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धार्मिक भाइयों की मुस्लिम बहन

ये मिट्टी
बन जाती है शोला
धार्मिक भाइयों की मुस्लिम बहन
शरीअत के मुताबिक़
सख़्त पर्दे के बीच 
बचपन के किसी खेल का नाम याद
न किसी फ़िल्म का
बचपन में ही
सँकरे बावर्चीख़ाने में बैठकर
सुना करती है
भाइयों के दाख़िलों की आवाज़ें
जो उतर जाती हैं
अतल गहराइयों में
और सिखा देती हैं उसे आत्मत्याग
ख़ुश होना
कामयाबी पर उन धार्मिक भाइयों की
जिनके लिए
थरथराती हुई
भरी सर्दी की रातों में
बुनती है वह बारीक ऊन के
सुंदर स्वेटर और जर्सियाँ
भूखे रहकर 
गोश्त की कई ग़िज़ाएँ
जिन्हें बनाते-बनाते
आ जाता है वक़्त उसके जाने का 
पर्दे में रहकर 
एक चार दीवारी से दूसरी
चार दीवारी की ओर प्रस्थान 
यही है वो स्थान
जहाँ भेज दिया जाता है उसे
कुछ कपड़ों, गहनों और बर्तनों के साथ
जिन्हें चिपकाए रहती है 
अपने सीने से उम्रभर वह
और कर लेती है बातें
अपनी तन्हाई की कुछ, बिन कुछ बोले
कोसों दूर कर दी गई है अब शरीअत
धार्मिक भाइयों की मुस्लिम बहन के लिए
बाप की ज्यादाद में क्या है 
यह भूलना ही है उसे
याद रखना है तो बस यह
की दूसरी चार दीवारी से आवाज़
बाहर न आने पाए…!

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