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भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ

भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ

जब हमने लड़कर दुश्मन से, ये आज़ादी पायी थी
अनगिन वीर गँवा करके तब, विजय ध्वजा फहराई थी
पराधीन भारत के सपने अब भी सत्य नहीं होते
जो बलिदानी वीर सिपाही घर में व्यस्त कहीं होते
मातृभूमि का शीश आज भी रिपु के सम्मुख नत होता
जो शेखर सुभाष गाँधी का मन स्वारथ में रत होता
हम भी कहीं किसी कोने में बगलें झाँक रहे होते
किसी विदेशी के जूते के तलवे चाट रहे होते
कितने देशभक्त वीरों ने अपना शीश कटाया था
तब ही सन सैंतालीस में जाकर स्वराज आ पाया था
लेकिन भारत की गरिमा अब धूल धूसरित दिखती है
इक्यासीवें नंबर पर भ्रष्टों में अपनी गिनती है

मैं भारत के बेटों का अभिमान जगाने आया हूँ
भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ॥

भाँति भाँति के घोटालों ने इसको लहूलुहान किया
टूजी, थ्रीजी, कोलगेट तो किसी ने चारा कांड किया
कोई जनता का धन लेकर धूल आँख में झोंक गया
विजय माल को धारण करके छुरा पीठ में घोंप गया
नीरव हीरे के बिजनिस में बैंकों को खा जाता है
हम को ठन ठन करके वो तो परदेशी हो जाता है
छोटे छोटे टटपूँजिए भी शहरों शहरों खाते हैं
चौराहों से लूट लूट धन ऊपर सब तक जाते हैं
कोई करोड़ों के टेंडर भी उपहारों में देता है
बदले में वो आज कमीशन में दस प्रतिशत लेता है
ऐसे ऐसे लाल देश में कोने कोने बैठे हैं
ये सब सहकर चुप रहते हैं बेटे हम सब कैसे हैं

मैं तो जिम्मेदारी का अहसास दिलाने आया हूँ
भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ॥

ये तो सच है कोई बच्चा पैदा भ्रष्ट नहीं होता
बालक मन तो अपराधों से यूँ ही ग्रस्त नहीं होता
या तो माता और पिता में कमी कहीं रह जाती है
या फिर विद्यालय की शिक्षा ही इसकी अपराधी है
जीवन मूल्यों की शिक्षा ही सर्वावश्यक शिक्षा है
कपट और धोखे के धन से बेहतर अपनी भिक्षा है
काम क्रोध और लोभ नरक के द्वार तीन बतलाती है
गीता हमको जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य सिखलाती है
छोड़ हमारी संस्कृति हम सब मूरख बन कर बैठे हैं
गीता को भी जाति धर्म से बाँध भूल कर बैठे हैं
फिर भी परिवर्तन के मौक़े अब भी हाथ हमारे हैं
बाजी अपने देशहितों की नहीं अभी हम हारे हैं

मैं अपने गीतों में आशा किरण दिखाने आया हूँ
भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ॥

हमने यार सफलताओं के मानक ग़लत बिठाए हैं
केवल यश, धन, मान, शक्ति ये लक्ष्य ग़लत सिखलाये हैं
इसीलिये अब दुश्चरित्र भी जननायक बन जाते हैं
भारत की उन्नति के पथ के खलनायक बन जाते हैं
पहले राजा के बालक भी गुरुकुलों में जाते थे
इन्द्रिय संयम जहाँ गुरु जी सर्वप्रथम सिखलाते थे
ऐसे सच्चरित्र राजा से धन्य धरा भी होती है
और प्रजा तो चाल चलन में राजा जैसी होती है
नैतिक मूल्यों को केवल पुस्तक में लिखकर क्या होगा
व्यवहारों में लाने पर ही राष्ट्र लक्ष्य पूरा होगा
हम भी अपनी शिक्षा का कुछ ऐसा ही निर्माण करें
एवम्‌ सत्यनिष्ठ लोगों को अधिनायक स्वीकार करें

मैं हर भारतवासी को झकझोर जगाने आया हूँ
भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ॥

जब जब पानी बढ़ कर सर के ऊपर तक आ जाता है
और धरा पर दानव दल का भार बहुत बढ़ जाता है
जब लोगों ने नियमों को एक दंतकथा सा जाना हो
जीवन को बस एक बार की जग यात्रा सा माना हो
जब अपने स्वारथ के आगे और कोई न दिखता हो
मात्रभूमि का रक्त घाव से बूँद बूँद कर रिसता हो
देशभक्त का खून उबल तब आँखों तक चढ़ आता है
तभी कोई उधम सिंह बदला लेने लन्दन जाता है
मृत्यु भयावह दानव दल को सम्मुख नृत्य दिखाती है
नोंच नोंच खाने की दावत गिद्धों को ललचाती है
कुरुक्षेत्र की रणभूमि नरमुंडों से पट जाती है
क्षत विक्षत लाशों संग खूनी नदिया बहती जाती है

महाप्रलय के परिणामों की झलक दिखाने आया हूँ
भारत माँ के पुनरोदय की नींव बिछाने आया हूँ॥

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