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कार दाहिनी दिशा क्यों उड़ी?

गोधूलि बेला की धुँधली सड़कें। गाँव होता तो गायों का झुंड, हेऽ–हेऽ कहता हुआ चरवाहा दिखता। यह तो शहर की गोधूलि बेला है। जहाँ मोटर–कारें पें–पें करती हुई धुआँ उगलती भाग रहीं हैं। यहाँ सभी भागते हैं, मैं भी भाग रहा हूँ, पर कभी–कभी दो पल सड़क के किनारे लकड़ी के तख्ते पर बैठ समुद्र की बलखाती लहरों व चाँदनी का खेल देख मन प्रसन्न हो जाता है। सारी थकान कूद जाती है उस लहर व चाँदनी की क्रीड़ा में, इसलिए थोड़ा समय चुरा कर ले आता हूँ यहाँ।

चंचल चाँदनी में रमे मन की गति उस कार के झटकेदार ब्रेक से रुक गई जो काफ़ी तेज़ गति से मानो सड़क पर उड़ रही थी। दौड़ कर सड़क पार करता हुआ नन्हा मासूम सड़क के दूसरे छोर पर आलोक स्तंभ से गेंद सा टकरा वहीं खिलौने सा ढेर दिखा। मैं उठ ही रहा था कि उसी कार से दो युवक उतरकर दौड़ने लगे। पहले युवक ने बच्चे को गोद में उठाया फिर "जल्दी अस्पताल ले चलो, जल्दी–जल्दी" कहते हुए हुए कार की तरफ़ आया। दूसरा युवक दौड़कर कार का दरवाज़ा खोल अंदर जा घुसा और बच्चे को अंदर से ले लिया। बच्चे को अंदर कर पहले आदमी ने खटाक से दरवाज़ा बंद करते हुए आगे की सीट के दरवाज़े, जिसे ड्रायवर ने पहले से ही खोल रखा था, के अंदर जाकर खट से बंद कर लिया।

कार फिर वैसी ही सड़क पर उड़ती हुई गोधूलि में विलीन हो गयी। ऐसी दुर्घटना- न लोगों का जमावड़ा न कोई बातें। पल से पल का सफ़र। जो भी हो, लगा भले मानुष ही हैं, तभी तो बच्चे को तुरंत लेकर भागे। फिर लहरों व चाँदनी में मन नहीं रमा।बोझिल मन लिए लौट आया अपने नीड़।

बच्चों के कलरव को निगल लिया है मोबाइल व कंप्यूटर गेम ने। घर में शांति और अंदर की बेचैनी, रहा नहीं गया। बच्चों का गेम छुड़ाकर अपनी गोद में बिठाया।  बच्चे की घटना से अवगत कराते हुए दौड़कर सड़क कभी न पार करने की सलाह दी। बच्चों को चूमकर उन्हें खाना खाकर सोने के लिए कहकर भेज दिया। पत्नी ने भी उस अज्ञात भले मानुष को सराहा जो तुरंत बच्चे को ले गया था।

घोर सन्नाटा, यहाँ झींगुर तो नहीं बोलते पर बीच–बीच में चौकीदार की सीटी सुनाई देती है। जिससे अँधेरे में भी हम समय का अंदाज़ा लगा लेते हैं। रात बहुत हो गयी पर नींद नहीं आ रही है। कभी बच्चे का गेंद सा उड़ना तो कभी पहले युवक के हाथ में निर्जीव सी लटकी काया आँखों के सामने तैर रही है। सोचता हूँ यदि मम्मी–पापा का हाथ छुड़ाकर भाग रहा होता तो वे ज़रूर पीछे–पीछे दौड़कर आते व देख ही लेते। वह तो अकेला था। कभी टीवी के जलेबियाँ वाले विज्ञापन का ध्यान आता जिसमें बच्चा कहता है ‘मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा’, कहीं वह भी तो अपने मम्मी–पापा से रूठकर…? उसके घरवाले उसे कहाँ–कहाँ नहीं खोज रहे होंगे। वह तो घायल ही था ना कि… फिर जब सारे अस्पताल बायीं दिशा की ओर हैं तो वह कार दाहिनी दिशा की ओर क्यों उड़ी…? 

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