चलो ढूँढ़ें उस चिड़िया को
काव्य साहित्य | कविता राजेश ’ललित’1 Nov 2020 (अंक: 168, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
चलो ढूँढ़ें उस चिड़िया को
होती थी कभी डाल डाल पर
अब कहीं नहीं दिखती है
सुना है किसी बड़े से
जंगल में बसती है
चलो ढूँढ़ें अब उस जंगल को
जहाँ वह चिड़िया बसती है
जंगल जंगल हवा चली है
हवा चली तो आग लगी है
जहाँ पर सारी आग लगी हो
वहाँ न कोई चिड़िया बसती है?
चलो चलें उस जंगल में
जिसमें आग लगी है
न इसमें चिड़िया बसती
न ही इसमें हिरण दौड़ते
न इंसानों की बसती है
जंगल जंगल कहाँ बचे हैं?
जहाँ देखो इंसानों की बसती है
हर हाथ में आरी दिखती
हर डाल को वह कटती है
सूने हो गये वो सब जंगल
जहाँ वो चिड़िया बसती है
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