दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात
शायरी | ग़ज़ल आबिद अली आबिद10 Jun 2007
दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात
ग़म-ए-दौरां में है अक्स-ए-ग़म-ए-यार आज की रात
ग़म-ए-दौरां=शोक का समय; अक्स-ए-ग़म-ए-यार=प्रेमी के शोक की छवि
आतिश-ए-गुल को दामन से हवा देती है
दीदनी है रविश-ए-मौज-ए-बहार आज की रात
आतिश-ए-गुल=फूल की आग; दीदनी=देखने योग्य; रविश=व्यवहार; मौज=लहर
आज की रात का महमां है मलबूस-ए-हरीर
इस चमन-ज़ार में उगते हैं शरर आज की रात
मलबूस-ए-हरीर=रेशमी कपड़ा; चमन-ज़ार=वाटिका; शरर=अंगारा
मैं ने फ़रहद की आग़ोश में शीरीं देखी
मैं ने परवेज़ को देख सर-ए-दार आज की रात
आग़ोश=आलिंगन; सर-ए-दार=प्राणदण्ड की जगह
जो चमन सर्फ़-ए-ख़िज़ां हैं वो बुलाते हैं मुझे
मुझे फ़ुर्सत नहीं ऐ जान-ए-बहार आज की रात
सर्फ़-ए-ख़िज़ां=पतझड़ की पकड़ में
दर-ए-यज़दां पे भी झुकती नहीं इस वक्त जबीं
मुझ से आँखें न लड़ा आज की रात
दर-ए-यज़दां=दयालु भगवान; जबीं=मस्तक
मशाल-ए-शेर का लाया हूँ चढ़ावा ‘आबिद‘
जगमागाते हैं शहीदों के मज़ार आज की रात
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