अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दुनियावाले क्या कहेंगे

एक समझदार पति व पत्नी का दृष्टिकोण:

आज से 50 साल पहले: "क्या हुआ अगर हमारी बेटी की लव-मैरिज हो रही है, लेकिन अपनी जाति के ही लड़के से। किसी दूसरी जाति के लड़के से तो नहीं हो रही न! और दुनियावालों की चिंता न करें, वो तो कुछ दिन बातें बनाएँगे, फिर किसी और को पकड़ लेंगे।"

आज से 25 साल पहले: "क्या हुआ अगर दूसरी जाति के लड़के से वह शादी कर रही है, किसी गोरे या काले से तो नहीं कर रही न! दुनियावालों की चिंता न करें, वो तो कुछ दिन बातें बनाएँगे, फिर किसी और को पकड़ लेंगे।"

आज से 10 साल पहले: "चलो, गोरे/काले से सही, किसी ग़ैर मुल्क वाले से तो नहीं कर रही न! दुनियावालों की चिंता न करें, वो तो कुछ दिन बातें बनाएँगे, फिर किसी और को पकड़ लेंगे।"

आज: "चलो, किसी ग़ैर मुल्क वाले से सही, लैस्बीयन से तो नहीं कर रही न! दुनियावाले . . . कौन-से दुनिया वाले? हम जैसे लोगों से ही तो दुनिया बनी है न!"

आज से 10 साल बाद: "लैस्बीयन से ही सही, कम से कम अपनी जाति के लड़के से तो नहीं कर रही न . . . चलो अच्छा हुआ, ससुराल वालों की सारी उम्र की किचकिच वग़ैरह से बच गयी।"

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

मधु 2021/08/19 05:31 PM

बिल्कुल सही। 'यह हास्य-व्यंग्य पढ़कर 'बाप रे' उक्ति कुछ समय पश्चात 'सब चलता है' में बदलने जा रही है। यहाँ पश्चिम देशों में तो यह परिवर्तन आ ही चुका है। 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' फ़िल्म देखकर यही लगा कि भारतवासी भी पाश्चात्य प्रभाव से बच नहीं पाये।

पाण्डेय सरिता 2021/08/17 11:27 PM

बाप रे विचित्र कल्पना शक्ति और अनुभव

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

लघुकथा

नज़्म

कहानी

किशोर साहित्य कविता

चिन्तन

सांस्कृतिक कथा

कविता - क्षणिका

पत्र

किशोर साहित्य कहानी

सम्पादकीय प्रतिक्रिया

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं