कैरेबियाई देशों में हिंदी शिक्षण और अधिगम की परंपरा
आलेख | साहित्यिक आलेख शिव कुमार निगम15 Aug 2021 (अंक: 187, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
त्रिनिदाद और टोबैगो के विशेष संदर्भ में
शिव कुमार निगम,
द्वितीय सचिव (हिंदी, शिक्षा और संस्कृति)
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो
प्रस्तावना
ऐसा लगता है कि कैरिबियाई देशों में हिंदी भाषा 1838 में ही तब लायी गई जब भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार से गिरमिटिया मज़दूरों के पहले जत्थे को अफ़्रीकी गुलामों की स्वतंत्रता के बाद यहाँ के चीनी बाग़ानों में काम करने के लिए लाया गया था। त्रिनिदाद और टोबैगो सहित अन्य कैरिबियाई देशों में तभी से हिंदी प्रचलित है। गिरमिटिया मज़दूर अपने साथ अपनी भाषा हिंदी (विशेष रूप से भोजपुरी), संस्कृति, परंपरा, धर्म, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज़, त्योहार आदि लेकर आए थे। डच उपनिवेशवादियों को उनसे काम निकालने के लिए उनकी भाषा हिंदी सीखने के लिए मजबूर होना पड़ा होगा। इसी प्रकार, उन्होंने भी एक दूसरे के साथ संवाद करने और विशेष रूप से अपने हुकुमरानों की नाफ़रमानी से बचने के लिए स्वप्रेरणा से फ्रेंच, स्पेनिश और अंग्रेज़ी सीखी होगी या उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया होगा। इस प्रकार, यह माना जाता है कि हिंदी भाषा की जड़ें त्रिनिदाद और टोबैगो सहित अधिकांश कैरिबियाई देशों में काफ़ी गहरी हैं और कुछ हद तक इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित भी किया जा रहा है।
भारतीय उच्चायोग की भूमिका और प्रयास
भारतीय उच्चायोग द्वारा कोरोना काल से पहले त्रिनिदाद और टोबैगो के विभिन्न भागों में 18 हिंदी कक्षाएँ संचालित की जा रही थीं और उनमें 200 से अधिक छात्र हिंदी सीख रहे थे। कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई प्रतिकूल परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उच्चायोग ने भौतिक हिंदी कक्षाओं के स्थान पर आभासी हिंदी शिक्षण का रुख किया और विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से ऑनलाइन हिंदी कक्षाएँ शुरू कीं। नियमित ऑनलाइन हिंदी कक्षाओं के अलावा, भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ़ स्पेन ने हिंदी को यहाँ एक संपर्क भाषा के रूप में बढ़ावा देने के लिए ज़ूम प्लेटफ़ॉर्म पर एक हिंदी वार्तालाप कक्षा भी शुरू की है । यह कक्षा प्रत्येक गुरुवार को शाम 4.00 बजे (टी एंड टी समय) आयोजित की जाती है। हमारी हिंदी वार्तालाप कक्षा दिन-प्रतिदिन बहुत लोकप्रिय होती जा रही है। इसमें प्रतिभागियों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। कोरोना कि वज़ह से भौतिक हिंदी कक्षाओं और उनमें छात्रों की संख्या घटी है, परन्तु ऐसी उम्मीद है कि स्थितियाँ सामान्य होते ही यहाँ हिंदी शिक्षण की स्थिति में आशातीत अवश्य सुधार होगा।
इसके अलावा, उच्चायोग की टेक्नीकल टीम हर दिन अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर आज का हिंदी शब्द (वर्ड ऑफ़ द डे) भी अपलोड करती है। लघु हिंदी वीडियो स्किट भी साझा किए जाते हैं। इससे प्राप्त अनुभव ने हमें काफ़ी प्रोत्साहित किया और हमने ट्रिनबैगोनियन लोगों को हिंदी सीखने के लिए और अधिक अवसर पैदा करने हेतु अपने प्रयासों को तेज़ करने की योजना बनाई है। इस देश में कई लोग बिना स्क्रिप्ट पढ़े हिंदी फ़िल्म देखना, हिंदी बोलना और हिंदी में अभिवादन करना चाहते हैं। हिंदी वार्तालाप कक्षा संचालित करना इस दिशा में हमारा एक सफल प्रयोग है। आज के तेज़ी से विकसित हो रहे समाज, विशेष रूप से इस महामारी के दौर में हिंदी शिक्षण की सुविधाएँ माउस क्लिक पर लाखों लोगों को आसानी से सुलभ हैं। भारत सरकार के लीला प्रबोध, प्रवीण और प्राज्ञ नामक टूल भी हिंदीत्तर भाषी लोगों को अंग्रेज़ी के साथ-साथ उनकी अपनी भाषा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद से हिंदी सीखने की सुविधा प्रदान कर रहे हैं।
त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदी को एक और बहुत ही रोचक ढंग से जीवित रखा जा रहा है। एक बार यहाँ के एक स्थानीय कलाकार श्री शाम रामलाल जी ने भारतीय उच्चायोग के लिए एक "बैठक गाना" गाया। हो सकता है कि कुछ लोगों को बैठक गाना के बारे में जानकारी न हो, यह कैरिबियाई देशों में काफ़ी प्रचलित गायन पद्धति है, जिसकी उत्पत्ति भारत की भोजपुरी भक्ति गायन परंपरा से हुई है। रामलाल जी ने हिंदी भाषा में यह बताया कि वह तीसरी पीढ़ी के इंडो-ट्रिनिडाडियन हैं जिन्होंने इस अनोखे तरीक़े से इस भारतीय गायन परंपरा और हिंदी भाषा को जीवित रखा है। इतना ही नहीं वह यहाँ की अगली पीढ़ी को भी इस गायन परम्परा को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दे रहे हैं। इसी प्रकार यहाँ प्रचलित "चटनी" संगीत भी भारतीय गायन पद्धति का ही कोई मिश्रित रूप है, जो सभी समुदायों और वर्गों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है।
भारत सरकार के स्तर पर किए जा रहे प्रयास
"विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार" नामक कार्यक्रम विदेश मंत्रालय का बहुत ही महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। इसके तहत ही विभिन्न देशों में स्थानीय लोगों, विशेष रूप से भारतीय डायसपोरा की वर्तमान पीढ़ी को हिंदी सिखाने के लिए हिंदी कक्षाएँ संचालित की जाती हैं। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा विदेशी छात्रों को हिंदी सीखने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। ’दूरस्थ शिक्षा मोड’ के माध्यम से केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार द्वारा कुछ अन्य ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं, जिनके बारे में भारतीय उच्चायोग समय-समय पर विज्ञापन आदि देकर हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयास करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में त्रिनिदाद और टोबैगो से लगभग 34 से अधिक व्यक्तियों ने इन छात्रवृत्तियों का लाभ उठाया है। आमतौर पर, ये विदेशी छात्र भारत में वहाँ की संस्कृति और भाषा में ओत-प्रोत लगभग एक वर्ष का समय व्यतीत करते हैं और अपने देश में वापस आने पर भारत की संस्कृति और भाषा का प्रचार-प्रसार करते हैं। आशा है कि जैसे ही कोविड-19 की स्थिति में सुधार होगा, ये कार्यक्रम फिर से शुरू होंगे और विश्व समुदाय इसका अधिक से अधिक लाभ उठा पाएगा।
इसके अलावा, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार हर तीन वर्ष में भारत सहित भारतीय डायसपोरा बाहुल्य देशों में विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन करती है। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर, महाराष्ट्र, भारत में आयोजित किया गया था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। अब तक दुनिया के विभिन्न हिस्सों में 11 विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ़ स्पेन के लिए यह गर्व की बात है कि पाँचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन दिनांक 04-08 अप्रैल, 1996 के दौरान पोर्ट ऑफ़ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो में आयोजित किया गया था। दुनिया भर में हिंदी भाषा के बारे में जागरूकता पैदा करने और हिंदी को एक महत्वपूर्ण तथा विश्व भाषा के रूप में बढ़ावा देने के लिए विश्व हिंदी सम्मेलनों के साथ-साथ हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है। दुनिया के बाक़ी हिस्सों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए त्रिनिदाद और टोबैगो स्थित भारतीय उच्चायोग में भी हर साल विश्व हिंदी दिवस आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर यहाँ के नवनिर्मित महात्मा गाँधी सांस्कृतिक सहयोग संस्थान (एमजीआईसीसी) में कुछ न कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है।
भारत सरकार और मॉरीशस सरकार द्वारा मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की गई है, जो संयुक्त राष्ट्र संध के साथ मिलकर हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिस्थापित करने के लिए प्रयास कर रहा है। इसके अलावा, विश्व हिंदी सचिवालय विश्व स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक नवाचारी क़दम उठाता है। यह विश्व हिंदी संसाधनों और दुनिया भर के हिंदी और हिंदीत्तरभाषी विद्वानों, साहित्यकारों, लेखकों, कवियों और रचनाकारों का एक बहुत बड़ा डेटाबेस भी तैयार कर रहा है। इसके अलावा, विश्व हिंदी सचिवालय दुनिया भर में सरकार, संस्थागत आथवा व्यक्तिगत और ग़ैर-सरकारी संगठनों के स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों को समन्वित कर उनकी जानकारी एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने और अधिक से अधिक संख्या में लोगों को उनसे जोड़ने की दिशा में भी प्रयासरत है।
स्थानीय शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों की भूमिका
कुछ इंडो-ट्रिनी संगठन जैसे सनातन धर्म महा सभा (एसडीएमएस), नेशनल काउंसिल फ़ॉर इंडियन कल्चर (एनसीआईसी), हिंदी निधि, स्वाहा, आसजा, चिन्मया मिशन और ब्रह्मा कुमारी जैसे अन्य संस्थान भी अपने तरीक़े से त्रिनिदाद और टोबैगो में भारतीय संस्कृति, योग और हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रहे हैं। एक प्रमुख हिंदू संगठन एसडीएमएस ने अपने साठ प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में इस्तेमाल के लिए एक हिंदी पाठ्यक्रम विकसित किया है। त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने हिंदी कार्ड भी तैयार किए। एसडीएमएस का अपना एफ़एम रेडियो और जागृति टीवी नामक टीवी चैनल भी है, जो समय समय पर भारतीय संस्कृति और भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए काम करता है। एसडीएमएस त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदी शिक्षण को बढ़ाने के लिए अपने सभी संसाधनों के साथ उच्चायोग को अपेक्षित सहयोग प्रदान करता है। भारतीय उच्चायोग के एक शिक्षक उनके स्कूलों और मंदिरों में नियमित रूप से हिंदी और संस्कृत की कक्षाएँ लेते हैं। एसडीएमएस के पास देश भर में फैले 175 मंदिर हैं और सभी मंदिरों की प्रार्थनाओं में हिंदी का प्रयोग किया जाता है और अंग्रेज़ी में उनकी व्याख्या की जाती है। हर सुबह, आधे घंटे की प्रार्थना सेवा हिंदी में ही होती है, जो त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदी सीखने और इसके प्रचार-प्रसार का एक सुंदर और सहज तरीक़ा है।
हिंदी शिक्षण के लिए सबसे सुविधाजनक चैनल स्कूल ही होते हैं, परन्तु दुर्भाग्यवश हिंदी यहाँ के स्कूली पाठ्यक्रम का अब तक हिस्सा नहीं बन पाई है। इसके लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का विकास होना आवश्यक है, जो अधिकतम समावेशी और मानव संसाधन विकास के अनुकूल हो। इस प्रणाली के तहत एक सुसंगत, सहिष्णु, संवेदनशील और सूचित समाज के निर्माण के लिए भाषा को महत्वपूर्ण कारक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। यद्यपि त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदी भाषा स्कूली पाठ्यक्रम के भाग के रूप में शामिल नहीं है, फिर भी भारतीय प्रवासी, न केवल पुरानी पीढ़ी, बल्कि युवा वर्ग भी इसे अच्छी तरह से समझते हैं, हिंदी गीत, संगीत सुनते हैं और अंग्रेज़ी सब-टाइटल के साथ हिंदी फ़िल्में भी देखते हैं।
उपसंहार
मेरा मानना है कि विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार और संरक्षण में हिंदी ने भी सक्रिय भूमिका निभाई है। भारतीय और प्रवासी भारतीय न केवल त्रिनिदाद और टोबैगो, बल्कि दुनिया के हर हिस्से में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । हम सभी दुनिया भर में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में हिंदी फ़िल्मों के योगदान के बारे में भली-भाँति जानते हैं । भारत के साथ विश्व समुदाय के बढ़ते आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध विश्व की जनता को इस सर्वाधिक वैज्ञानिक और सीखने की दृष्टि से आसान भाषा की ओर आकर्षित कर रहे हैं। औपनिवेशिक अलगाव, सामाजिक-सांस्कृतिक विकास और भौगोलिक दूरी के बावजूद हिंदी हम लाखों लोगों को एक साथ जोड़ती है। आज, जैसे-जैसे दुनिया का विकास और विस्तार हो रहा है और वैश्वीकरण के माध्यम से हम आपस में जुड़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे दुनिया भर में हिंदी का वर्चस्व भी बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में 540 मिलियन से अधिक हिंदी बोलने वाले लोगों के साथ यह सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। वैश्वीकरण के इस युग में जब भारत एक प्रमुख वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है, हिंदी सीखना वास्तव में श्रेयस्कर है। मैं इसके उज्ज्वल भविष्य को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हूँ।
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