देह और आत्मा
काव्य साहित्य | कविता अतुल चंद्रा8 Nov 2016
स्त्री!!
तुम देह हो
आत्मा भी
और तुमने सिखा है जीना
देह और आत्मा दोनों को
कि जब जब भी
तुम पर प्रहार हुआ है
देह के खोल को
कवच बना कर
जीवित रखा आत्मा को
इसलिए
आत्मरूपी बीज से आज तुम
पल्लवित और पुष्पित हो
पुरुष!!
तुम देह हो
और देह ही
तुम्हें कवच बनना था
आत्मा के लिए
पर रखा देह पर अधिकार तुमने
माँगा देह से ही प्यार तुमने
इसलिए
देह रूपी गंध में
समझ न सके तुम
आत्मा पल्लव और पुष्प को।
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