चाँद की सैर
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. प्रेमलता चसवाल 'प्रेमपुष्प'15 Oct 2019
आसमान से उतरा हिंडोला!
चमक-दमक से सजा नवेला!
परियाँ उसे पंखों से उड़ाएँ
मधुर सुरीले स्वर में गाएँ!
स्वर्ण-रूपहले तारों जड़ी,
हीरे-मोतियों झालरें तनी,
उसकी चमक देख चकराई,
मेरे लिए जो पालकी आई!!
छम-छम, जग-मग, झिलमिल करती
एक परी उसमें से उतरी!
पहले झुक अभिनंदन किया,
धक-धक धड़का मेरा जिया!
हाथ बढ़ा कर मुझे बुलाया
पालकी के गद्दे पे बिठाया।
ख़ुशी से कौतूहल से भरकर,
मैंने पूछा उससे आख़िर -
"बात बता रानी परियों की
मुझ पर ये अनुकम्पा किसकी?"
मधुर स्वर में उसने सुनाया -
"अच्छे कर्मों का फल यह पाया।
झाड़ी में फँसे ज़ख़्मी पिल्ले को
तुमने निकाला उस नन्हे को!
दूध पिलाया, दवा लगाई,
उसकी तुमने जान बचाई!
शीतल मन से निकली दुआएँ,
जो चन्दा तक सीधी जाएँ।
भेजा चाँद ने तुम्हें बुलाने को
स्निग्ध चाँदनी में नहलाने को!!"
आज मुझे यह सपना आया
चांद ने परी देश बुलवाया!!
चांद ने परी देश बुलवाया!!
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