कोरोना काल - मुक्तक
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
1.
इस कोरोना काल में रहिए सब से दूर,
पद और धन का सब नशा हो जाएगा चूर।
हो जाएगा चूर न कोई मिल पाएगा,
अगर लगा यह रोग तो बहुत सताएगा।
2.
इस 2020 ईयर में खेले कोरोना खेल,
अस्पताल बाज़ार हो या हो कोई जेल।
या हो कोई जेल डर यह मन में समाया,
जानें सारे देश रोग यह चीन से आया।
3.
मास्क पहनकर जा रहे,
मुँह देखो है बंद।
गंगा जल को छोड़कर,
सैनिटाइज़र संग।
सैनिटाइज़र संग,
रोग लगा यह कैसा?
डर-डर कर सब जी रहे,
काम ना आवे पैसा।
4.
सहमा-सहमा आदमी,
मुँह पर देखो मास्क।
बन गई सबसे दूरियाँ,
बचना इससे टास्क।
बचना इससे टास्क,
कोरोना सब पर भारी।
सारी रंगत खो गई,
सब तरक़ीबें हारी।
5.
यह बेरोज़गारी की भीड़ और यह निराशा,
यह कोरोना काल और आदमी डरा सा।
मुश्किलों का दौर है सब दिख रहा,
ज़िन्दगी के झंझावात में आदमी पिस रहा।
6.
लोगों के जीवन में डर कैसा है?
अंधकार के प्रहर जैसा है।
अख़बारों की ख़बरें भी डराती हैं,
सहमा-सहमा सा शहर कैसा है?
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