दूध पी के भी नाग डसते हैं
शायरी | ग़ज़ल नीरज गोस्वामी27 Jan 2008
ये न समझो के अश्क सस्ते हैं
जान लेकर के ही बरसते हैं
दलदली है ज़मीन चाहत की
लोग क्यों जाके इसपे बसते हैं
टूटते गर करें ज़रा कोशिश
आज कल के ऊसूल खस्ते हैं
घाव अपने दिया करें हैं जो
वो न भरते सदैव रिसते हैं
यार आदत बदल नहीं सकते
दूध पी के भी नाग डसते हैं
एक चक्की कहें सियासत को
लोग भोले गरीब पिसते हैं
है बड़ी दूर प्यार की मंजिल
खार वाले जनाब रस्ते हैं
जिनमें विश्वास की कमी होती
वो जबीं सबके दर पे घिसते हैं
नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं
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