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भारतीय परंपरागत लोकविधाओं, लोककथाओं को विलुप्तता से बचाना ज़रूरी

भारतीय परंपरागत लोकविधाओं, लोककथाओं को विलुप्तता से बचाना ज़रूरी – यह हमारी संस्कृति की वाहक – हमारी भाषा की सूक्ष्मता, परंपरागत व्यवहारों की संपूर्णता, पूर्वजों के सामूहिक ज्ञान का प्रवाह है।

भारत की पहचान और लोक साहित्य - लोककथाओं, लोकविधाओं को विलुप्तता से बचाना हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य – एड किशन भावनानी

भारत के हज़ारों साल पहले के इतिहास को अगर हम खंगालें तो हमें भारतीय परंपरागत लोकविधाओं, लोक कथाओं का भंडार मिलेगा। या फिर हम देश के पूर्व यानी हंड्रेड प्लस के अपने बुज़ुर्गों, साथियों से हम चर्चा करेंगे तो हमें पता चलेगा कि इन लोककथाओं लोकगाथाओं का कितना महत्व था, आम जनता के हृदय को कितना प्रभावित करती थीं। . . . 

अगर हम कुछ वर्ष या दशक पूर्व की बात करें तो हम भी अपने दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता से यह गाथाएँ सुनते थे। कुछ भाग्यशाली मनुष्य आज भी अपने बुज़ुर्गों से परंपरागत लोककथाएँ लोक विधाएँ सुनते हैं। परंतु यह अभी कुछ कम हो गई हैं! वह भी ग्रामीण क्षेत्र में सुनने व देखने को मिलती हैं और वहाँ भी यह विलुप्ततता के कागार पर खड़ी है। इसका मूल महत्त्वपूर्ण कारण है, आज का वर्तमान वैज्ञानिक डिजिटलाइज़ेशन और क्रांतिकारी मोबाइल कंप्यूटर युग! जिसमें बच्चों से लेकर बड़ों तक सब मोबाइल सहित तकनीकी के साथ इतना व्यस्त हो चुके हैं कि कहानियाँ, लोककथाएँ, लोकगाथाएँ सुनने तो क्या, आपस में बात करने तक की फ़ुर्सत नहीं है! कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास, वर्क फ़्रॉम होम, लॉकडाउन इत्यादि से तो और अधिक समस्या, इस तकनीकी की आदत और मोबाइल जैसे साधनों में हो रही है। अब समय आ गया है कि हम इस पर सतर्क होकर सूक्ष्मता से इस समस्या पर ध्यान दें।

अगर हम लोककथाओं लोकगाथाओं के बारे में सोचें तो यह लोक साहित्य है। इन्हें भारतीयता और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि यही भारत की संस्कृति की पहचान और भारत की मिट्टी में समाहित है। इसका विलुप्त होना अच्छा संकेत नहीं है। हम सब भारतीयों को मिलकर इसकी रक्षा करनी होगी। इसे फिर पुनर्जीवित करना होगा। इसको लेकर एक जन जागरण अभियान चलाना होगा। इसका उपयोग सामाजिक परिवर्तन के लिए करना होगा, जिसमें कुप्रथाएँ, मानवीय प्रताड़ना व अपराधिक प्रवृत्ति की क्षीण मानसिकता को बदलने में यह लोककथाएँ, लोकगाथाएँ महत्वपूर्ण सिद्ध होती हैं। क्योंकि इनका सीधा असर मानसिक, वैचारिक परिवर्तन पर होता है। इसलिए हमें अब बच्चों के प्राथमिक शैक्षणिक स्तर से कॉलेज तक में वार्षिक आयोजनों में लोककथाओं को शामिल कर, इसके प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण रोल अदा करना है।

हमें भारतीय लोककथा की परंपराओं का समारोह मनाने के लिए एक वर्चुअल कार्यक्रम के आयोजन पर विचार करना चाहिए। भारत के माननीय उपराष्ट्रपति महोदय ने भी अपने संबोधन में भारतीय लोककथाओं को पुनर्जीवित करने और लैंगिक भेदभाव रोकने तथा लड़कियों की सुरक्षा जैसे सामाजिक कारणों की हिमायत करने में लोककथाओं की क्षमता का उपयोग करने का आह्वान किया है। भारतीय लोककथाओं की परंपराओं का समारोह मनाने वाले एक कार्यक्रम को वर्चुअल रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने  भारत में लोककला और मौखिक परंपराओं के महान इतिहास और समृद्ध विविधता पर प्रकाश डाला और उन्हें लोकप्रिय बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा हमारी भाषा की सूक्ष्मता, हमारे परंपरागत व्यवहारों की संपूर्णता तथा हमारे पूर्वजों के सामूहिक ज्ञान का सामान्य प्रवाह, लोक कथाओं में होता रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनता में राजनैतिक और सामाजिक चेतना लाने में लोककथा की परंपराएँ महत्वपूर्ण रहीं। सच्चे अर्थों में लोककथा लोक साहित्य है। लोककथा को हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण वाहक बताते हुए उन्होंने मौखिक परंपराओं में आ रही गिरावट पर चिंता जताई और कहा कि ये परंपराएँ इसलिए प्रासंगिक नहीं रह गई हैं, क्योंकि इन्हें संरक्षण नहीं मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में संरक्षण के कारण इतिहास में भारत की लोककथा  फली-फूली। उन्होंने आगे कहा कि ग्रामीण भारत और लोककथा को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। हमारे ग्रामीण जीवन में हमारी सभ्यता के मूल्य और सांस्कृतिक परंपराएँ अंतर्निहित हैं। लोककथाओं में कमी के संभावित कारणों में व्यापक वैश्वीकरण और व्यावसायिक जनसंचार का हवाला दिया जो मुख्यधारा की विधाओं की आवश्यकताएँ पूरी करते हैं। उन्होंने इन परंपराओं को सुरक्षित रखने का आग्रह करते हुए कहा कि एक बार इस सांस्कृतिक मूल के स्थायी रूप में समाप्त हो जाने पर उन्हें फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने ऑनलाइन तथा डिजिटल प्लेटफार्मों का लाभ उठाने तथा अपनी लोक कला रूपों को पुनर्जीवित करने और प्रचारित करने का सुझाव दिया। दूरदर्शन तथा आकाशवाणी जैसे सार्वजनिक प्रसारणकर्ताओं से अपने कार्यक्रमों में लोक कलाओं को महत्व देने को भी कहा। लोककथा को पुनर्जीवित करने और युवापीढ़ी को ज्ञान संपन्न बनाने के लिए सुझाव दिया कि स्कूलों और कॉलेजों में आयोजित किए जाने वाले वार्षिक समारोहों में स्थानीय तथा लोक कला रूपों पर बल दिया जाना चाहिए। सिनेमा, टीवी तथा रेडियो जैसे जन संचार माध्यमों को अपने कार्यक्रमों में लोककथाओं के पहलुओं को शामिल करना चाहिए और उन्हें श्रोताओं तक पहुँचाना चाहिए। विभिन्न परंपरागत लोकविधाओं की लोकप्रियता में धीरे-धीरे हो रही गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लोक कला के विभिन्न रूपों का उपयोग करने वाले समुदाय विलुप्त हो रहे हैं। ऐसे समुदायों से आने वाले युवाओं को कौशल और प्रशिक्षण देने का सुझाव दिया ताकि लोक कलाओं को पुनर्जीवित किया जा सके। युवाओं से समर्थन और सामाजिक परिवर्तन के साधनों के रूप में लोक मीडिया का उपयोग करने को कहा। अपने देश की लोककथाओं की परंपराओं का समृद्ध डाटाबेस विकसित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया, ऑडियो-विजुअल मीडिया का उपयोग करके व्यापक प्रलेखन किया जाना चाहिए और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि आधुनिक रूप देने के लिए अनुवाद की प्रक्रिया में उनका सार-तत्व नष्ट नहीं हो। अतः अगर हम उपर्युक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएँगे के भारतीय परंपरागत लोकविधाएँ, लोक कथाओं बचाना ज़रूरी है। यह हमारी संस्कृति की वाहक हैं, हमारी भाषा की सूक्ष्मता, परंपरागत व्यवहारों की संपूर्णता, पूर्वजों के सामूहिक ज्ञान का प्रवाह है।

—संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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