भला क्या कर लोगे?
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैलेश शुक्ला15 Mar 2021 (अंक: 177, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
है हर ओर भ्रष्टाचार, भला क्या कर लोगे
तुम कुछ ईमानदार, भला क्या कर लोगे?
दूध में मिला है पानी या पानी में मिला दूध
करके खूब सोच-विचार, भला क्या कर लोगे?
ईमान की बात करना नासमझी मानते लोग
सब बन बैठे समझदार, भला क्या कर लोगे?
विकास की नैया फँसी पड़ी स्वार्थ के भँवर में
नामुमकिन है बेड़ा पार, भला क्या कर लोगे?
इंसाफ़ के नाम पर बस तारीख़ पर तारीख़
है लंबा बहुत इंतजार, भला क्या कर लोगे?
फोड़ लोगे सर अपना मार-मार कर दीवारों पर
चलो, छोड़ो, बैठो यार, भला क्या कर लोगे?
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