चाँद सितारों से क्या पूछें कब दिन मेरे फिरते हैं
शायरी | ग़ज़ल आबिद अली आबिद10 Jun 2007
चाँद सितारों से क्या पूछें कब दिन मेरे फिरते हैं
वो तो बेचारे खुद हैं भिखारी डेरे डेरे फिरते हैं
जिन गलियों में हम ने सुख की सेज पे रातें काटीं थीं
उन गलियों में व्याकुल होकर साँझ सवेरे फिरते हैं
इस नगरी में बाग और वन की यारो लीला न्यारी है
पंछी अपने सर पे उठा कर अपने बसेरे फिरते हैं
लोग तो दामन सी लेते हैं जैसे हो जी लेते हैं
“आबिद” हम दिवाने हैं जो बाल बिखेरे फिरते हैं
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