बिल्ली-चूहा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’1 Nov 2019
बिल्ली दौड़ी-दौड़ी आई,
चूहा दौड़ा-दौड़ा आया।
चूहा देख बिल्ली इतराई,
होंठों पर जीभ फिराई।
बिल्ली देखकर चूहा काँपा,
इधर-उधर घबराकर भागा।
देखकर बिल्ली लगी हँसने,
चूहा देखकर लगा रोने।
चूहा बोला, मुझे न सताओ,
छोटा हूँ, मुझे न खाओ।
बिल्ली बोली, तुम हो सयाने,
पकड़े गए तो लगे समझाने।
बचकर अब कहाँ जाओगे,
भागोगे तो पकड़े जाओगे।
तुम करते हो बहुत शैतानी,
मैं हूँ देखो तुम्हारी नानी।
अब न तुमको छोड़ूँगी,
गर्दन यहीं मरोड़ूँगी।
करते हो तुम तंग मुझे,
खाऊँगी मैं आज तुझे।
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Ashique 2019/11/01 05:23 AM
Wahhh