चुनाव
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता सुनील चौधरी1 Jun 2019
वह खाँसता हुआ आया
और
बैठ गया
नेता जी के पास पड़ी
कुर्सी पर
नेता जी भन्नाए
बोले-
साले, हरामज़ादे
औक़ात में रह।
वह डरा,
सहमा
और
बैठ गया
वहीं गीले चौके में
(गोबर और पीली मिट्टी से लीपी गयी भूमि)
नेता जी ने
पाँव पर पाँव रखा
पॉकेट से सिगार निकाली, जलायी
और एक लंबा कश खींचकर
कहा-
बोल साले, हरामज़ादे
क्या काम है?
भिक्खू ने आँखें मूँद
वह पल याद किया
जब नेता जी गिड़गिड़ाए थे।
चरण गहे थे
और
धीरे से कहा -
कुछ नहीं हुज़ूर।
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