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बिल्ली मर गयी

"जब से घर में, ये कमबख़्त बिल्ली का बच्चा आया है, खाना-पीना तक दुश्वार हो गया। खाने-पीने की चीज़ें चाहे कहीं छुपाकर रख दो, वहीं पहुँच जाता है। खाना, खाना तो और भी मुश्किल हो गया। खाना, खाने बैठो ज़नाब हाज़िर। नीचे बैठकर खाने पर तो सीधा खाने में घुस जाता है। और बैड पर बैठकर खाओ तो दोनों पैर उठाकर बैड के किनारे रख, बुरी नज़र से ताकता है। घूर-घूर कर ऐसे देखता है जैसे नोच ही डालेगा। टुकड़ा (रोटी का) न मिलने पर पंजा लगाता है, घरुंट भरता है। इच्छा अधूरी रह जाने पर ज़बरदस्ती बैड पर चढ़ जाता है। पैर से धिकाओ, चाहे कुहनी मारो, नहीं मानता। सालन की तो प्लेट तक झूठी कर देता है, कमबख़्त।

"बच्चों को दूध देकर इधर नज़र घुमाओ, उधर दूध चट। दूर फेंकने या लात मारने पर खी-खी कर दाँत दिखाता है। कई बार तो पंजे मारकर बच्चों को भी लहू-लुहान कर डाला। पंजे के नाखून… पूरी तलवार हैं, तलवार! बिल्ली का बच्चा क्या पूरा शैतान है, ...नाम लो हाज़िर।

"अम्मा के सर भी क्या आफ़त आई थी, इस नालायक को उठा लाई। वहीं कूड़ेदान में पड़े-पड़े मर जाने दिया होता तो अच्छा था। कम से कम एक आफ़त से तो पीछा छूटा रहता। सोचा होगा, "घर के बच्चों के लिए खिलौने का काम करेगा। बच्चे खेलेंगे, खुश होंगे और अम्मा को दुआएँ देंगे। 

"वैसे नन्हे से बिल्ली के बच्चे को देखकर बच्चे ख़ुश तो बहुत हुए थे। उठाए-उठाए फिरे थे पूरे दिन अपनी-अपनी गोद में लेने के लिए तना-तनाई भी हो गयी थी, घर के बच्चों में। रात में अपने साथ सुलाने के लिए झगड़े भी हुए थे। लेकिन तब वो छोटा था। और छोटा बच्चा तो सूअर का भी लुभाता है। लेकिन अब बच्चों के मन भर गए, उकता गए इस हरामी से। क्योंकि बड़ा होते ही इसने दुःख देना जो शुरू कर दिया है। परेशान हो गए सब इससे। ज़रा-सा डाँटने पर ही पंजा मारकर ज़ख़्मी कर देता है। धमकाओ तो दाँत निकालकर काटने को दौड़ता है। अब बर्दाश्त नहीं होता, पानी सर से ऊपर चला गया। सोचता हूँ इसे मार डालूँ। या घर से दूर कहीं ऐसी ज़गह छोड़ आऊँ। जहाँ से ये कमबख़्त वापस ही न आए। इस आफ़त से पीछा छुड़ाने की कोई न कोई तरक़ीब ज़रूर सोचनी पड़ेगी। अरे, एक मुसीबत हो तो सहूँ... कितनी बार कोशिशें कर चुका हूँ। लेकिन अम्मा के ग़ुस्से के सामने टांय-टांय फिस्स हो जाती है। अम्मा ने ग़ुस्से में घिसते-घिसते मसूड़ों तक दाँत पहुँचा दिए। इस कमबख़्त को दूर छोड़ आने का नाम सुनते ही खाना-पीना छोड़ देती है। और ऊपर से जो दस तरह की गालियाँ सुननी पड़ती हैं, वो रही अलग। हाय, क्या करूँ?”

इस प्रकार रहमान साहब, अपने घर की बिल्ली के क्रिया-कलापों को देखकर कभी स्वयं ही बड़बड़ाते। और कभी भीतर ही भीतर कुढ़ते रहते। बहुत से अरमान दिल में ही दम तोड़ देते। जब हिम्मत हार जाते तो दुखी मन से गुनगुनाने लगते, "हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले......”


रहमान साहब जिस शुभ अवसर की बहुत दिनों से ताक लगाए, तलाश कर रहे थे, वह संयोग से आ ही निकला। अम्मा दो दिन के लिए अपने दूर रिश्ते की बहन के यहाँ शादी में चली गयी। रिश्ता दूर का ज़रूर था लेकिन प्रगाढ़ इतना था कि स्पेशल बुलाया गया अम्मा को। अन्यथा अम्मा चारपाई से हिलती ही कब थी? चुम्बक बनी हुई पूरे दिन चारपाई से चिपकी पान चबाए रहती। तमाम दीवारें पीक से लाल कर डालीं। जबकि कह रखा था, सिर्फ़ राख वाले तसले में ही थूका करो। लेकिन किसी की सुनती कहाँ है? 

उस दिन रहमान की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। ख़ुदा का सैंकड़ों बार शुक्रिया अदा किया। हाथ उठाकर दुआएँ माँगी, "ऐ ख़ुदा, तू बड़ा कारसाज़ है, ज़रूरतमंदों की ज़रूरतें पूरी करता है। अनुकूल वातावरण उत्पन्न कर, बिगड़ों के काम सँवारता है। तेरे यहाँ देर तो है पर मायूसी बिलकुल नहीं।"

दो रकअत नमाज़ नफिल शुक्राने के पढ़े। और एक बार फिर हाथ ऊपर उठाकर ढेर सारी दुआएँ माँगी...।

बाद नमाज़, रहमान ने बिल्ली को बड़ी सावधानी से पकड़कर झोले में ठूँसा और क़सबे से दूर जंगल में जाकर छोड़ आया। उसने सुन रखा था, "कुत्ते-बिल्ली को बिन आँखें बंद किए चाहे जितनी दूर छोड़ आओ, वे घर आ ही जाते हैं।" अत: रहमान ने बिल्ली को आँखें बंद कर स्कूटी की डिग्गी में ठूँसा और क़सबे की चक्करदार गलियों में घुमाकर दूर जंगल में ले गया। झोले का मुँह खोलते ही बिल्ली अचानक से कूदी। तभी रहमान ने उसकी गंडिया पर कसकर लात मारते हुए तीन-चार बहुत ही भद्दी गलियाँ दी .......साली ........ बहन की .........हराम ज़ादी ...... बिल्ली जंगल की ओर फुर्रर्र‍ऽऽ ...। 

घर वापस लौटते हुए रहमान ने अम्मा के ग़ुस्से को शांत करने की योजना भी बना डाली। अम्मा के शादी से लौटते ही कहूँगा, "अम्मा! तुम्हारे घर से निकलते ही बिल्ली ने तुम्हारा पीछा किया। क़दमों के निशान सूँघती हुई बिल्ली तुम्हारे पीछे-पीछे निकली थी। रास्ते में कसाइयों वाली गली में पहुँची ही थी कि कुत्तों की गिरफ़्त में आ गयी और अल्लाह को प्यारी हो गयी। तुम्हें इतना चाहती थी कि तुम्हारी जुदाई को एक पल भी बर्दाश्त न कर पाई। जानवर भी जानते हैं, कौन इन्सान उन्हें कितना प्यार और मुहब्बत करता है?" 
थोड़ी सी रोनी सूरत बनाकर कहूँगा, "हाय बिल्ली, बेचारी बिल्ली, मर गयी।" तो अम्मा ज़रूर यक़ीन कर लेगी।

उधर जंगल में बिल्ली मांऊऽऽ ...मांऽऽ ऊ.... करती घूमने लगी। यहाँ-वहाँ भटकती फिरती। यदि उसमें सोचने की क्षमता ख़ुदा ने दी हुई होती तो वह बिलकुल यही सोचती, "कमबख़्तों का मैंने क्या बिगाड़ा था, जो मुझे घर से बाहर फेंक दिया। उनका झूठा खाती थी। घर के चूहों का सफ़ाया करती थी। किसी दूसरे बिल्ली-बिलाऊ की क्या मज़ाल, मेरे रहते घर में घुस जाए? हड़काया कुत्ता भी मेरे दाँत देखकर दरवाज़े से ही भाग जाया करता था। घर के सब बच्चों के खेलने का भी सबसे बड़ा स्रोत थी मैं। मेरे रहते उन्हें अन्य खिलौनों की शायद ही कभी आवश्यकता महसूस हुई हो? पर हाय नियति, ये सब मेरे साथ ही करना था। सुबह से घूम रही हूँ, खाना तक नसीब नहीं हुआ। देखूँ कहीं जुगाड़ लगाऊँ।"

बिल्ली जैसे ही भोजन की खोज में निकली दो कुत्तों की नज़र उस पर पड़ी। उनकी जिह्वा लार से तरबतर हो गयी। दोनों ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और शायद यह विचार किया "यार, माल तो अच्छा है।" 

दोनों ने बिल्ली को दबोचने की चाह में पुरज़ोर छलाँग लगायी। और बिल्ली को इतना दौड़ाया कि उसे पता न रहा, पूरब किस ओर है और पश्चिम कहाँ? वह जंगल से और घने जंगल की ओर दौड़ने लगी। 

ये जान भी कमबख़्त अजीब चीज़ है आफ़त में आ जाए तो हर कोई इसे बचाने के हज़ार प्रयत्न करता है। अत: बिल्ली भी जान बचाने की चाह में दौड़ती ही चली गयी। दौड़ते-दौड़ते उसकी गुदा का द्वार भी खुल गया और मल बाहर आने लगा। संयोग से एक झाड़ी मिल गयी, जिसके अंदर घुसकर बिल्ली ने किसी तरह अपनी जान बचाई। "जान बचे तो लाखो पाए, एक रात भूखे ही सो जाए" का राग उसने आलापा। सुबह हुई तो बिल्ली भूख से फिर बिलबिलाई। "ऐ ख़ुदा, आज कोई मोटा-तगड़ा चूहा मिल जाए तो पूर्णत: तृप्त हो जाऊँ। घर में तो बिना कुछ किए ही खाना मिल जाता था। यहाँ तो बड़ी मशक़्क़त करनी पड़ रही है।" .…

राह भटकी बिल्ली जंगल में काफ़ी दिनों तक इधर-उधर घूमती रही। लगभग तीन महीने जंगल में भटकने के बाद बिल्ली को एक ऐसा रास्ता मिल गया जो उसे क़सबे तक ले आया। लेकिन कठिनाई यह थी कि वह अम्मा के घर तक कैसे पहुँचे? उसे तो अब कुछ भी याद नहीं। फिर भी एक आस थी, यदि अम्मा का घर मिल गया और अम्मा मिल गयी तो सभी दुःख दूर हो जाएँगे। जीवन में फिर बहार होगी, हरा-भरा चमन होगा। 

क़सबे में इधर-उधर घूमते हुए बिल्ली को एक हरे किवाड़ वाला दरवाज़ा दिखाई दिया। बिल्ली ने उसे देखते ही स्मृति को चेताया। यदि उसकी चेतना जगी होगी तो उसने यही सोचा होगा, "मकान तो अम्मा का ही लग रहा है लेकिन ठीक से याद भी तो नहीं। दरवाज़ा तो वैसा ही लग रहा है, गली का पता नहीं। चलो घर के अंदर से किसी के निकलने का इन्तज़ार करूँ, शायद कोई जाना-पहचाना निकल आए।"

काफ़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद भी दरवाज़ा नहीं खुला तो हवा के एक झोंके ने इस काम को सरल बना दिया। बिल्ली सहमी हुई सी अंदर प्रवेश कर गयी। घर का निरीक्षण किया तो ज्ञात हुआ, घर पराया है। वापस लौटकर आयी तो दरवाज़ा बंद मिला। इसलिए पंजों से दरवाज़ा खोलने का प्रयास करने लगी। तभी अचानक पीछे से उस घर की मालकिन की दूसरी बिल्ली ने खीऊ-खीऊ बोल हमला कर दिया। दोनों बिल्लियाँ झगड़ने लगी। इसी बीच एक बच्चा चिल्लाया, "मम्मी...मम्मी... हमारी बिल्ली को कोई दूसरी बिल्ली काट रही है, घरुंट रही है। पापा, जल्दी डंडा लेकर आओ।" उसी समय बेचारी बिल्ली पर दूसरी बिल्ली के तेज पंजों की मार के साथ ही लात और डंडों की बरसात भी होने लगी। 

बिल्ली ने अपने आपको बचाने की बहुत कोशिश की फिर भी उस पर छ:-सात डंडे पड़ ही गए। ज़िन्दगी के अभी दिन शेष थे इसलिए एक दीवार से छलाँग लगाकर किसी प्रकार बच गयी। पैर की हड्डी टूटने के साथ ही बहुत सी गुम चोटें भी आयी। कई जगह पंजों के घाव हो गए, जिनसे टप-टप खून बहने लगा। 

आसमां सा दर्द, सागर की लहरों सी कराहें लिए बिल्ली क़सबे में घूमने लगी। लेकिन उस कठोर हृदय वाले क़सबे में एक आदमी भी ऐसा न निकला, जो बिल्ली पर दयादृष्टि दिखा सकता। एक टुकड़ा डालकर थोड़ी सी सांत्वना दे सकता। वाऊच-वाऊच बोलकर पास बुलाकर, उसके ज़ख़्मों पर तेल ही लगाता। बहुत से लोग उसे देखते रहे और लावारिस समझते रहे। और लात मार-मार कर दूर करते रहे। 

बिल्ली अपनी ज़िन्दगी को कोस रही थी कि उसे जंगल में छोड़ने वाला बेदर्द रहमान दिखाई दे गया। बिल्ली अपने सब ग़म भूलकर ख़ुशी से झूम उठी। ख़ुशी की लहर उसके शरीर को रोमांचित कर गयी। टूटा पैर लिए बिल्ली रहमान के पीछे-पीछे चलने लगी। दोनों के बीच फ़ासला काफ़ी था। गली में रहमान अलमस्त लेकिन काफ़ी तेज़ी से चल रहा था। सड़क के किनारों पर बनी दुकानों के शटर एक के बाद एक बंद होते जा रहे थे। क्योंकि भीतर तक कंपकपा देने वाली सर्दियों की रात का सन्नाटा सबको शीघ्रता से अपने-अपने घरों में घुसने का सन्देश जो दे रहा था। 

टूटा पैर होने के कारण बिल्ली दौड़कर समीप न पहुँच पाई थी कि रहमान ने घर में घुसते ही हाथों को पीछे की ओर मोड़कर दरवाज़ा बंद कर लिया। और कुंडी बंद कर दी। बिल्ली चौखट पर इस आशा में बैठ गयी, "कभी तो खुलेगा, आज न भी खुला, सुबह तो दरवाज़ा खुलेगा ही।"

खुले आसमान के नीचे रात बिताने के लिए मौसम किसी भी प्रकार अनुकूल नहीं था। मध्य जनवरी की हड्डियों तक को कंपकंपा देने वाली ठंड पड़ रही थी। खुले में रात बिताना मौत से लड़ने जैसा था। जिस क़सबे में आधी रात तक चहल-पहल रहती थी। अब शाम होते ही सन्नाटा पैर पसार जाता था। ऊपर से आज मौसम का मिजाज़ भी बदहज़मी हो चला था। आकाश में घुरड़-घुरड़ करते काले-काले सुअरों जैसे बादल घिरने लगे थे। देखते-देखते घटाओं ने सभी तारों को खा लिया। और ओलों की बोछार के साथ ही वर्षा आरम्भ हो गयी। ओलों की मार और बारिश की ठंड ने चोट खायी बिल्ली के दर्द को कई गुना और बढ़ा दिया। ठंड, वर्षा और ओलों की मार से बचने के लिए बिल्ली ने पंजों से दरवाज़ा खोलने के अनेक प्रयास किए। रुक-रुक कर बहुत परिश्रम किया परन्तु हर बार असफल रही। अपने भाग्य को कोसा, नियति को दुहाई दी, सर को दहलीज़ पर तब तक पटकती रही, जब तक शरीर से प्राण जुदा न हो गए। कुछ साँसें बची तो आकाश की ओर आँखे फाड़कर देखने लगी, जैसे ख़ुदा से पूछ रही हो, "ऐ ख़ुदा तूने, स्वच्छन्द घूमने वाले पशु-पक्षियों को अपना गुलाम बनाने की प्रवृत्ति इन्सान को क्यों दी? जंगली जानवरों को मनुष्य की क़ैद में डालकर उनकी आज़ादी क्यों छिनी? जब तूने रिज़्क का वादा किया है, तो पालतू जानवरों को मनुष्य का आश्रित क्यों बनाया? उन्हें भोजन प्राप्ति में मनुष्यों के अधीन क्यों रखा? और यदि रखा था तो उनके हृदय में दया क्यों नहीं दी, स्नेह क्यों नहीं दिया, सहानुभूति का जज़्बा क्यों नहीं दिया? प्रेम और स्नेह दिखाकर, फिर मनुष्य निष्ठुर क्यों बन जाते हैं? छोटे बच्चों से दिखाया जाने वाला प्रेम उनके बड़े होते ही आँखों में फिर किरकिरी क्यों बन जाता है?”

इस प्रकार मनुष्य की निष्ठुरता और दयाहीनता के विषय में सोचते-सोचते बिल्ली मर गयी। उस घर, अम्मा और बिल्ली के बीच जो अंतर सम्बन्ध था वह टूट गया। खम्बों पर लगे बल्बों के प्रकाश में स्पष्टत: दिखाई देने वाली असमान से गिरती बूँदें शब्दायमान तो थीं, पर बिल्ली द्वारा उठाए गए प्रश्नों के लिए निरुत्तर थीं। झमाझम टपर-टपर का शोर तो था, लेकिन प्रश्नों के उत्तर ठिठुर कर सो गए थे। 

मूसलाधार वर्षा वाली ठंडी रात बीती तो रहमान ने मौसम का हाल जानने के लिए प्रात: दरवाज़ा खोला। मृतक बिल्ली को दहलीज़ पर पड़ा देखकर वह बहुत क्रोधित हुआ। सुबह का सुहाना मौसम उसके लिए एकाएक मनहूस घड़ी में तब्दील हो गया। सुबह की ठंड में भी आँखों में शोले बरसने लगे, जिनके कारण वे लाल हो गयीं। पड़ोसियों पर बरसते हुए गालियाँ बकने लगा, "सालो अपनी मरी बिल्ली मेरे दरवाज़े पर फेंक दी। रहमान का घर कोई बूचड़खाना है जो इसकी खाल उतरवाऊँगा। ठा नहीं उठाई जाती तो पालते ही क्यों हो? घर में एक बिल्ली का ख़र्च नहीं उठता?" 
ग़ुस्से में रहमान ने बहुत सी उटपटांग बातें बकी। अपना नज़ला बिना नाम लिए न जाने किस-किस पर साफ़ किया। पुरानी बातें उठा-उठाकर हृदय की खूब भड़ास निकाली। एक-दो पड़ोसियों के साथ झगड़ा होते-होते बचा। जो पड़ोसी रहमान के व्यवहार से परिचित थे वे घर से बाहर नहीं निकले। आपस में यही कहते रहे, "कुत्ता भौंककर अपने आप चुप हो जाएगा।" 
ग़ुस्से में बड़बड़ाते हुए रहमान ने तेज हवा के झोंको से घर में घुसे कूड़े-करकट को साफ़ किया। समस्त कूड़े के साथ ही बिल्ली को भी नगरपालिका के उस कूड़ेदान में फेंक दिया, जिस पर लिखा था, "कृपया अपने शहर को साफ़-सुथरा बनाने में सहयोग दें।"  

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टिप्पणियाँ

सानवी 2019/04/05 12:01 PM

एक जानवर की भावनाओं को सुंदर अभिव्क्ति दी , कहानी पढ़कर अच्छा लगा , मज़ा आ गया

Anna Bhai 2019/04/03 05:13 PM

Nice wala story likhi hai Dr. Sahib. muk janvar aur buddhiman insan ke beech ki jo bhavnatmak aur sanvedna vaali judav ka jagab ka chitran kiya hai aapne. isi tarah se likhte rahie aur sajha karte rahie.

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