अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

भाषा विमर्श शृंखला - 002 उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ

वैश्विक हिन्दी परिवार
भाषा विमर्श - 002

'उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न

हैदराबाद –

भारत सरकार ने उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय के स्तर की पाठ्य सामग्री को आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में अनुवाद करने तथा प्रकाशित करने की योजना बनाई है। प्रकाशन के लिए अनुदान भी प्रदान किया जा रहा है। भारत के पास सुनिश्चित भाषा नीति नहीं है। इसीलिए भाषा नीति तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। अब अनेक विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिए अलग केंद्र भी खोले जा रहे हैं। साथ ही संस्कृत भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में बुनियादी और उच्च शिक्षा से संबंधित मौलिक  सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनेक क़दम उठाए जा रहे हैं। 

इन सब विषयों पर विमर्श हेतु गठित "वैश्विक हिंदी परिवार" के तत्वावधान में 'उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' विषय पर 21 जून, 2020 को ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/ वेबिनार संपन्न हुई। बतौर मुख्य वक्ता रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं की स्वीकार्यता तब बढ़ेगी जब भारतीय भाषाएँ स्कूली शिक्षा में स्थापित होंगी। यह स्वीकार्यता तब और सुनिश्चित होगी जब रोज़गार का सृजन होगा। 

विषय को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सारी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर एक डोमेन बनाते हुए हमें आगे चलना चाहिए। उच्च शिक्षा हमें अपनी अपनी भाषाओं में ही देनी चाहिए। और यह ग्रास रूट स्तर पर होना चाहिए। इसके लिए कौशल विकास ज़रूरी है। और इस काम को हिंदी और भारतीय भाषाओं में करना होगा। इतना ही नहीं भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ने की ज़रूरत को महसूस करना होगा। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि ज़्यादातर बच्चे निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। और वहाँ अंग्रेज़ी को बढ़ावा दिया जा रहा है। अतः भारतीय भाषाओं को प्रोमोट करने का काम इन निजी विश्वविद्यालयों को करना चाहिए। 

संतोष चौबे ने यह भी कहा कि हमारे पास जो रोल मॉडल है वह है शांतिनिकेतन। इस रोल मॉडल के साथ क्या नहीं किया जा सकता। और तो और भारतीय भाषओं में लिबरल आर्ट्स के रूप में बहुत बड़ा काम हो सकता है। कल्चरल डिस्कोर्स में 'गाना' एक महत्वपूर्ण चीज़ है। इससे अपनी भाषा के प्रति सम्मान बढ़ता है। अलग-अलग मातृभाषा भाषियों के बीच यह गीत सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करता है। बच्चों के बीच सौहार्द पैदा करना चाहिए क्योंकि इससे भाषाओं के बीच सौहार्द की भावना पैदा हो सकती है जो अत्यंत आवश्यक है। 

भारत के समक्ष आज एक चुनौती है। अब करोना महामारी के बाद उच्च शिक्षा की पूरी पद्धति बदलने वाली है। अतः उन्होंने कहा कि अब समय आ चुका है मैकाले की भाषा नीति को उलटने की। इस हेतु उन्होंने सुझाव दिया कि वर्चुअल लैब्स का निर्माण करना होगा। तत्काल सामग्री को डिजिटाइज़ करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि एक तरह से भाषा विमर्श सत्ता विमर्श है।

'संकल्प फ़ाउंडेशन ट्रस्ट' के अध्यक्ष और शिक्षाविद संतोष तनेजा ने अपने विचार रखते हुए यह चिंता व्यक्त की कि अंग्रेज़ी भाषा में उच्च शिक्षा के लिए काफ़ी सामग्री उपलब्ध है लेकिन भारतीय भाषाओं में बहुत कम। अतः उन्होंने सबसे यह आग्रह किया कि पहले सामग्री निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आज मुद्दा अंग्रेज़ी बनाम भारतीय भाषाएँ नहीं है बल्कि हिंदी बनाम भारतीय भाषाएँ है। क्योंकि हम अंग्रेज़ियत के गुलाम बन चुके हैं। और यह चिंता का विषय है। उच्च शिक्षा के स्तर पर भारतीय भाषाओं को डिमांड की भाषाएँ बनाना होगा। उन्हें उचित सम्मान दिलाना होगा। पैराडाइम शिफ़्ट लाने के लिए ऊपर से तार हिलाने ही पड़ेंगे।

इस वेबिनार  में वरिष्ठ भाषा चिंतक राहुल देव और डॉ. कविता वाचक्नवी सहित अनूप भार्गव, वीरेंद्र शर्मा, उषा राजे सक्सेना, रंजना अरगड़े, अनुपमा, ममता, राजीव कुमार 
रावत, डॉ. शैलजा सक्सेना, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा आदि देश-विदेश के  हिंदी प्रेमी सम्मिलित हुए।

'अक्षरम्' के अध्यक्ष अनिल जोशी ने विषय प्रवर्तन एवं संचालन किया तथा पद्मेश गुप्त ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

'अक्षरम्' (भारत), हिंदी भवन , भोपाल, वातायन (यू. के.), हिंदी राइटर्स गिल्ड (कनाडा), झिलमिल (अमेरिका), विश्वंभरा (हैदराबाद और अमेरिका), सिंगापुर संगम, कविताई (सिंगापुर) के सहयोग से यह महत्वपूर्ण आयोजन संपन्न हुआ। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

कार्यक्रम रिपोर्ट

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख