दंगल
काव्य साहित्य | कविता गुरुदेव प्रजापति 'फोरम'1 Mar 2019
दंगल
तो
रोज़ होते है
मेरे भीतर
रोज़
लड़ता हूँ
ख़ुद से
अकेले अकेले
और
हर वक़्त
मैं ही
हार जाता हूँ
ख़ुद से।
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