बेटियाँ
काव्य साहित्य | कविता दीपक रौनीयार15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
कई बार लोगों को मैंने कहते सुना है
की वो मेरे दिल की धड़कन है,
वो हमारे साँसों में बसती है
हमारी बिटिया हमारे घर को रोशन करती है।
अच्छा लगता है ऐसी बातें सुनना
अच्छा लगता है ऐसे लोगों से मिलना,
वरना यह जहान तो भरा हुआ है ऐसे ग़रीबों से
जिन्हें उम्मीद नहीं कुछ बेटियों से।
क्या होता है बगिया में एक फूल का खिलना
जिससे पूरी बगिया हरी हो जाए?
क्या होता इंद्रधनुष में एक रंग का निखरना
जिस ने पूरा इंद्रधनुष खिल जाए?
जाना है जीवन के इस राज़ को मैंने
उसके मेरे जीवन में आने के बाद,
जिया है हर पल दिवाली की तरह मैंने
उसको जीवन में पाने के बाद।
ऐसा नहीं कि उसके आने से पहले
जीवन में कोई भार नहीं था,
जीवन पथ की अनेक यात्राओं से
पाँव मेरा थका नहीं था।
पर अब सब बदल गया था।
जीवन अब जब जब मुझे सताता था
उसको देखते ही मैं उठ जाता था,
बढ़ जाता था एक नयी ऊर्जा ले कर
भिड़ जाता था जीत की उमंग भर कर।
पर समयका पहिया भारी है।
अब दिखती हैं मुझको
निर्मला और निर्भया की ख़बरें,
जो बतलाती हैं मुझको
उसको बढ़ाने के साथ बचाना भी ज़रूरी है।
डर जाता हूँ और सोचने लगता हूँ।
काश ऐसा हो जाये
उसको एक नया गगन और दुनिया मिल जाये,
जो ख़ुशियों और उम्मीद से भरी हो
और जहाँ खुल के जीने की आज़ादी हो।
और फिर लगने लगता है
बात नहीं है यह सिर्फ़ एक अकेले की।
स्थितियों को अगर बदलना है तो
मुझको भी कुछ करना होगा,
उस नये गगन और
नई दुनिया को मुमकिन करना है तो
मुझको भी आगे बढ़ना होगा।
आओ चले स्थितियों को बदलें
कुछ ऐसा करें, कुछ ऐसा प्रण लें,
जहाँ उन सबको मिल जाए वो नया गगन
और फिर हम सब मिल कर गाएँ
हमारी बेटियाँ हमारे जग को रोशन करती हैं।
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