चाँद...
काव्य साहित्य | कविता अमित मिश्रा 'मौन'15 Jul 2019
रात अमावस गहरी काली
जाने क्यों ना आया चाँद
ओढ़ी बदरी सोया फिर से
थोड़ा सा अलसाया चाँद
सहमी चिड़िया डरी गिलहरी
थोड़ा और इतराया चाँद
जाने क्या फिर मुझको सूझा
मैं छत पे ले आया चाँद
देख रोशनी मेरे चाँद की
थोड़ा सा घबराया चाँद
आलिंगन से चाँद जल गया
जब बाहों में शरमाया चाँद
भौंह सिकोड़ी आँख तरेरी
पर कुछ ना कर पाया चाँद
भाँप बेबसी उस चंदा की
थोड़ा और जलाया चाँद
तेरी चाँदनी नाज़ करे क्यों
हमने भी तो पाया चाँद
हार मान ली बाहर निकला
गलती पे पछताया चाँद
हुई पूर्णिमा पूरा चंदा
नई रोशनी लाया चाँद
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