दुनिया बदल गई
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'1 Sep 2020
धरी रह गई अकड़ हमारी
छिपने को मजबूर हुए
कोरोना की महामारी से
दुनिया से हम दूर हुए।
गलियाँ सूनी सूने मोहल्ले
चौराहे सड़कें सब सूनी
सन्नाटा पसरा है घरों में
जैसे दुनिया उजड़ गई।
शीतल मंद पवन के झोंके
चिड़ियों के मधुरम कलरव
स्पष्ट सुनाई दे जाते हैं
मानो दुनिया बदल गई।
समय नहीं है जो कहते थे
परिवार से दूर रहते थे
दूरी उनको रास न आई
सबने घर की दौड़ लगाई।
संकट काल में एक हुए सब
करने लड़ने की तैयारी
महाविनाश पर विजयी बनने
घर में रहने की है ठानी।
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