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डबल  जन्मतिथि का चक्कर

आज दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली आर्थिक विकास दर हमारे देश की है, तो दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली जनशक्ति दर में भी हमारा देश किसी से पीछे नहीं है। हम हर साल अपनी जनसंख्या में एक ऑस्ट्रेलिया देश जोड़ लेते हैं। बच्चा पैदा करने के अपने मूल अधिकार के प्रति हम इतने चौकस हैं कि किसी भी शासन को उसमें हस्तक्षेप करने का साहस नहीं करने देते हैं। मोदी जैसा साहसी प्रधान-मंत्री भी जिसने जल-शक्ति संरक्षण मंत्रालय खोलने में पाँच मिनट भी नहीं लगाये हैं, जन-शक्ति नियंत्रण मंत्रालय खोलने का साहस पाँच वर्ष में भी नहीं कर सका है। हम भारतवासी दुनिया का हर काम साइत (शुभ-अशुभ समय) का विचार करके ही करते हैं, परंतु बच्चा पैदा करने का काम करते समय किसी साइत का विचार नहीं करते हैं। मेरे गाँव में यदि किसी को किसी महत्वपूर्ण काम के लिये गाँव से बाहर जाना हो, तो वह पंडित जी द्वारा बताये निम्नांकित सूत्र के अनुसार उचित दिन ही घर से निकलता है-

          “सोम-सनीचर पूरब नहिं चालू, मंगल-बुद्ध उत्तर दिस कालू;
          रवि-शुक्र जो पश्चिम जाय, हानि होय पथ सुख नहिं पाय;
          बृहस्पति दक्खिन करै पयाना, फिर नहिं समझो ताको आना”

          इन प्रतिबन्धों के अतिरिक्त अनेक लोग अन्य ‘अपशकुनों’ को भी ध्यान में रखकर ही कोई महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ करते हैं - जैसे यात्रा प्रारम्भ करते ही किसी को छींक आ जाए या बिल्ली रास्ता काट दे अथवा पनिहारिन रीता घड़ा लिये हुए सामने आ जाए, तो वे या तो यात्रा स्थगित कर देते हैं नहीं तो वापस घर आकर पुनः यात्रा प्रारम्भ करते हैं, पर बच्चे पैदा करने के कार्य में किसी को दिन, दिशा अथवा साइत का विचार करते मैंने कभी भी देखा-सुना नहीं है। पंडित जी ने भी गाँव वालों को इस बारे में कोई सूत्र नहीं दिया है। मुझे लगता है कि यदि पंडित जी के पास इस विषय में साइत विचारने का कोई सूत्र होगा भी, तो भी दिन-प्रतिदिन उसकी अवज्ञा किये जाने की आशंका से उन्होंने उसे अपने तक रखना ही श्रेयस्कर समझा होगा।   

मैं बचपन में जब गाँव में रहता था तब भी गाँव में बच्चे बिना दिन, महीना, घड़ी अथवा साइत का ख़याल किये किसी भी समय पैदा होते रहते थे। इससे पंडित जी को साल भर जन्म-कुंडली बनाने का काम मिलता रहता है। पंडित जी कुंडली में विक्रम सम्वत के अनुसार जन्म का दिन, तिथि और वर्ष लिखते थे। गाँव में ईसवी सम्वत के अनुसार तारीख़ शायद ही कोई जानता हो और घड़ियां भी नहीं होतीं थीं, अतः पंडित जी को जन्म का समय ऐसे बताया जाता था- तीन पहर रात बीते, प्रातः जगहर होते-होते, दिनचढ़े अथवा सायं अँधेरा होते-होते। पंडित जी उसी के अनुसार जन्म की राशि का अनुमान लगाकर कुंडली बना देते थे, जो उस शिशु के जीवन में आने वाले सुख-दुख, हानि-लाभ और जीवन-मरण का अमिट लेखा-जोखा माना जाता था। चूँकि जनेऊ-विवाह सहित समस्त संस्कार विक्रम सम्वत के अनुसार ही होते थे, अतः इनकी तिथि निर्धारण में कोई कठिनाई नहीं आती थी। कठिनाई तब आती थी जब कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में नाम लिखाने जाता था। मास्टर साहब जन्म की तारीख़ पूछते थे, तो वह उंन्हें कुछ इस प्रकार बताई जाती थी- पिछली सूखा पड़ने वाले साल में भादों महीना में अँधियारे पाक की दूज। मास्टर साहब के पास इसको ईसवी सन्‌ में बदलने का कोई सूत्र नहीं होता था। अतः वह बच्चों की जन्मतिथि प्रायः वही लिख देते थे, जिस दिन कोई बच्चा भर्ती होने आता था- और बच्चे के जन्म का वर्ष बच्चे की क़द-काठी देखकर लिख देते थे।   

उन दिनों प्राइमरी स्कूल में भर्ती 1 जुलाई से प्रारम्भ होती थी, अतः उस ज़माने के अधिकांश बच्चों की लिखत-पढ़त की जन्मतिथि जुलाई माह में ही पाई जाती है। यदि कोई शोधकर्ता बच्चे पैदा करने हेतु सबसे अधिक कारगर महीना के विषय में स्कूली जन्मतिथियों के आधार पर शोध करे, तो परिणाम निश्चय ही जुलाई से नौ महीना पहले पड़ने वाला अक्टूबर माह निकलेगा। यह भी एक तथ्य है कि उस ज़माने के बहुत से लोगों को साल में दो बर्थडे मनाने पड़ते हैं- एक स्कूली रिकॉर्ड के अनुसार और दूसरी विक्रमी सम्वत के अनुसार। मेरी भी लिखत-पढ़त की बर्थडे 7 जुलाई है और वास्तविक 20 अगस्त। मुझे अपनी ईसवी कलेंडर के अनुसार वास्तविक बर्थडे का ज्ञान 40 वर्ष की आयु प्राप्त होने के पश्चात हुआ था। मैं चाची (मेरी माँ) के बताये अनुसार केवल यह जानता था कि मेरा जन्म भादों माह की कृष्ण पक्ष की द्वितीया अर्थात कृष्णावतार दिवस से 6 दिन पहले हुआ था और पिता जी के बताये के अनुसार यह जानता था कि स्कूल में मेरी आयु लगभग 10-11 महीना कम लिखी हुई है। 40 वर्ष की आयु का होने पर मैं एक दिन एक पंडित जी से टकरा गया था। उन्होंने मेरी दोनों जन्मतिथियों के आधार पर गणना कर मेरी जन्मतिथि 20 अगस्त बताई थी।

सामान्यतः लोगों को मेरी जन्मतिथि 7 जुलाई ज्ञात है क्योंकि यह सरकारी जन्मतिथि सोशल मीडिया पर उपलब्ध है और उसी दिन मुझे ढेरों सी मंगलकामनाएँ मिलती हैं, परंतु मेरे कुछ घरवालों और अन्य जानकारों ने उसके बजाय 20 अगस्त को फोन, फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप आदि पर शुभकामनायें देना प्रारम्भ कर दिया है। चूँकि सोशल मीडिया पर कोई भी बात क्षण भर में प्रचारित-प्रकाशित हो जाती है, अतः अनेक पाठक इतनी जल्दी मेरे दुबारा पैदा हो जाने पर भौचक रह जाते हैं। उनमें से कुछ तो यह सोचकर कि ‘कौन झंझट में पड़े’ चुपचाप दुबारा विश कर देते हैं परंतु कुछ जिज्ञासु क़िस्म के मित्र मेरे इतनी जल्दी पुनरावतार ले लेने का कारण पूछ बैठते हैं और उनको स्पष्टीकरण देते-देते मेरे छक्के छूट जाते हैं।     

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