छोटू
काव्य साहित्य | कविता डॉ. भावना शर्मा1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
आज फिर किसी ढाबे पर
एक छोटू मिला।
हँसता है,
हँसाता है,
हर आवाज़ पर
दौड़ कर जाता है।
“जी भैया जी, अभी आया।
जी मैडम जी, अभी लाया”
मेज़ों पर कपड़ा लगाता है,
झूठे बर्तन उठाता है,
पानी पिलाता है,
खाना खिलाता है।
पाँच-पाँच रुपये की
छोटी सी बख़्शीश में
मुस्कुराता है,
ख़ुश होता है,
इठला जाता है,
मेरे देश का भविष्य।
ना जाने कितने ही
ढाबों पर,
दुकानों में,
सड़कों पर,
मकानों में,
ना जाने कितने ही
ऐसे छोटू की,
छोटी सी जेब में,
सारी तरक़्क़ी को
आँख दिखाता है,
चिढ़ाता है,
मख़ौल उड़ाता है,
और मंद-मंद मुस्काता है,
मेरे देश का भविष्य।
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