दादी माँ के क़िस्से
काव्य साहित्य | कविता प्रभात कुमार1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
आओ सुने दादी माँ के क़िस्से,
जो सब बच्चों के थे हिस्से
उम्र के थे अनमोल क़िस्से,
उस उम्र के थे बेहतरीन हिस्से
आओ सुने दादी माँ के क़िस्से।
कहती है दादी माँ–
उड़ने दो उन हाथों को,
छूने दो आसमान के बादल
किताबों की दुनिया को,
सपने देख खिलखिलाते सब एक साथ,
दादी माँ के सपने में थी वो बात
न खाने की कमी, न पढ़ने का डर
बस ख़्वाहिशों के संग, आसमान तर
तितलियों सा सजने सँवरने का
बचपन का था वो सुनहरा पहर।
न रोक, न टोक,
बच्चों की आपसी नोक-झोंक
जग की सैर कर कुछ पल
बचपन को ठहर जाने दो
आसमान की चादर में
नन्हे हाथों को लहराने दो,
दादी माँ के क़िस्से में,
लड़खड़ाते शब्दों के साथ,
बचपन में खो जाने दो,
फिर से दादी माँ के क़िस्से हो जाने दो॥
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