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धूप और बारिश

पंद्रह दिन पहले पति की मृत्यु हो गई थी। श्राद्ध-क्रिया आदि संपन्न हो जाने के बाद क़रीबी रिश्तेदार भी अपने अपने घर वापस जा चुके थे।

चालीस वर्ष की माँ को कमरे में गुमसुम बैठी देख इकलौता बेटा संजीव माँ के घुटने के पास बैठा और उसने कहा, "अब हमलोग कैसे जियेंगे मम्मी, सभी कहते हैं, पिताजी बरगद के पेड़ के समान थे, उनकी छाया से वंचित हो गए हमलोग।"

बारह साल के बेटे की बातें सुन माँ ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा तुम ज़्यादा चिंता नहीं करो, मैं हूँ न, बरगद का पेड़ नहीं बन सकती, तुम्हारे लिए छाता ज़रूर बन सकती हूँ। सुख–दुख की गर्मी बरसात में तुम्हारी रक्षा करूँगी।"

बेटे ने माँ के आँचल से उसकी आँखों को पोंछते हुए कहा, "मम्मी, तुम भी नहीं रोना,पढ़-लिखकर मैं भी बड़ा आदमी बनूँगा और तुम्हारा सहारा भी।"

"ज़रूर बेटा, धैर्य और हिम्मत से हम लोग  आगे का सफ़र तय करेंगे," बेटे को सीने से चिपका कर माँ ने कहा।

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