चोट गहरी है जो दिखती नहीं है
शायरी | ग़ज़ल समीर कुमार शुक्ल11 Oct 2016
चोट गहरी है जो दिखती नहीं है
मगर आराम से रहने देती नहीं है
कई बोझ है उम्र के कंधों पे मेरी
कमर अब मुझे उठने देती नहीं है
उकसाकर ख़ुदकुशी की ख़ातिर
दुनिया अब उसे मरने देती नहीं है
हुनर तेरा है तूँ ही तराश उसको
तालीम सब कुछ तो देती नहीं है
सख़्त लहजों में हुई है परवरिश
जो बदज़बानी करने देती नहीं है
नर्गिस के खियाबां से मोहब्बत
मुझे ज़मीं से उखड़ने देती नहीं है
(नर्गिस= एक किस्म का फूल)
(खियाबां= पुष्पवाटिका)
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