देखता ही रह गया
शायरी | ग़ज़ल नीना पॉल (स्वर्गीय)30 Jun 2012
ये कौन आया सामने मैं देखता ही रह गया
चाल वही अंदाज़ मगर कुछ और कह गया
देख उसे मैं खो गया माज़ी की याद में
इक अक़्स निगाहों में तैरता ही रह गया
गुम यूँ किसी की याद में था होश न रहा
जाने कब मैं आँसुओं की रो में बह गया
शिकवे शिकायतों में बात हद से बढ़ गई
उसका हर एक तीर कलेजे पे सह गया
इल्ज़ाम धरने वाले ने मुड़ कर नहीं देखा
कुछ कह न पाया काँपते लबों ही रह गया
आ कर करीब मुझ को जगाया ख़्याल से
इक अजनबी जो अपना होते-होते रह गया
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