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कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर 

हल्के में लेने का नतीजा ये कि कोरोना ने सबकी तबियत जमकर भारी कर रखी है। ये पिद्दी वायरस अब ज़िद्दी हो गया लगता है। एक ओर कोरोना का क़हर है तो दूसरी ओर कोरोना से कम घातक नहीं, ये दूसरा क़हर शहर-शहर है! ये घर-घर, गली-गली  अचानक उग आये बिना डिग्री वाले डॉक्टरों की पौध है। इनके पास हर लक्षण के लिये नुस्खे हैं। कोरोना कैसे न हो, तो कोरोना होने और हो जाने के बाद क्या करना है। कोरोना के नये म्यूटेंट के पहले इनके नुस्खों के म्यूटेंट आ  जाते हैं!

कोई कहता है कि रोज़ सुबह शाम गिलोय ले लो, कोरोना क्या उसका बाप भी पास नहीं फटकेगा। तो कोई कह रहा है कि यदि खाँसी के लक्षण हैं तो लौंग काली मिर्च अदरक को पीस कर शहद में मिला कर चट कर जायें। ये कोरोना वायरस को चट कर जायेगा। गंगू ने खूब पिया लेकिन खाँसी है कि दो माह से गयी नहीं। कोई लहसुन, तो कोई दालचीनी को तो कोई नीम को फ़यदेमंद बता रहा। एक कह रहे हैं कि सुबह उठ कर गर्मा-गर्म सूप से गले को तर कर लो वायरस हमेशा के लिये तर जायेगा। 

एक दोस्त छह माह पहले कोरोना पाज़ीटिव हुये थे तो अब कोरोना ज्ञान के भंडारगृह में रूपांतरित हो गये थे। बोले कुछ नहीं यदि खाँसी हो तो शहद में तुलसी पत्ता अदरक डालकर दिन में तीन बार गटक लो कोरोना पूरी तरह सटक जायेगा। हाँ, ऊपर से मुलैठी अलग से खा लो। बोले ये उनका ईजाद किया फ़ार्मूला है। 

डॉक्टर ने नहीं कहा पर ये कह रहे हैं कि ज़रा भी लक्षण हों तो फेविपीर लेना शुरू कर दो। तो दूसरा कह रहा है कि संक्रमण यदि ज़्यादा हो जाये तो रेमडेसिविर के छह डोज़ ज़रूरी हैं। पल्स आक्सीमीटर पर आक्सीजन स्तर का विश्लेषण लोग अपने अपने ढंग से बता रहे हैं। कोई कह रहा है कि 95 के नीचे है तो ख़तरे की घंटी तो कोई कह रहा कि 92 के नीचे है तो अस्पताल में बिना देरी किये भर्ती हो लो। कहाँ से हो लो; आक्सीजन वेंटीलेटर व बेड की गारंटी तुम दोगे क्या? सलाहें डाक्टर कम, ये अ-डाक्टर ज़्यादा दे रहे हैं। ऐसे वीडियो लोग कोरोना के बारे में बना-बना कर डाल रहे हैं कि क्या विशेषज्ञ चिकित्सक भी बना पायेंगे। ऐसे ज्ञानवीरों व वीडियोजीवियों को तो मेडिकल स्टूडेंटस को लेक्चर देने के लिये बुलाना चाहिये; विशेषज्ञों की कमी एक झटके में पूरी हो जायेगी। सही में देश में प्रतिभा कूट-कूट कर भरी है। मौक़ा नहीं मिला था, इन लोगों ने कोरोना की आपदा में अपनी प्रतिभा को अवसर में बदला है! कोरोना स्रोत व्यक्तियों के इस नये वर्ग के पास हर लक्षण के पीछे का कारण व उसका आगे कोई न कोई इलाज मौजूद है। एक कहेगा रोज़ संतरे का रस पीओ तो दूसरा कहेगा नहीं खट्टा कुछ नहीं लेना, गले का संक्रमण और बढ़ा देगा। आज घर-घर में रसोई में जड़ीबूटियों का भंडार है। ख़ून पतला करने की दवाई की सलाह देने वाले कह रहे हैं फलां व्यक्ति तो थक्का लगने से भगवान को प्यारे हो गये। इनकी थक्का की मेग्नीफाई की हुई बात आपको भय का धक्का लगवा देती है।

सब कुछ ठीक है आपका, साँस लेने में कोई दिक़्क़त नहीं, कोई कमज़ोरी नहीं। पर ज़रा सा संक्रमण सीटी स्कैन में आ गया तो ये घर-घर छाप डाक्टर सलाह दे रहे हैं कि अविलंब अस्पताल में भर्ती हो जाओ। डॉक्टर ने अभी नहीं कहा भर्ती होने। आप स्वयं को स्वस्थ महसूस कर रहे हों तो गंदी बात है। रेमडेसिविर की कालाबाज़ारी चलेगी, एक ही बेड पर मृतक व ज़िंदा दोनों चलेंगे, विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह नहीं चलेगी। आक्सीजन की अव्यवस्था चलेगी पर यह नहीं चलेगा कि आप स्वस्थ महसूस करो, भर्ती न हो। सर्दी खाँसी बुखार हुआ तो मतलब केवल कोरोना ही होगा। साली सारी अन्य बीमारियाँ मलेरिया, टायफाईड, डेंगू साधारण वाईरल बुखार सब तो ऐसी कोरी साबित हो गयीं जैसे कि चुनाव के बाद पूर्व में दिये आश्वासन साबित होते हैं।

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये तो सेनेटाईज़र है, मास्क है  दो गज की दूरी है। लेकिन इनकी सलाहों की निकटता बहुलता व तीव्रता के संक्रमण से कैसे बचें; ये परोपकार सलाहकार बनकर कर रहे हैं। हाँ सलाह की लक्ष्मण-रेखा से एक क़दम आगे ये नहीं बढ़ते। इनसे बेहतर तो वो ग़रीब गैस वेल्डिंग करने वाला शख़्स है जिसने ज़िला अस्पताल को अपना आक्सीजन सिलेंडर दान कर दिया। या वो 85 साल का बुज़ुर्ग जिसने एक बदहवास पत्नी का अपने पति हेतु बेड की गुहार करते देख अपना बेड स्वेच्छा से त्याग अस्पताल से विदा ले ली। और तीन दिन बाद इस दुनिया से भी विदा ले ली।

वैक्सीन ज्ञान में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, एस्ट्राज़ेनेका, फाईज़र, सीरम इन्स्टटीटयूट ऑफ़ इंडिया  इन महा-ज्ञानियों के सामने अल्पज्ञानी साबित होंगी। वैक्सीन बनती कैसे है, काम कैसे करती है, दूसरी कब लगाना है, कब नहीं लगाना है  कौन सी बेहतर है  किसके क्या साईड इफेक्ट हैं– अभी तो निर्माता कंपनी भी पूरा नहीं जान पाई हैं लेकिन इन त्रिनेत्र धारी ज्ञानकूटों को सब पता है। डॉक्टरी जमात भी इन अ-डॉक्टरी जमात से भौंचक है! 

एम्स डायरेक्टर तो सप्ताह में एकाध ब्रीफ़िंग देते हैं। पर ये लोग दिन में दो तीन बार और उससे अधिक भी अपनी ब्रीफ़िंग व्हाटस ऐप से देते हैं। 

हे ईश्वर! तू दोहरी मार से बचा एक ओर कोरोना का क़हर, अस्पतालों में बेड व आक्सीजन की कमी, रेमडेसिविर की कालाबाज़ारी, भय के बाज़ार की मार तो दूसरी ओर इन "घर-घर छाप डाक्टरों" की नित नयी सलाहें और बातें जो थोड़ी बहुत जान बची है उसे भी निकालने को आतुर हैं। 

कोरोना संक्रमण के साथ ही बेसिरपैर की अकूत सलाहों का संक्रमण भी कम होना समय की बेहद ज़रूरी माँग है।  

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