चर्चा
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता पाराशर गौड़14 Oct 2007
आपने सुना?
क्या?
कवि सम्मेलन में चलनी थी कविता
चल गए हाथ, हाथापाई हो गई
ये तो हद हो गई!
मैंने पूछा-
कवि था या कवयित्री..?
बताइये तो सही कौन था..?
वो बोले-
सुनने में आया है.. उनका ’शैडो’ था
तौबा तौबा..
ये तो अनहोनी हो गई
कविता कब से दारासिंह हो गई??
सम्मेलन अब तो अखाड़े होने लगे
कविता की जगह- हाथ पाँव चलने लगे
अब तो..
कवि सम्मेलनों में जाने से पूर्व
कवयित्रियों के नाम देखने होंगे
अगर उनका नाम है—
और उनके “वो” आ रहे हैं..
फिर तो भैय्या..
अब तो कवियों को अपने साथ
गार्ड रखने होंगे!!
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