्ल्टन हेस्टन" को दी गई। इससे पूर्व वे "टेन कमांडमेंट्स" में मोजेज़ की भूमिका में इतिहास रच चुके थे। उनका व्यक्तित्व रौबदार, गंभीर और शांत प्रकृति का था। वे ऐसे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले विलक्षण पात्र के लिए उपयुक्त थे। वे "ज्यूडा बेन हर" की भूमिका में अमर होकर रह गए। उनका अभिनय आज भी लोगों की स्मृतियों में बसा है। उनके बरक्स उनका चिर प्रतिद्वंद्वी मेस्सेला की भूमिका में उतने ही कद्दावर अभिनेता "स्टीफेन बॉयड" को लाया गया। इस कलाकार ने रोमन क्रूरता और दर्प को व्यक्त करने वाले योद्धा के व्यक्तित्व को धारण कर अभिनय की दुनिया में एक नया इतिहास रचा और प्रतिनायक के रूप में "बेन हर" को नई ऊँचाई प्रदान की। क्विंटस एरियस की भूमिका में "जैक हाकिन्स" जैसे दिग्गज कलाकार मौजूद थे। मिश्र की "हाया हरारीट" ने ज्यूडा की सेविका और प्रेमिका ‘एस्तर’ के रूप में कथानक को सार्थकता प्रदान किया। 

"बेन हर" एक सार्वकालिक महान फिल्म के रूप में निर्मित की गयी। फिल्म की पटकथा को "कार्ल ट्यूनबर्ग" ने सशक्त ढंग से लिखा। प्रारम्भ से अंत तक ज्यूडा और मेस्सेला की प्रतिद्वंद्विता हर पल कहानी को नया मोड़ देती है। फिल्म का हर दृश्य भव्यता लिए हुए और रोमन वैभव को प्रत्यक्ष करता है। मेस्सेला का ज्यूडिया में आगमन और उसके स्वागत का दृश्य, रोम की सैन्य परंपराओं के प्रति दर्शकों के मन में विशेष रोमांच भरा कौतुक पैदा करता है। ‘बेन हर’ फिल्म का प्रारम्भ जेरूसलम में रोम-शासन के जनगणना के लिए जेरूसलम पहुँचने वाले यात्रियों और रोमन सेनाओं के दमनकारी व्यवहार से होता है। इसी जन-कोलाहल में गर्भवती मरियम (मेरी) और जोसफ भी जेरूसलम पहुँचते हैं। वहीं एक रात को दिव्य शिशु (येशु – जीसस) का जन्म भेड़-बकरियों के मध्य एक गड़रिये की झोपड़ी में होता है। आसमान में एक देदिप्यमान नक्षत्र उदित होता है, इस नक्षत्र के संकेत पर तीन संत नवजात शिशु के समक्ष नतमस्तक होकर, भेंट समर्पित कर, उसे दीन-दुखियों का मसीहा घोषित कर चले जाते हैं। इसके बाद ज्यूडा और मेस्सेला की कहानी शुरू होती है। मेस्सेला और ज्यूडा की पहली भेंट मेस्सेला के शस्त्रागार में होती है। वे अपना शक्ति परीक्षण अनोखे अंदाज़ में करते हैं। रोमन शासन के दमनकारी सैनिक अभियान को अंजाम देने के लिए आतुर मेस्सेला का ज्यूडा के प्रति क्रोध और परिणामस्वरूप ज्यूडा का निष्कासन आदि घटनाएँ फिल्म में बहुत ही सशक्त ढंग से फिल्माई गई हैं। समुद्री डाकुओं द्वारा रोम के जहाज़ी बेड़े पर आक्रमण और समुद्री युद्ध का फिल्मांकन बहुत ही रोचक और रोमांचक है। क्विंटस एरियस का ज्यूडा के साथ रोम में प्रवेश और सम्राट टाइबीरियस के सम्मुख ज्यूडा को प्रस्तुत करने का भव्य कलात्मक दृश्य सिनेमा के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। ज्यूडा का अपने गृहनगर ज्यूडिया लौटकर आने के बाद पुन: मेस्सेला से उसकी भेंट, फिल्म को एक नया मोड़ देती है। ज्यूडा द्वारा मेस्सेला को रथों की रेस में हराने का संकल्प लेकर सर्कस मेक्सिमस में रथों की दौड़ का दृश्यांकन सिनेमा के इतिहास में एक नया कीर्तिमान बना गया। लोग केवल इस "चेरिएट रेस" को ही देखने के लिए फिल्म देखने जाते थे। बारह मिनट के इस दृश्य में रथों के दौड़ की घातक स्पर्धा का फिल्मांकन आज तक एक विलक्षण अनुभव के रूप में याद किया जाता है। रथों के लिए सर्कस मेक्सिमस के नौ चक्कर पूरा करने का लक्ष्य रखा जाता है। वायु वेग से दौड़ते हुए रथों और रथारोहियों के आपसी टकराहट से रथों से गिरते हुए रथारोही और उलटते हुए रथों के ऊपर से छलांग लगाते हुए रथों और घोड़ों के पैरों तले कुचले जाते हुए रक्त से सने रथारोहियों के शरीर के चिथड़े इस दौड़ को फिल्मी पर्दे पर रोमांच के शिखर पर ले जाते हैं। झाग उगलते बेतहाशा दौड़ते हुए हुए घोड़ों और रथों की गड़गड़ाहट की गूंज भयानक होती है। मेस्सेला का ज्यूडा पर आक्रमण करते हुए स्वयं का रथ से गिरकर पहियों के नीचे आकार मृत प्राय हो जाना, फिल्म की कथा को एक गमगीन और भावुक अंत की ओर लेकर जाता है। फिल्म में पात्रों की धीमी और स्पष्ट संवाद शैली विशेष महत्त्व रखती है, जो कि पात्रों के चरित्र को मुखर बनाती है। समूचे फिल्म में ईसा मसीह के चेहरे को नहीं दिखाया जाता है, केवल पार्श्व भाग ही दिखाया जाता है, जो कि एक गौरतलब विशेषता है। फिल्मांकन की यह शैली उस पात्र के प्रति एक जिज्ञासापूर्ण आदर का भाव पैदा करती है। इस फिल्म का निर्माण हालीवुड के मेट्रो गोल्डविन मेयर स्टुडियो ने 1959 में पंद्रह करोड़ सत्रह लाख पाँच हज़ार डॉलर($15.175 मिलियन) की लागत से निर्मित किया था, जो कि तब तक की सबसे महंगी फिल्म होने का दावा करती है। यह भी एक कीर्तिमान है। ‘बेन हर’ फिल्म की अवधि 212 मिनटों की है जो दर्शको को तनिक भी खलती नहीं है। ऐसी ऐतिहासिक फिल्में सिनेमा प्रेमियों के लिए निश्चित ही जीवन भर की धरोहर हैं। "बेन हर" को वर्ष 1959 के 11 ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुए जो कि सिनेमा के इतिहास में एक कीर्तिमान था। इसके समकक्ष 1997 में निर्मित "टाइटेनिक" को ही ग्यारह ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुए, जो कि किसी एक फिल्म को मिले सर्वाधिक ऑस्कर पुरस्कारों का है। "बेन हर" को उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशन, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (चार्ल्टन हेस्टन), सर्वश्रेष्ठ सहभिनेता, सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफी के पुरस्कार से नवाजा गया। इस फिल्म का पार्श्व संगीत विशिष्ट महत्व का माना जाता है जिसमें एक विशेष प्रकार की धीमी सम्मोहक धुन समाई हुई है जो पूरे फिल्म में नेपथ्य में निरंतर सुनाई देती है। यह फिल्म समय के गर्त में कभी नहीं ओझिल हो सकती। हर पीढ़ी के लिए ऐसी फिल्में विश्व की शताब्दियों पूर्व घटित ऐतिहासिक घटनाओं को विस्मृति के गर्भ से निकालकर ताज़ा करती हैं। 
 

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