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बुद्धिमान कौआ

(राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी जी को सादर समर्पित )
 
एक बार की बात बताऊँ,
एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ,
ध्यान से बच्चों सुनो कहानी,
अच्छे से मन में गुनो कहानी॥
  
काक एक था बड़ा ही प्यासा,
लिए हुए वह जल की आशा,
इधर उधर उड़ ढूँढ़ रहा था जल 
काँव -काँव कर प्यासा-प्यासा॥
 
काफ़ी खोज-बीन पश्चात्,
सफल हुआ उसका प्रयास॥
दिया उसे घट एक दिखाई।
जान में उसकी जान सी आयी॥
 
घट का मुख था पतला सा,
और तली में था पानी।
काक ने कैसे पिया था पानी।
अब आगे की सुनो कहानी॥
 
तीव्र तृषा थी, सही न जाय,
तुरंत सोचने लगा उपाय।
पास पड़े थे कंकड़ पत्थर,
दबा चोंच में उन्हें उठाकर॥
 
लगा उठाने एक पर एक,
घट में डाले पत्थर अनेक,
तब जाकर जल ऊपर आया,
कौवे ने अपनी प्यास बुझाया॥
 
छककर प्यास बुझाकर तन की,
फिर सैर पे निकला नील गगन की।
केवल कथारस को ही न दीख,
बच्चों, इसमें छिपी हुई है सीख॥
 
धारण करो संघर्ष - व्यवहार,
मन से कभी न मानो हार।
करते रहो वार पर वार,
चाहे मुश्किल का हो पारावार॥

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