भूख
काव्य साहित्य | कविता फाल्गुनी रॉय1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
एक खोज जिह्वा पे आकर
छटपटाती हुई हलक़ से नीचे आ उतरती है
और कुलबुलाने लगती है
पेट के सूखे अँतड़ियों में
एक तेज़ यंत्रणा जगती है
नाभि के नीचे
और टहलने लगती है
शिथिल अँतड़ियों में आहिस्ता आहिस्ता
दिमाग़ सुन्न,
आँखें बेबस,
छटपटाती उँगलियाँ टटोलती रह जाती हैं
चपटा और सपाट सा उदर
बदलने लगते हैं एक-एक कर फिर
सभी जीवन दर्शन,
सब नीति-नियम, क़ायदे-क़ानून
और ईमान तक
इस यातना के आगे
एक भयावह सच है भूख
सच है बिलखती अँतड़ियों की यंत्रणा
सच है ख़ाली पेट दम का उखड़ना
और यक़ीन मानिये
इस यंत्रणा से बढ़कर और कोई
यातना नही है जीवन की।
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