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चले हैं लोग मैं रस्ता हुआ हूँ   

चले हैं लोग मैं रस्ता हुआ हूँ   
मैं बारिश धूप से टूटा हुआ हूँ

 

सुनाऊँगा कभी दिल की कहानी 
अभी हालात से सहमा हुआ हूँ

 

बुलंदी पर सितारे आपके हैं 
मैं कबसे बीच में अटका हुआ हूँ

 

कभी आओ इधर मुझको समेटो 
मैं तिनकों सा यहाँ बिखरा हुआ हूँ

 

मैं काग़ज़ सा न फट जाऊँ ए लोगो 
उठाओ मत मुझे भीगा हुआ हूँ    
  
सभी अपने कहीं मैं छोड़ आया  
सफ़र में दूर तक पहुँचा हुआ हूँ

 

सजाकर फूल काँटे दे गया तू  
तिरे अंदाज़ का मारा हुआ हूँ

 

हवाएँ आ रहीं हैं उस गली से  
गुल-ओ-गुलज़ार सा महका हुआ हूँ  

 

हसीं फूलों से ख़ुश्बू आ रही है  
मगर मैं ख़ार से उलझा हुआ हूँ

 

खुली है आँख ठोकर खा के मेरी 
मैं ज़िंदा था नहीं ज़िंदा हुआ हूँ

 

तिरे आँगन में खेलेंगी बहारें 
मैं झरना प्यार का बहता हुआ हूँ

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टिप्पणियाँ

Lalit Gupta 2019/09/17 04:38 PM

Great, The efforts of a science person is highly appreciable

Akshaya 2019/09/17 01:45 PM

Well expressed , excellent ,like it.

Chitra 2019/09/17 12:44 PM

Lovely

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