बेटी पर दोहे
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Feb 2021
(बालिका दिवस पर)
सरिता बेटी एक सी, निर्मल शीतल नेह।
सरिता कुंजों में बहे, बेटी बाबुल गेह।
बड़े भाग बेटी मिले, गर्व करें सब बाप।
बेटी पाते ही धुलें, जन्म जन्म के पाप।
चिड़ियाँ जैसी बेटियाँ, करतीं घर गुलज़ार।
उड़ जायेंगी एक दिन, सूना बाबुल द्वार।
बेटी कुल की रीत है, बेटी जीवन गीत।
शक्ति स्वरूपा दीप है, जीवन का संगीत।
कमला, सिंधु, कल्पना, बनी देश अभिमान।
विश्व पटल पर बेटियाँ, ख़ूब दिलाती मान।
बिन बेटी सूना चमन, ज्यों सुगंध बिन फूल
बेटी बिन जीवन लगे, मरुथल उड़ती धूल।
पाल पोस उपवन किया, आया राजकुमार।
चुपके से वो ले गया, बाबुल का संसार।
बेटी धन के रूप में, हर घर लक्ष्मी वास।
बेटी मन की रौशनी, बेटी मन विश्वास।
माता पिता की लाड़ली, फिर भी है मेहमान।
भरे हृदय से कर रहा, बाबुल कन्यादान।
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