देर तक
शायरी | ग़ज़ल चेतन आनन्द20 Dec 2014
याद आते हैं हमें जब चंद चेहरे देर तक
हम उतर जाते हैं गहरे और गहरे देर तक।
चाँदनी आँगन में टहली भी तो दो पल के लिए
धूप के साये अगर आये तो ठहरे देर तक।
बंदिशें दलदल पे मुमकिन ही नहीं जो लग सकें
रेत की ही प्यास पर लगते हैं पहरे देर तक।
हम नदी हैं पर ख़ुशी है, हम किसी के हो गए
ये समंदर कब हुआ, किसका जो लहरे देर तक।
ये हक़ीक़त है यहाँ मेरी कहानी बैठ कर
गौर से सुनते रहे कल चंद बहरे देर तक।
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