दुखियारी नदी
काव्य साहित्य | कविता गोवर्धन यादव10 Mar 2017
(1)
अपना दुःख बतलाने से पहले ही
मनमसोस कर रह जाती है, कि
जब लोग-
देश की ही क़द्र नहीं करते
तो फ़िर भला कौन-
उसकी क़द्र कौन करेगा?
(2)
नदी
महज इसलिए दुःखी नहीं है, कि
लोग उसमें कूड़ा डालते हैं
महिलाएँ गंदे कपड़े धोती हैं
और विसर्जित की जाती हैं
आदमकद प्रतिमाएँ
फ़ूलमालाएँ और न जाने क्या-क्या
वह दुःखी होती है
तो इस बात पर, कि
लोग यह जानना ही नहीं चाहते,कि
किस बात का दुःख है नदी को?
(3)
बैठकर नदी के किनारे
कितने ही ग्रंथ रच डाले थे
अनाम ऋषि-मुनियों ने।
नदी तो अब भी बह रही है-
जैसे कि कभी बहा करती थी
क्या कोई यह बता सकता है
आज किसने क्या लिखा -
कब लिखा और
कितना सार्थक लिखा?
(4)
नहीं जानती नदी
अपना जनम दिन
और न ही जानती वह
किसी तिथि और वार को जनमी थी वह।
वह तो केवल इतना भर जानती है,कि
उसे बहते ही रहना है-
हर हाल में।
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