भीड़
काव्य साहित्य | कविता हेमंत कुमार मेहरा1 Sep 2020 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
जहाँ भी देखता हूँ,
भीड़ लगी है लोगों की।
बेतहाशा भीड़ है,
एक हुजूम सा जैसे,
आँखों पर पट्टी बाँधे,
एक दिशा में ही हैं सब,
भेड़ चाल में ही हैं सब।
चले जा रहे हैं,
अनपढ़ भी और ज़ाहिल भी,
गँवार और पढ़े-लिखे से लोग,
लोग?
इंसान, मानव, प्राणी,
या,
या कि जानवर?
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