छुआछूत
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी20 Feb 2019
'अ' पहली बार अपने दोस्त 'ब' के घर गया, वहाँ देखकर उसने कहा, "तुम्हारा घर कितना शानदार है - साफ़ और चमकदार।"
"सरकार ने दिया है, पुरखों ने जितना अस्पृश्यता को सहा है, उसके मुक़ाबले में आरक्षण से मिली नौकरी कुछ भी नहीं है, आओ चाय पीते हैं।"
चाय आयी, लेकिन लाने वाले को देखते ही 'ब' खड़ा हो गया, और दूर से चिल्लाया, "चाय वहीं रखो...और चले जाओ....।"
'अ' ने पूछा, "क्या हो गया?"
"अरे! यही घर का शौचालय साफ़ करता है और यही चाय ला रहा था!"
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