दिये की पहचान
काव्य साहित्य | कविता संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’15 Apr 2020
जन-जन की मुस्कान बनें हम।
एक नया सम्मान बनें हम।
तुम बन जाओ दीपक साथी,
दिये की पहचान बनें हम।
गिरें तो खुद सँभलना होगा।
इक नई दिशा में चलना होगा।
दिन का क्या है! कब ढल जाये,
हमें ख़ुद ही सूरज बनना होगा।
गुल और गुलिस्तान बनें हम।
एक नया हिंदुस्तान बनें हम।
आओ फिर से दिया जलाकर,
ख़ुद अपनी पहचान बनें हम।
दर्द-ओ-ग़म का जीवन है ये,
सर के बल तू झुकना ना।
देख! राह में काँटें लाखों होंगे,
पथिक तनिक भी रुकना ना।
माँ भारती का निशान बनें हम।
एक अच्छी संतान बनें हम।
आओ वर्तमान को लेकर मुट्ठी में,
भविष्य का गुणगान बनें हम।
जन-जन की मुस्कान बनें हम।
एक नया सम्मान बनें हम।
तुम बन जाओ दीपक साथी,
दिये की पहचान बनें हम।
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