अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

बोरिस पास्टरनाक की अमर कृति 'डॉ. ज़िवागो'

हर देश का इतिहास युगीन सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों से निर्मित होता है। सभ्यताओं और संस्कृतियों के उत्थान और पतन की कहानियाँ युगीन साहित्य में प्रतिबिंबित होती हैं। मनुष्य की स्वतंत्र अस्मिता की लड़ाई अनादि काल से सभी समाजों में चली आ रही है। राजनीतिक सिद्धांतों के आंदोलन हर युग में सक्रिय रहे। सत्ता परिवर्तन के लिए क्रांतियों का सिलसिला भी सभ्यता का हिस्सा बन गया। स्वतन्त्रता जब जब ख़तरे में पड़ी है तब उस समाज में प्रतिरोध की आवाज़ गूँजी है। इस प्रतिरोध की संस्कृति से एक नई व्यवस्था का उदय होता है। रूस जैसे सुविशाल महाशक्ति का इतिहास भी ऐसे ही सत्ता परिवर्तन के क्रांतिकारी दौर से गुज़रा है। रूसी समाज मध्ययुगीन निरंकुश राजशाही से मुक्त होने के प्रयास में भीषण रूप से रक्तरंजित हुआ। उन्नीसवीं सदी के अंत में रूस के किसान, कार्मिक और श्रमिक वर्ग ने सशस्त्र क्रांति के ज़रिए समूचे 'ज़ार वंश' का ख़ात्मा कर दिया। इसके साथ ही रूस में साम्यवादी शासन तंत्र का उदय हुआ। यह रूस के इतिहास का रक्तरंजित काल है। 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति और अक्तूबर क्रान्ति इसी हिंसात्मक दौर को याद दिलाते हैं। लेनिन, स्टालिन और ख्रुश्चेव, समाजवादी राजनीतिक विचारधारा के कट्टर अनुयायी और प्रचारक थे। रूस में साम्यवादी दल के सत्ता में आते ही स्टालिन के नेतृत्व में रूसी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन काल मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के विध्वंस का युग माना जाता है। स्टालिन के शासन काल में रूसी समाज में वैयक्तिक स्वतन्त्रता पर रोक लगा दी गई थी। रूसी लोगों के सामाजिक जीवन पर पहरा लग चुका था। इन स्थितियों में रूसी साहित्य का दम घुटने लगा था। प्रेम और संवेदनात्मक साहित्य की रचना पार्टी के नेताओं द्वारा स्वीकार्य नहीं थी। यहाँ तक कि लोगों की भावनाओं पर भी पार्टी की पहरेदारी हो गई थी। इसीलिए तत्कालीन रूसी राजनीतिक व्यवस्था में मानवतावादी साहित्य लेखन थम गया और मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति देशद्रोह घोषित कर दी गई। 'डॉ. ज़िवागो’ इसी पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने वाली संवेदनशील औपन्यासिक कृति है। यह कृति रूस में स्टालिन की लौह यवनिका (आइरन कर्टेन) के बोझ तले, दबे अभिशप्त ह्रासोन्मुख जन जीवन का संघर्षमय इतिहास है। डॉ. ज़िवागो उपन्यास के रचनाकार 'बोरिस पास्टरनाक' स्टालिन के कट्टर सैद्धांतिक शासन तंत्र के शिकार बन गए। स्टालिन की सत्ता ने 'डॉ. ज़िवागो' को देशद्रोही उपन्यास घोषित किया था। वास्तव में 'डॉ. ज़िवागो' विशाल फ़लक पर रची गई एक महान कृति है जो बोल्शेविक क्रान्तिकारियों के हाथों तार-तार होती निस्सहाय मानवीय संवेदनाओं की मूक गाथा है। 

रूसी साहित्य में बोरिस पास्टरनाक (1890-1960) अपने स्वतंत्र मानवतावादी विचारधारा तथा व्यक्ति की स्वतन्त्रता के प्रखर समर्थक थे। समाजवाद विरोधी वैचारिकता की निर्भीक अभिव्यक्ति के लिए वे रूसी कम्युनिस्ट पार्टी के निरंकुश नियंताओं के निशाने पर थे जिस कारण उन्हें आजीवन यातनाएँ सहनी पड़ीं। उन्हें निरंतर आतंकित किया जाता रहा। उनके निकट संबंधियों को बंदी बनाकर प्रताड़ित किया गया। स्टालिन का शासन काल रूसी इतिहास में मानव अधिकारों के हनन के कलंकित इतिहास का काल है। स्टालिन की विचारधारा के आलोचकों को ढूँढ-ढूँढ कर 'गुलाग' श्रम शिविरों (यातना शिविरों) में मरने के लिए भेज दिया जाता था। बोरिस पास्टरनाक आजीवन इस नृशंस निरुकुंश सत्ता से लड़ते रहे और जान की जोख़िम लेकर राजनीतिक षडयंत्रों के बीच संवेदनाओं और संबंधों का साहित्य रचते रहे। बोरिस लिओनिडोविच पास्टरनाक आधुनिक रूसी साहित्य में एक संवेदनशील कवि, उपन्यासकार और अनुवादक के रूप में विख्यात हैं। उन्हें अपने ही देश में साहित्यिक मान्यता एवं पहचान उनकी मृत्यु के बाद मिली। इसका कारण उनके जीवन काल में उनके साहित्य पर स्टालिन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध थे। उनके जीवन काल में उनकी प्रख्यात कृति 'डॉ. ज़िवागो' रूसी भाषा में प्रकाशित नहीं हो सकी थी। इस उपन्यास के कुछ अंश रूसी भाषा में जब प्रकाश में आए तो उस पर अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिली। रूस में इसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 

बोरिस पास्टरनाक का जन्म 10 फरवरी 1890 को एक संपन्न रूसी यहूदी परिवार में हुआ। उनके पिता 'लिओनिड पास्टरनाक' एक प्रभाववादी चित्रकार थे और मास्को स्कूल ऑफ पेंटिंग, स्क्ल्पचर एँड आर्किटेक्चर में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे। उनकी माँ 'रोसा कौफमान' पियानो की कलाकार थीं। बोरिस पास्टरनाक का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों और उथल-पुथल से भरा था। उसकी भावुकता और अतिशय संवेदनशीलता के कारण उसका वैवाहिक जीवन अस्थिरता के दौर से गुज़रता रहा। उसकी मानसिक उथल-पुथल और व्याकुलता से मानवीय संबंधों के प्रति उसकी एक विशेष सोच पैदा हुई। बोरिस पास्टरनाक का साहित्य इन्हीं मानवीय संबंधों की अस्थिरता और बेचैनी की कथा प्रस्तुत करता है। उसने यूरोप की विस्तृत यात्राएँ कीं थीं। जर्मनी में वह 'काँट' के दर्शन शास्त्र का अध्येता बना। प्रथम विश्वयुद्ध के समय वह जर्मनी में था जहाँ उसने यहूदी विरोधी जर्मन मानसिकता को निकट से देखा था। उसे जर्मन रोमांटिक कवि प्रिय थे और साथ ही वह पुश्किन, रिल्के और लेर्मोन्टोव की कविता से प्रभावित था। मास्को लौटकर प्रथम विश्वयुद्ध के काल में उसने एक रासायनिक फैक्ट्री में पढ़ाना और काम करना शुरू कर दिया। यहीं उसे 'डॉ. ज़िवागो' के लिए सामग्री प्राप्त हुई। बोरिस पास्टरनाक के घनिष्ठ मित्रों में रूसी साहित्यकार व्लाडीमीर मायकोवास्की और निकोलाई असेएव थे। किन्तु पास्टरनाक, कम्युनिस्ट पार्टी से इनकी बढ़ती निकटता को भाँपकर उनसे दूर हो गया। 

अक्तूबर सन् 1946 में बोरिस पास्टरनाक की भेंट 'ओल्गा ईविन्स्काया' नामक एक महिला पत्रकार से हुई जो उन दिनों रूस की मशहूर पत्रिका 'नोवी मीर' में काम करती थी। 'ओल्गा ईविन्स्काया' बोरिस की भीतरी बेचैनी को समझकर उसे सांत्वना और सहारा देने वाली जीवन संगनी बन गई। बोरिस भी उससे बेहद प्रेम करता था। वह अपनी साहित्यिक विरासत ओल्गा ईविन्स्काया को ही सौंप गया। बोरिस से घनिष्ठता के कारण 'ओल्गा ईविन्स्काया' को स्टालिन सरकार भयानक रूप से उत्पीड़ित किया। उसे कई बार गिरफ़्तार करके 'गुलाग' (श्रम शिविर) में डाल दिया गया था। उसने जीवन पर्यंत अपने और बोरिस के संबंधों की रक्षा करते हुए यातनाएँ झेलीं। अपने संबंधों को बचाने के लिए पास्टरनाक, ओल्गा को 'नोवी मीर’ से इस्तीफा दे देने के लिए कहा। इसी बीच बोरिस के अनुमान के अनुरूप अक्तूबर 1949 में रूसी खुफिया संगठन 'केजीबी' के द्वारा ओल्गा ईविन्स्काया गिरफ़्तार लिया गया। उससे बोरिस की गतिविधियों के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई, किन्तु ओल्गा ने पास्टरनाक के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप उसे दस वर्षों के लिए कठिन कारावासीय दंड देते हुए 'गुलाग' (श्रम यातना शिविर) में डाल दिया गया। तब वह पास्टरनाक के बच्चे को जन्म देने वाली थी। ओल्गा ईविन्स्काया की गिरफ़्तारी से पास्टरनाक के जीवन में तूफान मच गया। वह टूट कर निराश हो गया। पास्टरनाक स्वयं को अपराधी महसूस करने लगा। उसने अपनी इस भावना को अपने मित्रों को लिखे पत्रों में व्यक्त किया है। 5 मार्च 1953 को जब स्टालिन की मृत्यु हुई तब ओल्गा ईविन्स्काया को रिहा कर दिया गया। वह फिर से पास्टरनाक के जीवन में लौट आई। बोरिस पास्टरनाक ने स्टालिन और ख़्रुश्चेव के बारे में यह कहा कि "हम लोग इतने लंबे अरसे तक एक पागल हत्यारे के शासन में थे और अब एक मूर्ख सूअर के।" 

'डॉ. ज़िवागो' बोरिस पास्टरनाक का आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसमें नायिका 'लारा' ओल्गा ईविन्स्काया का ही प्रतिरूप है। यह एक पीरियड नॉवेल है, जिसमें सन् 1903 से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध तक के रूसी घटनाक्रम को पृष्ठभूमि के रूप में चित्रित किया गया है। उपन्यास का विस्तार अनेक जटिलताओं को उत्पन्न करता है जिसे लेखक ने अपनी उपन्यास कला से सुलझाया है। इस उपन्यास को बोरिस पास्टरनाक ने 1956 में लिखकर पूरा किया। यह उनके संघर्षपूर्ण जीवन की स्थितियों को सँजोकर लिखा गया उपन्यास है जिसके केंद्र में रूसी समाजवादी व्यवस्था में घुटते हुए पारिवारिक और सामाजिक जीवन के टूटते बिखरते टुकड़ों की करुण, दर्द भरी दास्तान है। एक समूचा राष्ट्र क्रान्ति, विद्रोह और तानाशाही निरंकुश शासन की क्रूरता की भेंट चढ़ जाता है। यह उपन्यास, पेशे से डॉक्टर किन्तु हृदय से एक कवि 'यूरी ज़िवागो' के जीवन की मार्मिक कहानी है। उपन्यास में अनेक अंतर्कथाएँ हैं किन्तु मूल कथा यूरी ज़िवागो उसके परिवार, पत्नी टोन्या, प्रेमिका लारा, प्रतिद्वंद्वी कोमोरोस्की, लारा के पति एँटीपोव पाशा स्ट्रेल्निकोव, ग्रोमिको दंपति और यूरी के सौतेले भाई 'येवग्राफ’ के अंतरसंबंधों की एक जटिल कहानी है। यह उपन्यास एक ओर बोल्शेविक क्रान्ति के दौरान रूसी समाज में व्याप्त अशांति, और वर्ग संघर्ष को दर्शाता है तो दूसरी ओर रूस के सामंती पूँजीपतियों के विलासी जीवन को चित्रित करता है। रूस में सत्ता स्थापित करने के लिए रेड आर्मी और व्हाईट आर्मी समूहों के बीच घमासान युद्ध से मचे हाहाकार के बीच शहर और गाँव, खेत-खलिहान, पहाड़ और जंगल चारों ओर व्याप्त गृहयुद्ध रूस की धरती को रक्तरंजित कर देता है। इस खूनी क्रान्ति के बीच यूरी ज़िवागो को एक के बाद एक क्रांतिकारी समूह चिकित्सा के लिए ज़बरदस्ती एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे पर भटकाते रहते हैं। भयानक बर्फ़ीली आँधियों के बीच यूरी ज़िवागो घायल सैनिकों की चिकित्सा करता है। युद्ध के घायल सिपाहियों की चिकित्सा के दौरान उसकी भेंट, पति (एँटीपोव पाशा) को युद्ध भूमि में तलाशती हुई दुःखी 'लारा’ से होती है। 'लारा' को इससे पहले 'यूरी' ने मास्को में कोमोरोस्की नामक एक प्रभावशाली राजनयिक पर गोली चलाते हुए देखा था। 'लारा’ उस मोर्चे पर चिकित्सा में नर्स बनाकर यूरी की मदद करती है। यूरी अपना काम समाप्त कर मास्को लौटकर पत्नी टोन्या से 'लारा’ का ज़िक्र करता है। यूरी अपने काम के बीच ही कविताएँ लिखता है। उसकी कविताएँ प्रेम, आत्मीयता और दार्शनिकता से भरी होती हैं। गृहयुद्ध की तीव्रता को देखकर अपने सौतेले भाई येवग्राफ की सलाह पर यूरी, पत्नी टोन्या, पुत्र साशा और ग्रोमिको के साथ मास्को से बहुत दूर यूराल क्षेत्र के वेरिकीनो एस्टेट के लिए रेल द्वारा निकल पड़ता है। यूरियाटिन नामक गाँव के पास सुंदर प्रकृति के मध्य स्थित अपने पुश्तैनी वेरिकिनो एस्टेट के एक हिस्से में थोड़ी सी खेती करते हुए यूरी ज़िवागो परिवार बस जाता है। उन्हें दूर से आगजनी से जलते हुए गाँव और घायल सैनिक तथा गावों से पलायन करते हुए लोग दिखाई देते हैं। 'यूरी' निकट के गाँव 'यूरियाटिन’ के पुस्तकालय में अचानक एक दिन एकांत जीवन जीती हुई 'लारा’ को पाकर खुशी से पागल हो उठता है। 'लारा’ पति की मृत्यु का समाचार यूरी को देती है लेकिन यूरी उसे बताता है कि उसने पाशा को रेड आर्मी के कमांडर स्ट्रेल्निकोव के रूप में देखा है। वह रूस के गृहयुद्ध में श्वेत सेना को ख़त्म करने के अभियान में व्यस्त है। यूरी रोज़ लारा से मिलने वेरिकीनो से यूरियाटिन आने लगता है। 'लारा’ उसके जीवन में प्रेम का एक नया स्वरूप निर्मित करती है। उसे 'लारा' प्रेम और मैत्री से सराबोर कर देती है। यूरी का अन्तर्मन लारा के प्रेम में खोने लगता है तभी उसे वास्तविकता का आभास होता है। वह इस बढ़ते हुए संबंध को एकबारगी ख़त्म कर हमेशा के लिए लारा से दूर हो जाना चाहता है। एक दिन लारा को अलविदा कहकर लौटे समय जंगल में वह एक विद्रोही गिरोह द्वारा बंदी बना लिया जाता है। उसे विद्रोही गिरोह के सैन्य अभियान में घायल सिपाहियों की चिकित्सा के लिए कई महीने बंधक बनाकर रखा जाता है। अंत में वह बड़ी मुश्किल से उनके चंगुल से छूटकर अपने परिवार को तलाशता हुआ बर्फ़ीले तूफान में भटकता भटकता मरणासन्न अवस्था में यूरियाटिन पहुँचता है। वहाँ लारा मानो उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। इतने लंबे समय बाद भी 'लारा’ उसे वहीं उसी घर में मिल जाती है। लारा उसका उपचार कर उसे स्वस्थ करती है। रूस में गृहयुद्ध तेज़ होता जाता है। लारा के माध्यम से यूरी को मालूम होता है कि उसका परिवार वेरिकिनो छोड़कर चला गया। कई महीनों पहले लिखा 'टोन्या’ का एक पत्र जो लारा के पते पर पहुँचता है, उससे उसे पता चलता है कि उसके परिवार को रूस से बहिष्कृत कर फ्रांस भेज दिया गया है। यूरी का परिवार सदा के लिए गुम हो जाता है। यूरी हमेशा के लिए पत्नी टोन्या को खो चुका था। उन दिनों अक्सर इस तरह के वारदात हुआ करते थे। लोग इन स्थितियों के आदी हो चुके थे। रूस में सत्ता हासिल करने के लिए साम्यवादी दल अपना सशस्त्र संघर्ष तेज़ कर देता है। इस मुहिम में स्ट्रेल्निकोव (लारा का पति) के मारे जाने की खबर लारा को मिलती है, जब कि वास्तव में वह आत्महत्या कर लेता है। इधर 'कोमरोस्की' जो उपन्यास के आरंभ से 'लारा' को अपने अधीन करने के लिए उसका यौन शोषण करता है वह एकाएक 'यूरियाटिन' में प्रकट होकर 'यूरी' से लारा को छीनकर अपने साथ ले जाना चाहता है। यूरी, लारा को लेकर वेरिकिनो के बर्फ़ीले निवास में चला जाता है। बर्फ से ढँकी वह इमारत उन दोनों के लिए ख़ूबसूरत सपनों की शरणस्थली बन जाती है। उस सुंदर बर्फ़ीले एकांत में यूरी लारा के प्रेम में डूब जाता है। लारा का प्रेम और वात्सल्य उसके भीतर के कवि को जगा देता है। बर्फ़ीली चाँदनी की उजली रातों में वह लारा के नाम कविताएँ रचता है। शीतल चाँदनी रातों में रची हुई उन प्रेम कविताओं को लारा सुबह उठकर देखा करती और वे दोनों अपने उस एकांत में डूब जाते। उन दोनों के जीवन की अंतिम त्रासदी अभी शेष थी। अकस्मात कोमोरोस्की एक दिन सैनिकों के साथ उन्हें गिरफ़्तार कर अपने संग ले जाने के लिए वहाँ आ धमकता है। वह यूरी को स्ट्रेल्निकोव के कारण लारा पर मँडरा रहे ख़तरे से अवगत करता है। इसीलिए वह लारा की सुरक्षा के लिए अपने साथ ले जाने का प्रस्ताव रखता है। किन्तु लारा, यूरी से बिछुड़ना नहीं चाहती थी। वह जानती थी कि उसे प्राप्त करने की कोमोरोस्की की यह चाल थी। किन्तु वह बेबस थी। वह यूरी को साथ चलने के लिए बहुत मिन्नत करती है लेकिन यूरी अकेली लारा को उसकी सुरक्षा के लिए कोमोरोस्की को सौंप देता है। लारा, कोमोरोस्की के साथ स्लेज में बैठकर यूरी की आँखों से ओझल हो जाती है। यूरी की दृष्टि उसका दूर तक पीछा करती रह जाती है। यही उनकी अंतिम भेंट थी। यूरी हमेशा के लिए लारा से बिछुड़ जाता है।

कहीं दूर स्टेशन पर पार्टी की एक विशेष रेलगाड़ी कोमोरोस्की का इंतज़ार कर रही थी। कोमोरोस्की, लारा को अपने साथ ले जाकर उससे बलपूर्वक विवाह करता है। इस बीच लारा यूरी के बच्चे को जन्म देती है जिसे कोमोरोस्की कुछ बड़ी होने पर किसी भीड़ में छोड़ देता है। वह खो जाती है और अनाथ होकर किसी अनाथ शिविर में पलने लगती है।

बरसों बाद रूस में स्थिरता बहाल होने के बाद अस्वस्थ यूरी जो अब एक प्रख्यात रूसी कवि यूरी ज़िवागो है, मास्को की सड़क पर अपने भाई येवग्राफ से मिलकर ट्राम में सवार होता है। ट्राम चल पड़ती है तभी उसे ट्राम के भीतर से सड़क पर जाती हुई 'लारा’ दिखाई देती है। वह उसे पहचानकर ट्राम से उतरना चाहता है। ट्राम के अगले पड़ाव पर वह उतरकर उसके सामने, तेज़ कदमों से चलती हुई 'लारा’ को रोकने के लिए हाथ उठाता है, वह उसे पुकारता है किन्तु ठीक उसी क्षण उसे दिल का दौरा पड़ता है। उसके गले में आवाज़ अटक जाती है। वह वहीं गिरकर दम तोड़ देता है। उसके चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो जाती है। लारा तेज़ कदमों से चलती हुई उससे दूर निकल जाती है। उसे पता ही नहीं चलता कि ठीक उसी के पीछे उसका प्रिय यूरी ज़िवागो मरा पड़ा था। दूसरे दिन वह कवि यूरी ज़िवागो के स्मारक पर फूल चढ़ाने जाती है। वहाँ उसे येवग्राफ जो अब नई कम्युनिस्ट शासन में केजीबी का लेफ्टिनेंट जनरल था, उसे पहचानकर अपने साथ ले जाता है। उसे यूरी ज़िवागो का कविता संग्रह 'लारा पोएम्स ' भेंट करता है जिसे यूरी, लारा को समर्पित करता है। 'लारा' का हृदय भावातिरेक से रो उठता है। लेकिन अब यूरी जीवित नहीं था। लारा येवग्राफ की मदद से अपनी खोई बेटी को तलाशकर प्राप्त करना चाहती है। वे दोनों मिलकर उसे ढूँढते हैं लेकिन उसका पता नहीं चलता। एक दिन लारा भी चली जाती है और लौटकर नहीं आती। येवग्राफ अनुमान लगाता है कि लारा गिरफ़्तार हो गई और कदाचित किसी लेबर कैंप में मर गई होगी। जैसा कि उन दिनों यह एक सामान्य सी बात थी। यह एक वृहत्काय उपन्यास है जिसमें पात्रों की संख्या बेशुमार है और घटनास्थलों की भरमार है जो कि इसकी कथावस्तु को जटिल बनाता है। यह उपन्यास अतिशय सामाजिक यथार्थवादी चित्रण और वैयक्तिक प्रेम प्रसंगों के लिए रूसी प्रगतिशील विचारधारा के अनुकूल नहीं थी इस कारण इसके रूस में प्रकाशित होने की कोई संभावना नहीं थी। इसलिए पास्टरनाक इसे अपने इतालवी मित्रों की सहायता से इटली के एक प्रकाशक को गुप्त रूप से भेज दिया, जहाँ यह उपन्यास सर्वप्रथम इतालवी भाषा में प्रकाशित हुआ। इतालवी से होते हुए यह अमेरिका में अंग्रेज़ी में अनूदित होकर तत्काल विश्व भर में एक अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास के रूप में छा गया। इसकी लाखों प्रतियाँ अंग्रेज़ी में बिक गईं। 23 अक्तूबर 1958 को बोरिस पास्टरनाक को 'डॉ. ज़िवागो' उपन्यास के लिए 1958 के साहित्य के नोबल पुरस्कार के लिए चुन लिया गया। इसके लिए पास्टरनाक ने स्वीडिश अकादमी को कृतज्ञता का संदेश भेजा। दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी के पॉलिट ब्यूरो के आदेश पर रूस की ख़ुफिया एजेंसी के जे बी ने पास्टरनाक के घर को घेरकर उसे गिरफ़्तार करने की धमकी दी, साथ ही पास्टरनाक की प्रेमिका ओल्गा ईविन्स्काया को भी फिर से 'गुलाग’ भेज देने की चेतावनी दे दी। केजीबी ने स्पष्ट कर दिया की अगर वह नोबल पुरस्कार स्वीकार करने के लिए स्वीडन की यात्रा पर जाएगा तो उसे वापस रूस में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। परिणामस्वरूप पास्टरनाक ने नोबल पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया। किन्तु स्वीडिश अकादमी ने पास्टरनाक के पुरस्कार को उनके लिए सुरक्षित रखा। इसके बावजूद भी पास्टरनाक को निरंतर उत्पीड़ित किया गया। ख्रुश्चेव शासन ने उसे रूस से निष्कासित करने का आदेश दे दिया, किन्तु भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप से इसे रोका गया। पास्टरनाक का शेष जीवन रूसी सत्ता के आतंक के तले ही गुज़रा। बोरिस पास्टरनाक की मृत्यु 30 मई 1960 को फेफड़े के कैंसर से हो गई। रूस में पास्टरनाक का साहित्य 1980 तक खुलकर नहीं प्रकाशित हुआ। 'डॉ. ज़िवागो' पहली बार रूस में धारावाहिक रूप में 1988 में ही प्रकाशित हो सका जब कि विश्व के अन्य देशों में यह एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। पास्टरनाक की मृत्यु के बाद ओल्गा ईविन्स्काया को गिरफ़्तार कर उसे श्रम शिविर में भेज दिया गया जहाँ कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु से पहले ओल्गा ईविन्स्काया ने अपनी आत्मकथा लिख दी थी जो बोरिस पास्टरनाक के जीवन के अनेक अज्ञात हिस्सों को उजागर करती है। अमेरिकी एजेंसी सीआईए ने 'डॉ. ज़िवागो' उपन्यास को स्टालिन विरोधी प्रचार का प्रामाणिक साधन बनाया और रूस में स्टालिन के शासन काल का पर्दाफाश करने के लिए इसका उपयोग किया।

'डॉ. ज़िवागो' जैसे युगांतरकारी कथाकृति की ओर हॉलीवुड के सिनेमा निर्माताओं का आकर्षण स्वाभाविक था। रूसी गृहयुद्ध, अक्तूबर क्रान्ति तथा बोल्शेविक क्रान्ति और प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में रूस के प्राकृतिक सौन्दर्य को भव्यता के साथ प्रस्तुत करने की ललक हॉलीवुड के दिग्गज निर्माताओं में जाग चुकी थी। यह उपन्यास विश्व साहित्य में अपनी जगह बना चुका था। 'डॉ. ज़िवागो' के जीवन का रोमांस, प्रेम, संघर्ष, पीड़ा और अंत में उसका करुण अंत, उसकी कविता, उसकी वैचारिकता आदि सब कुछ फिल्म के बड़े पर्दे पर दर्शकों को उद्वेलित कर सकता था। इस उपन्यास को फिल्मी पर्दे पर उतारने के लिए तत्कालीन महान निर्माता इटली के 'कार्लो पोंटी' तैयार हुए। इस महाकाव्यात्मक रोमांटिक गाथा को निर्देशित करने के लिए उस समय के सुप्रसिद्ध ब्रिटिश निर्देशक 'डेविड लीन' को चुना गया। 'डेविड लीन' ऐसी बड़ी फिल्मों के निर्देशन में बेजोड़ थे। इससे पहले उन्होंने 'ब्रिज ऑन दि रिवर क्वाई' और 'लारेंस ऑफ अरेबिया’(1962) जैसी विख्यात फिल्मों का निर्देशन कर चुके थे। डेविड लीन इस कहानी के लिए उपयुक्त कलाकारों की तलाश करने लगे। कई बड़े कलाकारों और महान अभिनेताओं पर विचार करने के बाद नायक - ज़िवागो के संवेदनशील अभिनय के लिए ईजिप्ट के 'ओमर शरीफ़' का चयन किया गया, नायिका 'लारा' की भूमिका के लिए हॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री जूली क्रिस्टी, ज़िवागो की पत्नी टोन्या के लिए चार्ली चैप्लिन की पुत्री जेराल्डिन चैप्लिन, कोमोरोस्की के लिए रॉड स्टाईगर, पाशा एँटीपोव (स्ट्रेल्निकोव) के लिए टॉम कर्टने तथा ज़िवागो के भाई येवग्राफ की भूमिका में सुप्रसिद्ध 'सर एलेक गिनिस' चुने गए। ये सभी अभिनेता हॉलीवुड के जाने-माने विश्व-विख्यात कलाकार हैं। इस समूचे फिल्म को स्पेन, कनाडा और पुर्तगाल में फिल्माया गया क्योंकि रूस में इस फिल्म के निर्माण की संभावना नहीं थी। स्पेन की राजधानी मेड्रिड के बाहर 'मास्को' शहर के सेट बनाए गए। उपन्यास में वर्णित विश्वयुद्ध, क्रान्ति और विद्रोह के दृश्य कनाडा और अन्य यूरोपीय देशों में फिल्माए गए। वेरिकिनो और यूरियाटिन जैसे रूसी प्रदेशों को स्पेन के विभिन्न हिस्सों में निर्मित किया गया। 'डॉ. ज़िवागो' अपनी पूरी भव्यता और रूसी प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ 70 एमएम पर्दे पर बहुत ही आकर्षक ढंग से प्रकट हुई। फिल्म का पार्श्व संगीत बहुत ही रोमानी और फिल्म के दृश्यों के अनुरूप भावनाओं को उत्प्रेरित करने वाली है जिसे संगीतकार 'माँरिस जार' ने चिरस्मरणीय बना दिया है। यूरी ज़िवागो और लारा को ओमर शरीफ़ और जूली क्रिस्टी ने पर्दे पर जीवंत कर दिया। फिल्म में वृहत्काय उपन्यास के मुख्य अंशों को ही फिल्माया गया है, विशेषकर इसकी मूल कथा को ही फिल्म के लिए चुना गया। शेष अंतर्कथाओं, प्रथम विश्वयुद्ध के प्रसंगों और गृहयुद्ध के कई हिस्सों को फिल्म में शामिल नहीं किया गया। इसके बावजूद फिल्म की अवधि साढ़े तीन घंटे की है जो कि दर्शकों को अनुभूतियों के नए संसार में ले जाती है। यह फिल्म अपने पूरे वैभव के साथ 22 दिसंबर 1965 को सर्वप्रथम अमेरिका में रिलीज़ की गई, 26 अप्रैल 1966 में इंग्लैंड में और तत्पश्चात विश्व के अन्य देशों में इसका प्रदर्शन हुआ। मेट्रो गोल्डविन मेयर स्टुडियो, अमेरिका इसके वितरक थे। इस फिल्म की निर्माण लागत 110 लाख डॉलर थी। इस फिल्म को पाँच ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुए, जब कि इसे दस ऑस्कर पुरकारों के लिए नामित किया गया था।

फिल्म का प्रारम्भ उपन्यास के ही अनुसार केजीबी लेफ्टिनेंट जनरल येवग्राफ एण्ड्रीविच ज़िवागो (एलेक गिनिस) द्वारा कम्युनिस्ट रूस में एक विशाल नदी के बाँध में कार्यरत मज़दूरों में से एक लड़की को बुलाकर 'ज़िवागो 'और 'लारा’ के बारे में पूछताछ करते हुए दर्शाया गया है। येवग्राफ उस लड़की को उसकी माँ 'लारा’ और उसके पिता 'यूरी ज़िवागो ' की कहानी सुनाता है और उसे ज़िवागो के कविता संग्रह को भेंट करता है। यहाँ से फिल्म की कहानी फ्लैश-बैक (पूर्वस्मृति शैली) में उद्घाटित होती है। छोटा यूरी अपनी माँ की शवयात्रा में ग्रोमिको दंपति के साथ बर्फ़ीली आंधी में पैदल चलता हुआ जा रहा है। यहीं से ज़िवागो का जीवन चक्र फिल्म में चल पड़ता है। फिल्म में यूरी ज़िवागो की वैचारिकता, उसका संघर्ष, रूसी समाज के प्रति उसके विचार, पत्नी टोन्या और नन्हें से साशा के प्रति उसकी ममता, युद्ध क्षेत्र में उसका समर्पित सेवा भाव, लारा से भेंट और उसकी अंतरंगता, विधि द्वारा उसका परिजनों से विछोह और पुन: लारा के आश्रय में उसके जीवन के निर्णायक समय का बीतना, कोमोरोस्की की खलनायिकी और उसके द्वारा लारा का शोषण आदि घटना चक्र फिल्म में दर्शकों को भावुक बना देते हैं। युद्ध की समाप्ति पर मास्को की सड़क पर बरसों बाद अचानक लारा को देखकर ज़िवागो का ट्राम से उतरकर उसके पीछे दौड़ते हुए जाना और एकाएक हृदयाघात से उसकी मृत्यु, दर्शकों को स्तब्ध कर देती है। लारा के रूप में जूली क्रिस्टी कहीं खो जाती है केवल लारा ही दर्शकों की स्मृतियों में हमेशा के लिए बस जाती है। फिल्म में बर्फ से ढँकी वेरिकिनो की वह गुंबदों वाली इमारत जहाँ बर्फ़ीली चाँदनी रातों में ज़िवागो लारा के सौंदर्य को कविता में ढालता है, अद्भुत बिम्ब का निर्माण करती है। बर्फ और चाँदनी की चादर में लिपटी रात्रि के ये दृश्य दर्शक को एक मादक सौंदर्यानुभूति से भर देते हैं। फिल्मांकन की दृष्टि से 'डॉ. ज़िवागो' एक अद्भुत फिल्म है जो आज भी फिल्म प्रेमियों की पहली पसंद है। 'डॉ. ज़िवागो' बोरिस पास्टरनाक की याद को ताज़ा कर देता है और साथ ही पास्टरनाक की प्रेमिका और संगिनी ओल्गा ईविन्स्काया को भी जीवंत कर देता है। डेविड लीन और कार्लो पोंटी ने 'डॉ. ज़िवागो' का निर्माण करके सही अर्थों में बोरिस पास्टरनाक को श्रद्धांजली दी है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

शोध निबन्ध

पुस्तक समीक्षा

साहित्यिक आलेख

सिनेमा और साहित्य

यात्रा-संस्मरण

अनूदित कहानी

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं