भूल जाओ
काव्य साहित्य | कविता सुधेश1 Apr 2015
मुझे भूल जाओ
जैसे भूले मेरी कविताएँ
मेरे लेख मेरी पुस्तकें
मेरा पता भी
भूल जाओ मुझे
जैसे समय सब कुछ भुला देता है
सब कुछ इतिहास हो जाता है
सब इतिहास मलबा है
जिसे कभी सदियों बाद
खोदते हैं पुरातत्ववेत्ता।
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