चले हैं लोग मैं रस्ता हुआ हूँ
शायरी | ग़ज़ल कु. सुरेश सांगवान 'सरू’1 Oct 2019
चले हैं लोग मैं रस्ता हुआ हूँ
मैं बारिश धूप से टूटा हुआ हूँ
सुनाऊँगा कभी दिल की कहानी
अभी हालात से सहमा हुआ हूँ
बुलंदी पर सितारे आपके हैं
मैं कबसे बीच में अटका हुआ हूँ
कभी आओ इधर मुझको समेटो
मैं तिनकों सा यहाँ बिखरा हुआ हूँ
मैं काग़ज़ सा न फट जाऊँ ए लोगो
उठाओ मत मुझे भीगा हुआ हूँ
सभी अपने कहीं मैं छोड़ आया
सफ़र में दूर तक पहुँचा हुआ हूँ
सजाकर फूल काँटे दे गया तू
तिरे अंदाज़ का मारा हुआ हूँ
हवाएँ आ रहीं हैं उस गली से
गुल-ओ-गुलज़ार सा महका हुआ हूँ
हसीं फूलों से ख़ुश्बू आ रही है
मगर मैं ख़ार से उलझा हुआ हूँ
खुली है आँख ठोकर खा के मेरी
मैं ज़िंदा था नहीं ज़िंदा हुआ हूँ
तिरे आँगन में खेलेंगी बहारें
मैं झरना प्यार का बहता हुआ हूँ
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टिप्पणियाँ
Akshaya 2019/09/17 01:45 PM
Well expressed , excellent ,like it.
Chitra 2019/09/17 12:44 PM
Lovely
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Lalit Gupta 2019/09/17 04:38 PM
Great, The efforts of a science person is highly appreciable