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चंद्रशेखर आज़ाद—भारत का बेटा

(जन्मदिन पर विशेष)

 

पण्डित चन्द्रशेखर 'आज़ाद' (23 जुलाई 1906 – 7 फरवरी 1931) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। आइये उनके जीवन के संघर्षो को जीने की कोशिश करें। 

(बालक चंद्रशेखर बाहर से खेल कर आता है पिता सीताराम तिवारी मन्त्र बुदबुदाते हुए उसे आग्नेय नेत्रों से देखते हैं। चंदू सहम कर माँ के पल्लू में सिमिट जाता है।)

पिता:

कहाँ से आ रहे हो? खेल के अलावा पढ़ाई लिखाई में ध्यान है कि नहीं। 

जगरानी:

जी भी तो वो बहुत छोटा है, पढ़ लेगा। 

पिता:

तुम्हारा लाड़ इसे न घर का छोड़ेगा न घाट का, मैंने सोचा था कि संस्कृत पढ़ा कर अच्छा पंडित बनाऊँगा लेकिन इसके लक्षण नहीं दिख रहें हैं। 

जगरानी:

संस्कृत पढ़ कर क्या लाट गवर्नर बन जायेगा, अभी खेलने-खाने के दिन है आप भी उसे हमेशा डाँटते ही रहते हो। चल चंदू भूख लगी होगी मक्खन रोटी खा ले। 

पिता:

सारा दिन भीलों के बच्चों के साथ निशानेबाज़ी करता है और पैर फैला कर सोता है और कोई दूसरा काम इसे है नहीं भगवान् जाने इस लड़के का क्या होगा! 

(पंडित सीताराम तिवारी मन्त्र बुदबुदाते हुए चले जाते हैं माँ जगरानी लाड़ले चंदू को प्यार से मक्खन रोटी खिलाती है।)

चंदू:

माँ ये अँग्रेज़ यहाँ क्यों हैं? 

जगरानी:

बेटा ये लुटेरे और कसाई हैं हमें लूट रहे हैं। 

चंदू:

माँ मैं बड़ा होकर इन अँग्रेज़ों को बहुत मारूँगा, तू मुझे एक बन्दूक दिला देना। 

जगरानी:

बेटा वो बहुत ताक़तवर हैं। 

चंदू:

माँ मुझ में भी बहुत ताक़त है 

(पास में पड़ी एक लोहे की छड़ को दोनों नन्हें हाथों से मोड़ने की कोशिश करता है। माँ हँसकर नन्हे चंदू को गले लगाती है।) 

 

दृश्य 2 

(1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग़ नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय विद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे। जब गाँधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन का फ़रमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सड़कों पर उतर आये। चंद्रशेखर अपने विद्यालय के छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे।)

चंद्रशेखर:

भारत माता की जय। 

सभी छात्र (एक स्वर में):

भारत माता की जय!

चंद्रशेखर:

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! आज देश हमें पुकार रहा है क्या आप मेरे साथ देश की इस पुकार को सुन रहे हो? 

सभी छात्र (एक स्वर में):

हाँ! 

चंद्रशेखर:

क्या आपको मालूम इन अँग्रेज़ों ने हमारे निहत्थे भाई-बहिनों को गोलियों से भून दिया है? इस घटना के विरोध में आज हम सभी एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने शहर में जुलूस निकालेंगे; क्या आप मेरा साथ दोगे? 

सभी छात्र (एक स्वर में):

हम सभी तुम्हारे साथ हैं। 

(चंद्रशेखर सभी छात्रों को आगे करके "भारत माता की जय", "गाँधीजी अमर रहें" के नारे लगाते हुए शहर में घूमने लगे। तभी पुलिस वहाँ पहुँची और इस जुलूस को घेर लिया चंद्रशेखर ने पुलिस इंस्पेक्टर से कहा इन सब को जाने दें ये मेरे कहने पर इस जुलूस में सम्मिलित हुए हैं। पुलिस चंद्रशेखर को पकड़ कर मजिस्ट्रेट मिस्टर खरेघाट कि अदालत में पेश करती है।)

मजिस्ट्रेट:

तुम्हारा क्या नाम है? 

चंद्रशेखर:

आज़ाद। 

मजिस्ट्रेट:

पिता का क्या नाम है? 

चंद्रशेखर:

स्वाधीन।

मजिस्ट्रेट:

तुम्हारा पता क्या है? 

चंद्रशेखर:

जेल। 

मजिस्ट्रेट:

जानते हो इस जुर्म कि क्या सज़ा मिल सकती है? 

चंद्रशेखर:

मौत। 

मजिस्ट्रेट:

जल्लाद इसको ले जाओ और सरकारी क़ानून तोड़ने के जुर्म में पंद्रह बेंत लगाओ। 

चंद्रशेखर:

भारत माता की जय। 

(जल्लाद चंद्रशेखर कि कमीज़ उतार कर दोनों हाथों को बाँध कर उनकी नंगी पीठ पर पहला बेंत मारता है। बालक चन्द्रशेखर कि पीठ कि खाल उधड़ जाती है फिर भी चंद्रशेखर मुस्कुराते हुए भारत माता की जय, महात्मा गाँधी की जय के नारे लगते हैं।)

जेलर:

आज के बाद सब भूल जाओगे बच्चे। 

चंद्रशेखर:

भारत माता के लिए मैं प्राण भी दे सकता हूँ। भारत माता की जय! 

(जल्लाद पूरे ज़ोर से फिर बेंत मारता है चंद्रशेखर कि पीठ लहूलुहान हो जाती है लेकिन उनके चेहरे पर शिकन नहीं आती है। अंतिम बेंत पड़ते ही बालक चंद्रशेखर बेहोश हो जाते हैं। थोड़ी देर बाद उन्हें होश आता है जेलर नियमानुसार सज़ा पूरी होने पर उनके हाथ में तीन आने पैसे रखता है।)

जेलर:

ये लो तुम्हारी बख़्शीश। 

चंद्रशेखर:

मैं ख़ैरात के पैसे नहीं लेता। 

(उन तीन आने को जेलर के ऊपर फेंक कर बालक चंद्रशेखर वहाँ से दौड़ लगा देता है।) 

 

दृश्य तीन 

(सभी क्रांतिकारियों ने मिल कर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना का निर्माण किया। इस संघटन में भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव आदि अनेक शहीद क्रांतिकारी थे। इन्होंने ब्रिटिश सम्राज्य कि नाक में दम कर दिया था। उन दिनों भारत को कुछ राजनैतिक स्वयत्तता देने के लिए जॉन साइमन के नेतृत्व में एक आयोग बना, जिसका भारत में पुरज़ोर विरोध हुआ। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों अपर बेरहमी से लाठियाँ बरसाईं जिसमें लाला लाजपत राय घायल हो गए एवं बाद में उनकी मृत्यु हो गई। चंद्रशेखर आज़ाद और उनके साथियों ने इसका बदला लेने का निश्चय किया।)

भगतसिंह:

लालाजी को मार दिया गया। 

चंद्रशेखर:

भगत इसका बदला लिया जायेगा इन फिरंगियों को मैं छोड़ूँगा नहीं चुन-चुन कर मारूँगा।

भगतसिंह:

पंडितजी आप बहुत आवेश में हो। 

बिस्मिल:

ये पंडित बहुत उतावला रहता है। कोई भी काम जल्दबाज़ी में नहीं सोच समझ कर करना चाहिए। 

आज़ाद:

गुरुजी आपके कारण चुप रहता हूँ वर्ना इन स्यालों को वो सज़ा देता कि ये ज़िन्दगी भर याद रखते।

बिस्मिल:

सुधर जा पंडित। 

भगतसिंह:

गुरुजी इनकी शादी करवा दो अपने आप सुधर जायेंगे। 

आज़ाद:

भगत तुझे मालूम है मौत से यारी कर चुका हूँ अब तो उसी से शादी होगी। 

भगतसिंह:

मौत से यारी तो सांडर्स भी करेगा, वो ज़रूर मरेगा। 

(17 दिसंबर 1928 को योजना के मुताबिक आज़ाद, भगतसिंह और राजगुरु लाहौर पुलिस अधीक्षक कार्यालय के बाहर छुप कर सांडर्स का इन्तज़ार करते हैं। सांडर्स अपने अंगरक्षक के पीछे मोटर साइकिल पर बैठता है।)

आज़ाद:

राज वो हरामी निकल न पाए। 

राजगुरु:

पंडितजी राजगुरु का निशाना कभी चूकता नहीं है। भारत माता की जय!

भगतसिंह:

राज माथे का निशाना लो। 

(राजगुरु सांडर्स के माथे पर निशाना लेकर गोली चलाता है। गोली सीधे निशाने पर लगती है। सांडर्स वहीं ढेर हो जाता है भगत सिंह दौड़ कर जाते हैं और सांडर्स के सीने में पाँच गोलियाँ उतार देते है। आज़ाद सांडर्स के अंगरक्षक को ढेर कर देते हैं।) 

दृश्य चार

(चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली कि केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकते हैं। पुलिस उन्हें गिरफ़्तार कर लेती है। तीनों को मौत की सज़ा सुनाई जाती है। आज़ाद भगत सिंह और उनके साथियों कि सज़ा कम करवाने के लिए गाँधीजी एवं नेहरूजी से बहुत विनय करते हैं वो पंडित नेहरू से मिलने जाते हैं।)

आज़ाद:

आप भगतसिंह कि सज़ा कम करवाने में मेरी सहायता कीजिये, आप गाँधीजी से कहिये वो वायसराय से बात करें। 

नेहरू:

पंडित जी ये तरीक़ा सही नहीं है आतंक के रास्ते से हम कभी स्वतंत्र नहीं हो सकते है। 

आज़ाद:

ये आपका दृष्टिकोण हो सकता है। मैं इन फिरंगियों के चरण नहीं छू सकता। 

नेहरू:

हमें गाँधीजी का अनुसरण करना होगा। हिंसा करके आप इस आन्दोलन को कमज़ोर कर रहे हैं। 

आज़ाद:

हम सर पर कफ़न बाँध कर निकले हैं अपना सब कुछ माँ भारती के चरणों में अर्पण कर दिया है और आप कह रहे हैं हम आन्दोलन को कमज़ोर कर रहे हैं। 

नेहरू:

हिंसा फैला कर कभी भी बड़ी सफलता प्राप्त नहीं कि जा सकती है। माफ़ कीजिये मै आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता। 

आज़ाद:

स्याला हम बताएँगे अँग्रेज़ों को कि हम क्या हैं। भारत माता की जय! 

(आज़ाद गुस्से में उठकर वहाँ से चले जाते हैं।)

दृश्य पाँच 

(अल्फ़्रेड पार्क में आज़ाद अपने साथी सुखदेव के साथ आगे कि रणनीति पर चर्चा कर रहे थे तभी किसी मुख़बिर कि सूचना पर सशस्त्र पुलिस बल ने उन्हें चारों और से घेर लिया।) 

नाटबावर:

तुम्हें पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया है अपने हथियार डालकर आत्म समर्पण कर दो। 

आज़ाद:

स्यालों ने अपनी चाल चल ही दी। 

आज़ाद:

तुम्हारे बाप में हिम्मत हो तो पकड़ कर दिखाओ। 

(नाटबावर गोली चलाता है गोली आज़ाद के जाँघ में लगती है इसके जबाब में आज़ाद नाटबावर पर गोली चलाते हैं इससे नाटबावर कि कलाई टूट जाती है।)

सुखदेव:

पंडितजी आप निकल जाओ में इन्हें रोकता हूँ।

आज़ाद:

सुखदेव आज़ाद भागने वालों में से नहीं है, मैं इन्हें आज बताऊँगा कि माँ भारती का बेटा कैसे उसके चरणों में शीश चढ़ाता है; तुम पीछे से निकलो और अपने साथियों को साथ लेकर भगत सिंह को छुड़ाने का प्रयत्न करना। जाओ ये मेरा आदेश है। 

(सुखदेव भरी आँखों से आज़ाद के पैर छू कर पीछे से निकल जाते हैं। उन्हें मालूम था कि आज़ाद से ये उनकी अंतिम मुलाक़ात है।) 

इंस्पेक्टर विश्वेश्वर:

ये हरामी कहाँ छुपा है। 

आज़ाद:

मैं यहाँ हूँ हरामज़ादे। तुम जैसे गद्दारों के कारण ही ये फिरंगी हम पर शासन कर रहें है तुम को इसकी सज़ा मैं आज दूँगा। 

(आज़ाद उस इंस्पेक्टर के आवाज़ की दिशा में गोली चलाते हैं और उस इंस्पेक्टर का जबड़ा टूट जाता है।) 

(क़रीब दो घंटे तक आज़ाद उस पूरी पुलिस टुकड़ी को रोक कर रखते हैं अंत में एक गोली बचती है।)

आज़ाद (स्वयं से):

बस पंडित तुम्हरी जीवन यात्रा यहीं तक थी। माँ भारती मुझे क्षमा करना मैं अपना उद्देश्य पूर्ण नहीं कर सका। माँ अगला जन्म अगर हो तो तेरी ही गोदी मिले अंतिम विदा। 

(आज़ाद अपनी माउज़र को कनपटी पर रखते हैं और गोली दाग देते हैं।) 

भारत का ये सपूत इस शान से जिया उसी शान से शहीद हुआ। जब भारत के इस बेटे की शव यात्रा निकली तो हर तरफ़ आँसुओं का सैलाब था। 

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