दिवाली (अर्चना सिंह ’जया’)
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता अर्चना सिंह 'जया'8 Nov 2016
दिवाली की रात है आई
ख़ुशियों से दामन भरने
अज्ञानता के तम को दूर भगा
ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित करने।
पटाखों की धुँध से न होने देना
सच्चाई की राह को बोझिल,
दूसरे के जीवन को रौशन कर
देखो कैसे लौ मंद-मंद मुस्काती?
मानव तुम भी सीखो इनसे कुछ
हर वर्ष दिवाली, ईद क्या कहने आती?
मिल जुलकर ख़ुशी मनाने से ही
वसुधा में प्रेम की हरियाली आती।
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