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चलो एक अभियान चलायें

बेटी की मासूमियत ने सवाल किया, 
ये दहेज़ क्या होता है पापा
पिता की हल्की सी मुस्कान ने कहा– 
पापा की तरफ से एक क़ीमती तोहफ़ा।
 
स्वीकार कर दहेज़ का माल 
हर किसी को, होता बड़ा अभिमान है
दुनिया की ये रीत है, 
जहाँ दहेज़ वहीं सम्मान है।
 
पिता के लाड में खेलती बेटी कहती– 
लड़की होना वरदान है
पति के लालच में जलती पत्नी कहती–
औरत होना अभिशाप है।
 
मत माँगो उस बाप से दौलत, 
उसने जिगर का टुकड़ा खोया है
मत बनाओ मजबूर एक बाप को कहकर, 
कि तू एक लड़की का बाप है।
 
बाप के आँसुओं में छिपे दर्द की क़ीमत कहाँ, 
लोग दहेज़ के माल पर नज़रें टिकाये बैठे हैं
आशीर्वाद के नाम पर बढ़ते दहेज़ की जड़ों को, 
चलो हम जड़ से उखाड़ देते हैं।
 
लुटेरों की बस्ती को तबाह करके, 
लालची नज़रों की नज़रें झुकाये
बेटियों के अमूल्य अरमानों को, 
नुमाइश की आग में जलने से बचाये।
 
बेटी पैदा हो जाये, बाप –
दिन रात कमाने लग जाये
बेटी को तोलते जिस दौलत से, 
चलो उस दहेज़ का नामोनिशान मिटायें।
 
मंडप है वो कोई बाज़ार नहीं, 
वहाँ क्यों कोई व्यापार चलाये
अमानत है वो बाप की अपमान नहीं, 
जिसे अपनाने की क़ीमत लेनी पड़ जाये।
 
शादी जैसे पवित्र बंधन को 
कोई धन से ना बाँध पाये
माँग में भरते सिंदूर जो हाथ, 
वही ख़ून से ना रँग जायें।
 
चलो एक अभियान चलायें, 
दहेज प्रथा का अंत करायें
धन से बनी इन प्रथाओं की बेड़ियों से, 
देश की बेटियों को आज़ाद करायें।

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