डिब्बे में ज़िन्दगी
काव्य साहित्य | कविता उत्तम टेकड़ीवाल13 Jun 2017
छोटे छोटे डिब्बों में
बंद हो गई है ज़िन्दगी
जिल्द लगा रहे हैं
बेहतर से बेहतरीन
उनको हम बना रहे हैं
डिब्बा छोटा ही सही
समेट लेता है सारा जीवन
मोबाइल हो या लैपटॉप
दलदल में डूबता जाता है
धीरे धीरे एकांकी जीवन
विषयों ने सूक्ष्म रूप लेकर
कोशिकाओं में संकीर्णता भर दी है
तारों का सम्पर्क भी गल गया है
भाव नहीं, विद्युत ही बसा है इनमें
मरिचिकाओं का मायाजाल बिछा है
स्वप्नों के प्रतिबिंबों में खोया है जीवन।
डिब्बों में खिड़कियाँ तो होती हैं
खुलती है जो फिर एक नये डिब्बे में
डिब्बों के अंदर अनगिनत डिब्बे
हर डिब्बे से बढ़ता कृत्रिम रिश्ता
रिश्तों के एक निरंतर नये उधेड़बुन में
उत्तेजना का मादक ग्रास बन गया है जीवन
जीवन .. जिनमें साँसें थी..
धड़कन थी .. स्पर्श था
आँसू और पसीने की नमी थी!
सुगंध और ठहाकों से भरी हवा थी;
और था एक अंतहीन आकाश -
प्राचीर पर उगाता वो सूरज;
अमावस्या की रात.. पूनम का चाँद..
उमंगों के खेल के मैदान..
सब.... कैसे और कब ..
बंद हो गये उन डिब्बों में;
शायद हो गया है मशीनी मानव का उद्गम -
और यह उसका कृत्रिम मशीनी जीवन!!
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