अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

चितेरा कथाकार

श्रीमान ‘क’ महानगर के लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार थे। यद्यपि वे चाँदी का चम्मच लिए पैदा हुए और पश्चिमी संस्कृति से ओतप्रोत थे तथापि उनकी कलम सदा गरीबों व वंचितों के दायरे में ही घूमती थी। गरीब-गुरबे ही उनकी कहानियों का कच्चा माल थे। वे कई साहित्यिक संस्थानों के ऊँचे पदों पर शोभायमान थे और साहित्य में कम, राजनीतिक साहित्य में अधिक रस लेते थे। इस वर्ष भी उनके नए कहानी-संग्रह ‘आधी रात में भूखे बच्चे’ को सर्वश्रेष्ठ कथा-सम्मान पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी। यह अलग बात थी कि अपनी पचास साला ज़िंदगी में उनका भूख से कभी सपने में भी आमना-सामना हुआ हो। विडंबना तो यह थी कि फिर भी पुरस्कार-वितरण समितियाँ उनकी कहानियों में न जाने कहाँ से मौलिकता की गंध ढूँढ ही लेती थी और उन्हें समकालीन श्रेष्ठ चितेरे कथाकार का दर्जा देती थी।

आज सुबह से ही श्रीमान ‘क’ बेचैन दिखाई दे रहे थे क्योंकि उन्हें आज पुरस्कार-वितरण समारोह में सम्मानित किया जाना था, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी देरी का कारण उनकी आधुनिका पत्नी का मेकअप था। उनकी पत्नी की भी हिन्दी साहित्य में बिलकुल रुचि न थी, लेकिन मान-सम्मान की भूख उन्हें भी उतनी ही थी, जितनी श्रीमान ‘क’ को थी।

श्रीमान ‘क’ अपने ड्राईवर से बोले-“आज तुम पीछे बैठो, नई कार का उद्घाटन हम करेंगे।” दोनों पति-पत्नी अपनी नई फिएस्टा में धँस गए। आकाश में धुँध छाई हुई थी, लेकिन फिर भी श्रीमान ‘क’ बड़ी तेजी और उतावली में कार चला रहे थे। अचानक उनका ध्यान भंग हुआ, उनकी गाड़ी का का बाहरी शीशा किसी आदमी को बहुत बुरी तरह लगा और वह ‘बचाओ’ कहता हुआ ज़मीन पर गिर पड़ा। श्रीमान ‘क’ ने बहुत मुश्किल से गाड़ी को सँभालते हुए ब्रेक लगाई।

ड्राईवर गाड़़ी से निकलकर घायल आदमी के पास गया तो उसे देखकर उसका दिल पसीज गया। उस आदमी के हाथ और मुँह पर चोटें आईं थी, लेकिन वह अपनी चोटें भूल, ज़मीन पर बिखरे चावल अपने थैले में भर रहा था। ड्राईवर ने उससे कहा कि तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलते है। वह आदमी बोला- "नहीं बाबूजी, कल से मेरे दोनों बच्चों और पत्नी ने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है। मुझे अब किसी भी तरह घर जल्दी पहुँचना है।"

"बचाव तो हो गया?" -श्रीमान ‘क’ ने पूछा।

"हाँ,"- ड्राईवर बोला।

"तो फिर इतनी देर वहाँ क्या कर रहे थे? पहले ही काफी देर हो चुकी है, चलो अब तुम ड्राईव करो, न जाने कहाँ से सुबह-सुबह मरने चले आते हैं। ड्राईविंग का सारा मज़ा ही किरकिरा कर दिया," - श्रीमान ‘क’ झल्लाते हुए बोले।

"साहब, बेचारे को बहुत चोट लगी लेकिन कुछ न बोला। वह बहुत सीधा और ईमानदार आदमी था, उसकी जगह अभी कोई और आदमी होता तो न जाने हमारे साथ क्या करता?"-ड्राईवर ने बोलते हुए पीछे देखा। श्रीमान ‘क’ आँखें बंद किए न जाने कौन-सी दुनिया में सैर कर रहे थे और उनकी पत्नी अपना मेकअप ठीक कर रही थी। ड्राईवर के सामने ही श्रीमान ‘क’ का कहानी-संग्रह ‘आधी रात में भूखे बच्चे’ ऊपर रखा हुआ था और उसका आवरण उसे मुँह चिढ़ा रहा था।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

बाल साहित्य कहानी

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं