दीमक
काव्य साहित्य | कविता संजय वर्मा 'दृष्टि’15 Aug 2021 (अंक: 187, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पिता की किताबें
लिखी थी उन्होंने
रात रात भर जाग कर
कल्पनाओं के भावों से
घर की ज़िम्मेदारी निभाने के साथ।
कहते साहित्य की पूजा
ऐसे ही होती
साहित्य का मोह भी होता
जो लगता, तो अंत तक साथ
नहीं छोड़ता
इसलिए कहा भी गया कि
शब्द अमर है।
पिता का चश्मा, क़लम, ’कुबड़ी’1
अब सँभाल के रखे
उनकी किताबों के संग
ऐसा लगता घर म्यूज़ियम, लायब्रेरी हो
यादों की।
माँ मेहमानों को
पिता की लिखी किताबें बताती, पढ़ाती।
मैं भी लिखना चाहता हूँ और
बनना चाहता हूँ
पिता की तरह लेखक
मगर, भागदौड़ की ज़िन्दगी में फ़ुर्सत कहाँ
मेरे ध्यान ना देने से ही
लगने लगी पिता की किताबों पर दीमक।
साहित्य का आदर सम्मान करूँगा
तब ही बन पाऊँगा
पिता की तरह लेखक।
अब पिता की किताबों के संग
अपनी किताबों को भी
बचाना है दीमकों से।
1. कुबड़ी का अर्थ= चलने के सहारे हेतु एक प्रकार की लकड़ी जो हॉकी के आकार की मुड़ी हुई होती है। उसे मालवी-निमाड़ी बोली में कुबड़ी बोलते हैं। जिसका कूबड़ निकला होता है यानि मुड़ी होती है। उस आकार से कुबड़ी शब्द बना है।
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